अगर सफल नहीं हुआ ‘बुआ-बबुआ’ का गठबंधन, तो सपा-बसपा का हो जाएगा ऐसा हाल …

लखनऊ-न्यूज टुडे नेटवर्क : आगामी लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। चुनावी रण जीतने के लिए वो दल भी एक साथ आ गया, जिनके बीच विचारों की बड़ी खाई थी। राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने इस खाई को भी पाट दिया। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती
 | 
अगर सफल नहीं हुआ ‘बुआ-बबुआ’ का गठबंधन, तो सपा-बसपा का हो जाएगा ऐसा हाल …

लखनऊ-न्यूज टुडे नेटवर्क : आगामी लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। चुनावी रण जीतने के लिए वो दल भी एक साथ आ गया, जिनके बीच विचारों की बड़ी खाई थी। राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने इस खाई को भी पाट दिया। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी (एसपी) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में गठबंधन का ऐलान कर दिया। यही वजह है कि अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए सपा-बसपा ने 23 साल पुरानी ‘1995 गेस्ट हाउस कांड’ की दुश्मनी भुलाकर गठबंधन करने का फैसला किया है। इसके बावजूद अगर सपा-बसपा मिलकर भी नरेंद्र मोदी के विजय रथ को उत्तर प्रदेश में नहीं रोक पाते हैं तो फिर दोनों दलों खासकर बसपा के लिए अपने राजनीतिक वजूद को बरकरार रख पाना मुश्किल साबित हो सकता है।

अगर सफल नहीं हुआ ‘बुआ-बबुआ’ का गठबंधन, तो सपा-बसपा का हो जाएगा ऐसा हाल …

तीसरी ताकत के रूप में उतरेगी कांग्रेस

मायावती और अखिलेश यादव ने गठबंधन कर नरेंद्र मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस ने सूबे के छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर तीसरी ताकत के रूप में सभी सीटों पर उतरने का फैसला किया है. सपा-बसपा गठबंधन दलित, यादव और मुस्लिम वोटबैंक के दम पर जहां सूबे की सियासी जंग फतह करने की उम्मीद लगा रही हैं।

मुकाबला त्रिकोलीण होने की संभावना

वहीं, बीजेपी सवर्ण, गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित मतदाताओं के सहारे 2014 जैसे नतीजे दोहराने की बात कह रही है। हालांकि, कांग्रेस को तीन राज्यों में मिली जीत से उसके हौसले बुलंद है। ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना दिख रहा है। सूबे का सियासी संग्राम में कोई भी किसी से कम नहीं नजर आ रहा है। ऐसे में सपा-बसपा सूबे में मोदी को मात नहीं दे पाते हैं तो फिर उनके सामने सियासी संकट खड़ा होना लाजमी है।

अगर सफल नहीं हुआ ‘बुआ-बबुआ’ का गठबंधन, तो सपा-बसपा का हो जाएगा ऐसा हाल …

सपा-बसपा के लिए अस्तित्व बचाने की चुनौती

यूपी के 2012 विधानसभा चुनाव के बाद से मायावती का लगातार जनाधार घटा है. उनकी पार्टी लगातार दो विधानसभा चुनाव हार चुकी है और लोकसभा में उनका खाता तक नहीं खुला है। मौजूदा समय में यूपी में बसपा के पास 19 विधायक हैं, लेकिन लोकसभा सदस्य एक भी नहीं है। वहीं, सपा 2014 में मात खाने के बाद 2017 में अखिलेश यादव को सत्ता गंवानी पड़ी। सपा के पास महज 47 विधायक है, ये पार्टी के इतिहास में सबसे कम है। ऐसे में सपा-बसपा मिलकर 2019 में कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर पाते हैं तो दोनों दलों को अपने अस्तित्व को बचाए रखना बहुत मुश्किल होगा।

दलित-ओबीसी वोटबैंक की दावेदारी कमजोर होगी

सूबे का दलित मतदाता बसपा का मूलवोट बैंक माना जाता है। यही वजह है कि 2014 में करीब 19 फीसदी और 2017 में बसपा को 21 फीसदी के करीब वोट मिला है। वहीं, सपा का परंपरागत वोट बैंक यादव और मुस्लिम के साथ-साथ ओबीसी माने जाते हैं। इसी के मद्देनजर सपा-बसपा ने गठबंधन किया है, लेकिन इसके बावजूद अगर बीजेपी को मात नहीं दे पाते हैं तो फिर दोनों पार्टियों के वोटबैंक का झुकाव दूसरे दलों की तरफ हो सकता है।

सूबे में राष्ट्रीय दल हावी होंगे

सपा-बसपा मिलकर चुनावी मैदान में बीजेपी को नहीं हरा पाते हैं तो ऐसी हालत में दोनों दलों के वोटबैंक छिटक सकते हैं। ऐसी स्थिति में इन दोनों दलों के परंपरागत वोट राष्ट्रीय दलों की तरफ जाने का रुख कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस और बीजेपी- दोनों दलों को इससे ताकत मिलेगी।

अगर सफल नहीं हुआ ‘बुआ-बबुआ’ का गठबंधन, तो सपा-बसपा का हो जाएगा ऐसा हाल …

बीजेपी के लिए भी चुनौतियां कम नहीं

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी अच्छे से समझ रही है कि उत्तर प्रदेश में इस बार उसे वोटों के ध्रुवीकरण और वोट विभाजन का वैसा राजनीति फायदा नहीं मिलने वाला, जैसा कि 2014 में हासिल हुआ था बीएसपी-एसपी के गठबंधन ने बीजेपी के सामने नए सिरे से गुणा-गणित करने की जरूरत ला दी है। बीजेपी के लिए गैर-जाटव वोटर्स को अपने साथ बनाकर रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी, जिन्होंने साल 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के यूपी चुनाव में बीजेपी को वोट दिया था। अब नया गठबंधन बनने पर ये वोट बैंक बीएसपी की ओर लौट सकते हैं।

बीजेपी के महासचिव विजय बहादुर पाठक बताते हैं, कि ‘यूपी की जनता ने इसके पहले दो बार बीएसपी-एसपी का गठबंधन देखा है। जनता सब समझती है। वह बीएसपी-एसपी के नए गठबंधन को नकार देगी।’ बहरहाल, पार्टी के नेता जो भी कहे, लेकिन सच तो ये है कि बीजेपी यूपी में हुए नए गठबंधन से चिंतित जरूर है। शायद यही वजह है कि नई दिल्ली के रामलीला मैदान में हुए बीजेपी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पार्टी के टॉप नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और नितिन गडकरी ने बीएसपी-एसपी गठबंधन का जिक्र किया. कैडर को बार-बार भरोसा दिलाने की कोशिश गई कि डरने की जरूरत नहीं है। हमें अंत तक लडऩा है और उम्मीद नहीं छोडऩी है।