हल्द्वानी- इस गांव के कदली वृक्ष से मां नंदा सुनंदा की बनेगी मूर्ति, इसलिए चुना जाता है स्वर्गफल का ही पेड़

हल्द्वानी न्यूज- नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव की शुरुआत हो गयी है। इस बार नंदा सुनंदा की मूर्ति के लिये कदली वृक्ष हल्द्वानी के गौलापार देवला मल्ला गांव से चिन्हित किया गया है। जिसको आज पूरे रीती रिवाज के साथ नैनीताल ले जाया जा रहा है। इस महोत्सव के लिए कदली यानी केले के पेड़ों
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हल्द्वानी- इस गांव के कदली वृक्ष से मां नंदा सुनंदा की बनेगी मूर्ति, इसलिए चुना जाता है स्वर्गफल का ही पेड़

हल्द्वानी न्यूज- नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव की शुरुआत हो गयी है। इस बार नंदा सुनंदा की मूर्ति के लिये कदली वृक्ष हल्द्वानी के गौलापार देवला मल्ला गांव से चिन्हित किया गया है। जिसको आज पूरे रीती रिवाज के साथ नैनीताल ले जाया जा रहा है। इस महोत्सव के लिए कदली यानी केले के पेड़ों से माँ नंदा सुनंदा की मूर्ति बनायें जाने की मान्यता है। बता दें कि धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मां नंदादेवी का मेला प्रत्येक वर्ष विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। मां नंदा को पूरे उत्तराखंड में विशेष मान मिला है। वेदों में जिस हिमालय पर्वत को देवात्मातुल्य माना गया है नंदा उसी की सुपुत्री है।

हल्द्वानी- इस गांव के कदली वृक्ष से मां नंदा सुनंदा की बनेगी मूर्ति, इसलिए चुना जाता है स्वर्गफल का ही पेड़

आदिशक्ति नंदा देवी को उत्तराखंड में बड़ी श्रद्धा से पूजने की परंपरा शताब्दियों से है। मां नंदा के मान-सम्मान में उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिवर्ष मेलों का आयोजन किया जाता है। यह मेला अल्मोड़ा सहित नैनीताल में आयोजित होते है। कुमांऊ के चन्द राजाओं की कुलदेवी भी नंदादेवी ही थीं इसलिये यहां के लोग नन्दा देवी के उपासक हैं। इस बार नंदा देवी महोत्सव के लिए माँ नंदा सुनंदा की मूर्ति के लिए कदली वृक्ष यानी केले के पेड़ हल्द्वानी गौलापार से जा रहे है। आज विधिवत रूप से पूजा अर्चना के बाद कदली वृक्ष को नैनीताल के लिए ले जाया गया है।

बेहद की खास है वृक्ष की चयन प्रक्रिया

खास बात है कि मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमा के लिए योग्य वृक्ष के चयन की प्रक्रिया बड़ी अद्भुत व आध्यात्म पर आधारित है। केले के बागान (किंवाड़ी) में शुभ मुहूर्त में पुरोहित अभिमंत्रित चावल फेंकते हैं। तभी मां को अर्पित किए जाने योग्य कदली वृक्ष का तना व उसकी पत्तियां अप्रत्याशित रूप से हिल कर संकेत दे देता है। पंडित या शास्त्री एवं यजमान उसी वृक्ष का चयन कर गंगा जल से स्नान करा तिलक-चंदन एवं लाल व सफेद वस्त्र बांधते हैं। उसे काटे जाने तक बाकायदा नियमित पूजन किया जाता है। मुहूर्त के अनुरूप पेड़ का चुनाव कर गंगा जल स्नान, टीका-चंदन व लाल व सफेद वस्त्र बांध अभिषेक किया जाता है।

हल्द्वानी- इस गांव के कदली वृक्ष से मां नंदा सुनंदा की बनेगी मूर्ति, इसलिए चुना जाता है स्वर्गफल का ही पेड़

इसलिए चुना जाता है स्वर्गफल का ही पेड़

लोककथा के अनुसार ससुराल को जाते वक्त मां नंदा व सुनंदा पर एक भैंसे ने हमला बोल दिया था। बचने के लिए दोनों बहनें कदली के बागान (किंवाड़ी) में जा छिपी। तभी बकरा उधर पहुंचा और उसने प्रवृत्ति के अनुरूप केले के पत्ते खा लिए। किंवदंती है कि कदली वृक्षों के पीछे छिपकर बैठीं नंदा-सुनंदा को भैंसे ने देख लिया और दोबारा हमला बोल दिया। तभी से कदली वृक्ष से प्रतिमा बनाने की परंपरा शुरू हुई। दूसरी कथा के मुताबिक कदली को स्वर्ग फल कहा जाता है जो सबसे शुद्ध पेड़ माना जाता है। इसीलिए आराध्य देवी की प्रतिमा बनाने में इसी वृक्ष के तनों व पत्तों का इस्तेमाल होता आ रहा है।