बागेश्वर : हिमालय का एक खूबसूरत ‘गहना’ है बागेश्वर धाम, यहां भगवान शिव ‘बाघ ‘ के रूप में हुए थे अवतरित

बागेश्वर-न्यूज टुडे नेटवर्क : बागेश्वर कुमाऊँ का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह नीलेश्वर और भीलेश्वर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच सरयू, गोमती व विलुप्त सरस्वती नदी के संगम पर बसा है। हिमालय का एक खूबसूरत गहना है बागेश्वर , जो बर्फीली घाटियों, पहाड़ और आरामदायक मौसम के लिए जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के
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बागेश्वर : हिमालय का एक खूबसूरत ‘गहना’ है बागेश्वर धाम, यहां भगवान शिव ‘बाघ ‘ के रूप में हुए थे अवतरित

बागेश्वर-न्यूज टुडे नेटवर्क : बागेश्वर कुमाऊँ का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह नीलेश्वर और भीलेश्वर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच सरयू, गोमती व विलुप्त सरस्वती नदी के संगम पर बसा है। हिमालय का एक खूबसूरत गहना है बागेश्वर , जो बर्फीली घाटियों, पहाड़ और आरामदायक मौसम के लिए जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव यहां बाघ के रूप में रहने आए थे। यही कारण है कि इस शहर को बागेश्वर कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘बाघ की भूमि’। उत्तराखंड के अन्य आकर्षणों की भांति यहां भी कई प्राचीन मंदिर मौजूद हैं। बागेश्वर में प्रतिवर्ष के बागनाथ मंदिर में ही प्रतिवर्ष विश्वप्रसिद्ध उत्तरायणी मेला भी लगता है। प्राकृतिक स्थलों के अलावा आप यहां एडवेंचर का रोमांचक आनंद ले सकते हैं। जानिए यहां के चुनिंदा दर्शनीय स्थलों के बारे में, जो आपकी बागेश्वर यात्रा को सुखद बना सकते हैं।

बागेश्वर और बागनाथ मंदिर का पौराणिक महत्व

बागेश्वर का जिक्र स्कन्द पुराण के मानस खंड में भी किया गया है। आदिकाल में भगवान शंकर ने अपने प्रियगण चंडीश को नीलेश्वर तथा भीलेश्वर की पहाड़ी को खोजने का निर्देश दिया था। शिवजी की आज्ञा पाकर उन्होंने इस स्थल को खोज निकाला। चंडीश ने जहां भीलेश्वर में मां चंडिका तथा नीलेश्वर में नीलेश्वर महादेव, मां उल्का, वेणीमाधव, लक्ष्मी नारायण समेत अनेक देवी देवताओं को बसाया। चंडीश का बसाया यह नगर भोलेनाथ को बहुत पसंद आया। उन्होंने पार्वती समेत यहां रहने का मन बनाया। पुराण के अनुसार भगवान शंकर ने इस स्थल को उत्तर की काशी का नाम दिया। उनके साथ में कालभैरव नाथ, बाणेश्वर तथा नंदी भी आए। एक बार की बात है कि मुनि वशिष्ठ सरयू को मनसरोवर से अयोध्या की ओर ले जा रहे थे। यहां पहुंचने पर उन्हें ब्रह्मकपाली पर मार्कण्डेय ऋषि तपस्या में लीन मिले।

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मुनि की तपस्या भंग होने का अंदेशा होने पर वह सरयू को आगे नहीं ले जा सके। अत्यधिक जल भराव होने पर उन्होंने भोलेनाथ की आराधना की। शंकर जी पार्वती समेत वहां पहुंचे। उन्होंने ऋषि मार्कण्डेय की तपस्या भंग करने को युक्ति सोची। पार्वती को आदेश दिया कि वह गाय बन जाएं और खुद शिवजी बाघ का रूप धारण कर उन पर झपटेंगे। जैसे ही मायावी बाघ गाय पर झपटा तो वह रंभाने लगी। इससे मार्कण्डेय जी की आंखें खुल गई। वह गाय को बाघ से मुक्त करने दौड़े ही तो सरयू आगे बढ़ गई। भोलेनाथ तथा पार्वती ने प्रकट होकर मार्कण्डेय जी को आशीर्वाद दिया।

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वशिष्ठ जी तीनों को प्रणाम कर आगे बढ़ गए। शिवजी के बाघ का रूप धारण करने से इस नगर का नाम व्याघ्रेश्वर पड़ा जो अब बिगडक़र बागेश्वर हो गया है। मार्कण्डेय मुनि की तपस्थली होने से इसे मार्कण्डेय ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान बागनाथ को जो भी श्रद्धालु 108 लोटा जल चढ़ाता है, उसकी सभी मनोकामनाएं भोलेनाथ पूरी कर देते हैं। यह गोमती और सरयू नाम की दो पवित्र नदियों के संगम स्थल पर स्थित है। बागनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यह वो स्थान है जहां वे ध्यान लगाया करते थे। यह एक प्राचीन मंदिर है जिसका निर्माण 1450 में कुमाऊं के राजा लक्ष्मी चंद ने करवाया था। यहां आने का सबसे अच्छा समय शिवरात्रि है। इस दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु यहां जल चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं ।

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बैजनाथ धाम : यहीं हुआ था भगवान शिव और पार्वती का ब्याह

बागेश्वर जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक स्थल है बैजनाथ धाम। यह मंदिर बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील के अंतर्गत आता है और यह मंदिर गरुड़ से 02 किलोमीटर की दूरी पर गोमती नदी के किनारे पर स्थित है। बैजनाथ धाम एक ऐसा शिव धाम है। जहां शिव और पार्वती एक साथ विराजमान हैं। कहा जाता है कि शिव और पार्वती का यहीं विवाह हुआ था। जो व्यक्ति सच्चे मन से यहां भगवान शिव और पार्वती के दर्शन करने आता है। उसकी मन्नत निश्चित तौर पर पूरी होती है। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि बैजनाथ 7 वीं से 11 वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास कत्यूरी राजवंश की राजधानी हुआ करता था, जिसका प्रारंभिक नाम कार्तिकेयपुर था। बैजनाथ मंदिर भी कत्यूरी राजाओ द्वारा बनवाया गया था, जिसमें भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान ब्रह्मा और विभिन्न अन्य हिंदू देवताओं की मूर्तियों को स्थापित किया गया था।

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चंदिका मंदिर

उपरोक्त धार्मिक स्थलों के अलावा आप यहां चंदिका मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। चांदिका मंदिर हिंदू देवी चंडीका माई को समर्पित है जो मां काली का ही एक रूप हैं। यह मंदिर बागेश्वर से केवल आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां नवरात्रों के दिनों में श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा लगता है। इसके अलावा चंडिका मंदिरा स्थानीय लोगों के लिए एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव के लिए आप यहां की यात्रा कर सकते हैं।

पिंडारी और सुन्दरढूंगा ग्लेशियर

यदि आप एक साहसिक ट्रैवलर हैं, तो पिंडारी और सुन्दरढूंगा ग्लेशियर ट्रेकिंग का रोमांचक आनंद जरूर लें। पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा सुन्दरढूंगा ग्लेशियर से ज्यादा सरल मानी जाती है। ये दोनो ही स्थल रोमांचक ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध हैं, जो दूर-दराज के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करने का काम करते हैं। पिंडारी ग्लेशियर 3353 मीटर की ऊंचाई के साथ नंदा देवी के किनारे स्थित है। वहीं सुन्दरढूंगा ग्लेशियर पिंडारी के दूसरी तरफ स्थित है। ये दोनों की पर्वतीय बिंदु हिमालय के अद्भुत दृश्य पेश करने का काम करते हैं।

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कौसानी

उपरोक्त स्थानों के अलावा आप बागेश्वर से 38 किमी की दूरी पर स्थित कौसानी की यात्रा कर सकते हैं। कौसानी की प्राकृतिक खूबसूरती को देखते हुए इसे भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। 1929 में यहां की यात्रा के दौरान राष्ट्रपिता महात्म गांधी ने इस स्थल को स्विट्जऱलैंड कहकर सम्मानित किया था। कौसानी प्राचीन परिदृश्य के साथ शानदार घाटियां और सुरम्य हरियाली के लिए जाना जाता है। अगर आप प्राकृतिक सौंदर्यता का जी भरकर आनंद उठाना चाहते हैं तो यहां जरूर आएं।

कैसे पहुंचें

रेल द्वारा: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है।

वायु से: निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है।

सड़क मार्ग से: बागेश्वर शहर अच्छी तरह से भारत के महत्वपूर्ण शहरों से जुड़ा हुआ है। बागेश्वर पहुंचने के 
लिए कोई भी बस और निजी टैक्सी ले सकता है। काठगोदाम से बागेश्वर की दूरी करी 157 किमी. है।