झुमके से लेकर सुरमे तक क्या है बरेली का इतिहास , एक बार जरूर करें यहां की यात्रा

बरेली शहर ने जरी से कारीगरी, बांस फर्नीचर से लेकर व्यापार के हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। यहां का सुरमा भी किसी पहचान का मोहताज नहीं है। दूर-दूर से लोग यहां से सुरमा लेकर जाते हैं। रामगंगा तट पर बसा यह शहर रोहिलखंड के ऐतिसाहिक क्षेत्र की राजाधानी था। बरेली शहर ने
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झुमके से लेकर सुरमे तक क्या है बरेली का इतिहास , एक बार जरूर करें यहां की यात्रा

बरेली शहर ने जरी से कारीगरी, बांस फर्नीचर से लेकर व्यापार के हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। यहां का सुरमा भी किसी पहचान का मोहताज नहीं है। दूर-दूर से लोग यहां से सुरमा लेकर जाते हैं। रामगंगा तट पर बसा यह शहर रोहिलखंड के ऐतिसाहिक क्षेत्र की राजाधानी था। बरेली शहर ने जरी से कारीगरी, बांस फर्नीचर से लेकर व्यापार के हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। यहां का सुरमा भी किसी पहचान का मोहताज नहीं है। दूर-दूर से लोग यहां से सुरमा लेकर जाते हैं। आप हम अपने इस सैर-सपाटे के सफर में आपको घुमाने जा रहे हैं उत्तर प्रदेश के आठवें सबसे बड़े महानगर बरेली से। बरेली की मशहूर जगहों के जानने के बाद यह जानना भी जरूरी है कि आखिर बरेली की मशहूर चीजें क्या-क्या है, ताकि जब भी आप यहां घूमने आएं।

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कैसे नाम पड़ा बरेली

शहर को बाँस बरेली के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि यहाँ बाँस(बेंत) का उत्पादन और उससे बने समान ज़्यादा मिलते हैं, पर इस वजह से इसे बाँस बरेली नहीं कहते। बाँस बरेली नाम यहाँ के दो राजकुमारों के नाम पर पड़ा, बांसलदेवा और बारलदेवा जो राजा जगत सिंघ कटेहरिया के पुत्र थे जिन्होंने सन् 1537 में इस शहर की खोज की।

अहिच्छत्र फोर्ट

बरेली के आंवला तहसील रामनगर में स्थित अहिच्छत्र फोर्ट का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यहां दक्षिण पांचाल का उल्लेख मिलता है। पांचाल की राजधानी द्रुपद नगर था। राजा दु्रपद की पुत्री द्रोपदी का स्वयंवर यहां रचाया गया था। ईसा पूर्व 100 ई.वी के आसपास यहां मित्र राजाओं का राज्य था। 1662-63 में तीन टीलों की खोज हुई थी, यहां स्तूप भी पाया गया। आज यह टीला खंडहर के रूप में दिखाई पड़ता है, जिसके बीचों-बीच पहाड़ीनुमा टीले पर भीम शिला खंड है, जिसे भीम गदा कहा जाता है। यह टीला पुरातत्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में है। कहते है अगर बरेली आएं हैं और अहिच्छत्र फोर्ट नहीं आएंगे, तो आपका सफर अधूरा ही रहेगा, क्योंकि बरेली का इतिहास अगर जानना है तो यहां जाना तो बनता है।

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क्राइस्ट मेथोडिस्ट चर्च बरेली

सर्वधर्म सद्भाव भी भावना से बरेली शहर भी अछूता नहीं है। यहां का क्राइस्ट मेथोडिस्ट चर्च इसका जीता-जागता उदाहरण है, जो कि सिविल लाइन्स में है। ये चर्च 145 साल पुराना है। कहते है इस चर्च के साथ ही इंडिया में मैथोडिज्म या कहे श्चह्म्द्गड्डष्द्धद्बठ्ठद्द की शुरुआत हुई थी। डॉक्टर विलियम बटलर जो कि एक ब्रिटिश मिशिनरी थे, उन्होंने इस चर्च की नींव रखी थी। क्राइस्ट मेथोडिस्ट चर्च किसी भी बाहर के डोनेशन को नहीं लेता है, बल्कि कम्यूनिटी के लोग ही डोनेशन इक_ा करते है। यहां पर जगह-जगह पर कोड्स लिखे हुए हैं, तो कुछ न कुछ सीख देते हैं। इस चर्च को भी देखने लोग दूर दूर से आते हैं।

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अलखनाथ मंदिर

बरेली-नैनीताल रोड पर किले के करीब अलखनाथ मंदिर स्थित है। ये प्राचीन मंदिर नाथ पंथ से संबंध रखता है जो कि अखंड अखाड़े के नाथ सन्यासियों की आस्था का मुख्य केंद्र है। मंदिर परिसर में कई मठ है जिसमें विभिन्न देवी-देवताओं को अधिष्ठापित किया गया है। गाय, ऊँट और बकरी जैसे मवेशी यहाँ पाले जाते है। ये मंदिर हमेशा प्रार्थनारत और भजनों में रमें श्रद्धालुओं से भरा रहता है। अलखनाथ मंदिर करीब 96 बिगाह परिसर में फैला हुआ है। वैसे तो यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन सावन के महीनों में यहां की रौनक देखने वाली होती है। इस मंदिर के बारे में प्राचीन मान्यता है कि वर्षों पहले वैदिक धर्म की रक्षा के लिए इस मंदिर का निर्माण किया गया था, जब मुगल शासनकाल में हिंदुओं को प्रताड़ित किया जा पबा था और उनका जबरन धर्मांतरण कराया जा रहा था,तब नागा साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए आनंद अखाड़े के बाबा अलाखिया को बरेली भेजा था। बाबा अलाखिया के नाम पर ही इस मंदिर का नाम अलखनाथ मंदिर पड़ा है।

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त्रिवटी नाथ मंदिर

त्रिवटीनाथ का मंदिर बरेली के सबसे सुंदर और विख्यात मंदिरों में से है। शहर के बीचों बीच में स्थापित इस मंदिर में सालभर बडी संख्या में भक्त माथा टेकते है। मान्यता है कि एक चारवाह त्रिवट वृक्षों की छाया में सो रहा था। तभी उसके सपने में भगवान भोलेनाथ आए और उससे कहने लगे कि मैं यहां विराजामान हूं और खुदाई करने पर दर्शन दूंगा। जब चारवाह जागा तो उसने भालेनाथ के आदेश का पालन किया और खुदाई शुरू कर दी। तभी त्रिवट वृक्ष के नीचे शिवलिंग के दर्शन हुए। उस समय से इस मंदिर का नाम त्रिवृटी नाथा पड़ा। कहते हैं यह शिवलिंग करीब 600 साल पुराना है। इस मंदिर में हर साल देश के प्रसिद्ध संतों का प्रवचन भी होता है। जिन्हें सुनने के लिए यहां पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।

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धोपेश्वरनाथ मंदिर

ये सुंदर मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है। महाभारत काल का यह वो स्थान है जहाँ द्रौपदी और धृष्टद्युम्न का जन्म हुआ था। द्रौपदी और धृष्टद्युम्न दोनों को भगवान शिव की कृपा से उत्पन्न माना जाता है। ये मंदिर बरेली के छावनी परिषद क्षेत्र में अवस्थित है।

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आला हजरत दरगाह

आला हजरत पवित्र दरगाह अहमद रजा खान की है जो ब्रिटिश कालीन विद्वान् और मौलवी थे और वहाबियों के मत के दृढ़ समर्थक के रूप में पहचाने जाते थे। दक्षिण एशिया के सुन्नी मुसलमानों के लिए ये जगह आध्यात्मिकता का केंद्र है। दरगाह का स्थापत्य सहज और सुंदर है जो अहमद रजा खान के विचारों को दर्शाता है। मान्यता है कि अगर यहां आप कोई मन्नत लेकर आते हैं, तो वो मन्नत जरूर पूरी होती है। जब भी कोई बरेली आता है, तो इस दरगाह में अर्जी लगाना नहीं भूलता है।

खानकाह-ए-नियाजिया

बरेली की खानकाहे नियाजिया की भी अलग पहचान है। जो लोग किसी कारण से अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती नहीं जा पाते वो यहां आते हैं। ख्वाज मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स मुबारक के मौके पर बरेली की खानकाहे नियाजिया में हर साल कुल शरीफ की रस्म अदा की जाती है। वैसे तो हजरत ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स पूरी दुनिया में मनाया जाता है लेकिन बरेली की खानकाह नियाजिया की अहमियत इसलिए भी है क्योंकि यहां ख्वाजा गरीब नवाज के रूहानी जानशीन हजरत शाह नियाज बे नियाज की दरगाह भी है। खानकाहे नियजिया की मान्यता है कि अगर 17वीं रवी को यहां चिराग रोशन करेगा उसकी हर जायज मुराद पूरी होती है और ये सिलसिला लगभग 300 वर्षों से चल रहा है जिसमें देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी जायरीन शिरकत करते है।

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फन सिटी बरेली 

यूं तो आप कई फन सिटी में गये होंगे लेकिन यह फन सिटी पार्क खास है क्यों कि,बरेली का यह पार्क उत्तर भारत में सबसे बड़ा है। सभी आयु वर्ग के लोगों के लिये पार्क में मनोरंजन की भरपूर सुविधायें उपलब्ध हैं। इस मनोरंजन पार्क को वर्ष 2000 में शहर के बीचो-बीच 13 एकड़ के क्षेत्र में स्थापित किया गया। इसलिए यह न सिर्फ बरेली वासियों के लिए बल्कि पर्यटकों के लिए भी आराम फरमाने और कुछ फुर्सत के पल बिताने के लिए लोकप्रिय जगह है। बता दें कि यह सुबह 11 बजे से शाम के 7 बजे तक खुलता है। तो आप अपनी फैमली, फ्रेंड्स के साथ आइए और यहां पर एन्जॉय कीजिए।

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गांधी उद्यान बरेली 

बरेली का गांधी उद्यान भी किसी पहचान का मोहताज नहीं, शहर के अधिकतर लोगों का यहां आना होता है। यहां लहराता 135 फीट ऊंचा तिरंगा इसकी शान को और बढ़ाए रखता है। ये सिविल लाइन्स बरेली में स्थित है। यहां आपको हर एजग्रुप के लोग दिख जाएंगे, बच्चों से लेकर बूढ़े-बुजुर्ग तक। यहां का वातावरण एकदम शांत हैं, तो अगर आप किसी पीसफुल जगह पर घूमने का मन बना रहे हैं, तो बरेली का गांधी उद्यान एक दम बेस्ट प्लेस होगा।

पंजाबी मार्केट बरेली

अब अगर खरीददारी की बात करें, तो पंजाबी मार्केट यहां की फेमस मार्केट हैं, जो कि शहर के बिल्कुल बीचों-बीच है। यहां आप इंटरनेशनल ब्रांड से लेकर स्ट्रीट शॉपिंग तक के मजे उठा सकते हैं। बच्चों लेकर लेडीज जेंस हर किसी के लिए अब यहां से शॉपिंग कर सकते हैं। इस मार्केट के लिए कहा जाता है कि देश के बंटवारे के बाद पंजाबी फैमिली के लोगों ने यहां आकर अपनी दुकानें लगाईं, यहां पर ज्यादातर दुकानें पंजाबियों की हैं, इसलिए इसका नाम पड़ गया पंजाबी मार्केट। और अगर आप खाने-पीने के भी शौकीन है, तब भी यहां आना आपके बेस्ट रहेगा, क्योंकि यहां आपको खाने-पीने के लिए स्वादिष्ट आइटम मिल जाएंगे। इसके अलावा इस मार्केट से महज पांच मिनट की दूरी पर एक और मार्केट है, जिसका नाम है बड़ा बाजार। यहां आपको कपड़ों का अच्छा खासा स्टॉक मिल जाएगा, कई सारे वेसाइटी भी मिल जाएगी। ज्यादातर लोग शादी-फंग्शन भी शॉपिंग के लिए बड़ा बाजार आना प्रीफर करते हैं।

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बरेली का मशहूर सुरमा

आंखों की चमक बढ़ाने वाला सुरमा यहां पर 200 साल से बनता आ रहा है। 200 साल से पहले दरगाह-ए-आला हजरत के पास नीम वाली गली में हाशमी परिवार ने इसकी शुरुआत की थी। अब यहां सुरमे का केवल एक कारखाना है, जिसे एम हसीन हाशमी चलाते हैं। कहते हैं कि पूरी दुनिया में सुरमा यहीं से सप्लाई होता है। सुरमा बनाने के लिए सऊदी अरब से कोहिकूर नाम का पत्थर लाया जाता है। जिसे छह महीने गुलाब जल में फिर छह महीने सौंफ के पानी में डुबो के रखा जाता है. सुखने पर घिसाई की जाती है. फिर इसमें सोना, चांदी और बादाम का अर्क मिलाया जाता है।

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झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में

1966 में बनी फिल्म मेरा साया में साधना के ऊपर ये गाना फिल्माया गया था। पर गीत में बरेली के बाजार का जिक्र क्यों आया? जबकि फिल्म की कहानी में दूर दूर तक बरेली का जिक्र नहीं है. पर इसके साथ एक कहानी है. बात उन दिनों की है जब दादा बच्चन, यानी कि मशहूर साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन, और तेजी बच्चन एक दूसरे के नजदीक आ रहे थे. ये दोनों लोग बरेली में रुके थे उस वक्त, एक शादी में आए थे। एक दिन इन लोगों से पूछा गया कि कब तक ये चलेगा। भाई अब तो अपना प्यार स्वीकार कर लो. तो तेजी बच्चन ने कह दिया कि मेरा झुमका तो बरेली के बाजार में गिर गया. इस किस्से से राज मेहंदी अली खान साहब भी अच्छी तरह से वाकिफ थे। मंटो के भी दोस्त थे मेहंदी। तो जब मेरा साया के गीत लिखने की बारी आई तो उन्हें अचानक यह किस्सा याद आ गया और उन्होंने गीत में हीरोइन के झुमके को बरेली में ही गिरा दिया।

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व्यंजन और खाने पीने की जगहें

बरेली में खाने पीने के लिए शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के बहुत से लजीज पकवान मिलतेहै। मुगलई व्यंजनों और संस्कृति का बरेली पर खासा असर देखा जा सकता है। इसलिए यहाँ के कई माँसाहारी पकवान मशहूर है। सींक कबाब सेलेकर तंदूरी चिकन और पाया निहारी तक ये पकवान आपकी स्वादिष्ट खाने की दरकार को बाकायदा पूरी करेगी। यहाँ रेस्तरां की एक लम्बी सूची मौजूद है।

स्ट्रीट फूड : बरेली के सिविल लाइंस का स्ट्रीट फूड भी काफी मशहूर है। तो यहां अगर जाएं तो त्यागी रेस्टोरेंट, दीनानाथ की लस्सी, चमन चाट, छोटे लाल की चाट खाना न भूलें।

कैसे पहुंचें

फ्लाईट : बरेली से निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है जो यहाँ से 101 किमी दूर है।

बस : बरेली भारत के सभी मार्गों से जुड़ा हुआ है और कोई भी आसानी से यात्रा कर सकता है।

ट्रेन : बरेली रेलवे स्टेशन अच्छी तरह से भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।