जानिए कब है मकर संक्रांति 2020, धर्म और ज्योतिष के नजरिए से मकर संक्रांति का महत्व
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति होती है। साल 2020 में 14 जनवरी की रात्रि में सूर्य उत्तरायण होंगे और 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। धर्म और ’योतिष के नजरिए से यह पर्व बेहद खास है। यहां मकर से आशय राशिचक्र की दसवीं राशि मकर से है। जबकि संक्रांति का अर्थ सूर्य का गोचर है। अर्थात मकर राशि में सूर्य का गोचर ही मकर संक्रांति कहलाता है। उत्तराखंड के बागेश्वर नामक स्थान पर इस दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
तिथि व मुहूर्त 2020
संक्रांति काल – 07:19 बजे (15 जनवरी बुधवार)
पुण्यकाल – 07:19 से 12:&1 बजे तक
महापुण्य काल – 07:19 से 09:0& बजे तक
संक्रांति स्नान – प्रात:काल, 15 जनवरी 2020
मोक्ष प्राप्ति के गंगा स्नान
मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। सूर्य का उत्तरायण होना बेहद शुभ माना जाता है। सनातन धर्म में मकर संक्रांति को मोक्ष की सीढ़ी बताया गया है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भीष्म पितामह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि, जो मनुष्य मकर संक्रांति पर देह का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है। इसके साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाते हैं जिस कारण से खरमास समाप्त हो जाता है। प्रयाग में कल्पवास भी मकर संक्रांति से शुरू होता है। इस दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है। गंगा स्नान को मोक्ष का रास्ता माना जाता है और इसी कारण से लोग इस तिथि पर गंगा स्नान के साथ दान करते हैं।
इस दिन दान का है विशेष महत्व
सरल शब्दों में कहें तो इस दिन सूर्य मकर राशि में जाता है। वैदिक ’योतिष में सूर्य को आत्मा, ऊर्जा, पिता, नेतृत्वकर्ता, सम्मान, राजा, उ‘च पद, सरकारी नौकरी आदि का कारक माना जाता है। यह सिंह राशि का स्वामी है। तुला राशि में यह नीच का होता है, जबकि मेष राशि में यह उ‘च का होता है। सूर्य के मित्र ग्रहों में चंद्रमा, गुरु और मंगल आते हैं। जबकि शनि और शुक्र इसके शत्रु ग्रह हैं। सूर्य और मकर के संबंध को देखें तो मकर सूर्य के शत्रु शनि की राशि है। दान-धर्म और समाज सेवा के लिए यह दिन शुभ माना जाता है। इस दिन किया गया दान सौ गुना बढक़र व्यक्ति को वापस मिलता है। जरूरतमंदों को भोजन खिलाना, वस्त्र बांटना, असहाय लोगों के मदद करना व समाज के उत्थान हेतु कार्य इस दिन किये जाते हैं जो पुण्य के साथ साथ आंतरिक शांति भी प्रदान करतें हैं।
बसंत का आगमन
मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।