दिन में तीन रूप बदलती हैं ये देवी, इस पवित्र नदीं के तट पर बसा है चमत्कारिक मंदिर, वजह है ये खास

देहरादून-न्यूज टुडे नेटवर्क : अध्यात्म और आस्था के लिए प्रसिद्ध इस पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की अपनी अलग पहचान है। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थान मौजूद हैं जिनका संबंध पौराणिक काल से है। प्राचीन ऋषि परंपरा की जड़ों को थामे उत्तराखंड दुनिया के चुनिदा धार्मिक पर्यटन केंद्रों मे गिना जाता है। यहां दूर-दूर से सैलानी आकर
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दिन में तीन रूप बदलती हैं ये देवी, इस पवित्र नदीं के तट पर बसा है चमत्कारिक मंदिर, वजह है ये खास

देहरादून-न्यूज टुडे नेटवर्क : अध्यात्म और आस्था के लिए प्रसिद्ध इस पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की अपनी अलग पहचान है। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थान मौजूद हैं जिनका संबंध पौराणिक काल से है। प्राचीन ऋषि परंपरा की जड़ों को थामे उत्तराखंड दुनिया के चुनिदा धार्मिक पर्यटन केंद्रों मे गिना जाता है। यहां दूर-दूर से सैलानी आकर आत्मिक और मानसिक शांति का अनोखा अनुभव प्राप्त करते हैं। वैसे तो यहां में अनगिनत छोटे-बड़े मंदिर मौजूद हैं लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जहां की देवी उत्तराखंड की रक्षक मानी जाती है। वैसे तो आपने देवभूमि के कई चमत्कारी मंदिरों और देवी-देवताओं के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको उन देवी के बारे में बताने जा रहे हैं जो कई सालों से पहाड़ों की रक्षा कर रही हैं।

दिन में तीन रूप बदलती हैं ये देवी, इस पवित्र नदीं के तट पर बसा है चमत्कारिक मंदिर, वजह है ये खास

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बद्रीनाथ राजमार्ग पर स्थित माँ धारी देवी पहाड़ों की संरक्षक

धारी देवी मंदिर, देवी काली माता को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी के रूप में माना जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में अलकनंदा नदी के तट पर श्रीनगर-बद्रीनाथ राजमार्ग पर कल्यासौर में स्थित है। माना जाता है कि राज्य में जितने भी धार्मिक स्थल मौजूद हैं उनकी रक्षा स्वयं माता धारी करती हैं। माता के मंदिर में पूजा पूरे विधि विधान से होती है क्योंकि कोई भी माता के प्रकोप का भागी नहीं बनना चाहता। वैसे आज तक ऐसी स्थित नहीं आई है। उत्तराखंड का यह फल कभी देवताओं को परोसा जाता था ऐतिहासिक मंदिर माता धारी देवी का मंदिर काफी प्राचीन बताया जाता है।

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मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था

माता का सिद्धपीठ उत्तराखंड के श्रीनगर से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित कलियासौड़ इलाके में अलकनंदा नदी के तट पर बसा है। माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास काफी सालों पुराना है। जानकारों के मुताबिक यहां वर्ष 1807 के साक्ष्य पाएं गए हैं। जबकि यहां के ग्रामीण लोगों और मंदिर के महंत का कहना है कि मंदिर इससे भी कई साल पुराना है प्राचीन मंदिर होने के कारण इस मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी है। माता धारी देवी के मंदिर में आपको ढेरों घंटियां दिखेंगी। पूजा के समय घंटी की आवाज दूर-दूर तक जाती है, जिसके बाद यहां दर्शनाभिलाषियों का तांता लग जाता है। यहां भक्त आपको माता के जयकारे लगाते हुए दिख जाएंगे। बद्रीनाथ जाने वाले श्रद्धालु यहां रूककर माता के दर्शन अवश्य करते हैं।

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नवरात्र में भक्तों की रहती है भारी भीड़

इस मंदिर में बहुत ही अदुभुत चमत्कार देखने को मिलता है दरअसल यहां माता रानी प्रतिदिन तीन बार अपना रूप बदली हैं। जहां वह प्रात: काल कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण कर लेती हैं। साल 2013 में जब केदारनाथ में जल प्रलय आया था तो कहा जाता है कि ये धारी देवी के गुस्से का ही नतीजा था क्यूंकि उससे अक दिन पहले ही माँ की मूर्ति को अक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर लाया गया था। देवभूमि उत्तराखंड के रक्षक के रूप में धारी देवी को जाना जाता है और उसकी पूजा अर्चना की जाती है। साल भर माँ धारी के दर्शन के लिए श्रधालुओं की भीड़ रहती है पर नवरात्रों में तो यहाँ भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है।

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हर मनोकामना होती है पूरी

धार्मिक मान्यता के अनुसार मां धारी देवी का शरीर कालीमठ में स्थित है। कालीमठ रूद्रप्रयाग का एक धार्मिक मठ है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि प्राकृतिक आपदा के दौरान माता का मंदिर पूरी तरह बह गया था, लेकिन एक चट्टान जैसी शिला से सटा मां की प्रतिमा पास के धारों नाम के गांव में बची रही। जिसके बाद गांव वालों को मां की आवाज सुनाई दी। मां ने गांववालों को उसी स्थान पर मंदिर निर्माण का आदेश दिया। मान्यता है कि माता के यहां मत्था टेकने से हर मनोकामनाएं पूरी होती है। और उसे वह मृत्यु के बाद सीधा मोक्ष धाम को प्राप्त होता है।

कैसे पहुंचे

माँ धारी देवी का मंदिर जौली ग्रांट एयरपोर्ट से 136 किलोमीटर और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से 119 किलोमीटर पर स्थित है। धारी देवी मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच कल्यासौर में स्थित है। श्रीनगर-धारी देवी और धारी देवी-रुद्रप्रयाग के बीच क्रमश: 16 किमी और 20 किमी दूर है। श्रीनगर और रुद्रप्रयाग से बस या टैक्सी द्वारा आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है।