हल्द्वानी-सियाचिन में तैनात उत्तराखंड के लाल का गीत वायरल, सुरों में समेटा पहाड़ का दर्द

हल्द्वानी। (जीवन राज)- इन दिनों उत्तराखंडी संगीत अपनी चरम सीमा पर है। उत्तराखंड के संगीत को संवारने में कई कलाकारों ने मेहनत की है। इनमें एक ऐसा नाम भी शामिल है जो देशसेवा के साथ-साथ उत्तराखंड की संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहे है। लंबे समय से अपनी उत्तराखंड की गायकी में अपनी
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हल्द्वानी-सियाचिन में तैनात उत्तराखंड के लाल का गीत वायरल, सुरों में समेटा पहाड़ का दर्द

हल्द्वानी। (जीवन राज)- इन दिनों उत्तराखंडी संगीत अपनी चरम सीमा पर है। उत्तराखंड के संगीत को संवारने में कई कलाकारों ने मेहनत की है। इनमें एक ऐसा नाम भी शामिल है जो देशसेवा के साथ-साथ उत्तराखंड की संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहे है। लंबे समय से अपनी उत्तराखंड की गायकी में अपनी छाप छोड़ चुके फौजी ईश्वर मेहरा के गीतों का आज हर कोई दीवाना है। ईश्वर के गीतों में पहाड़ का दर्द छलकता है। उनके अधिकांश गीत पहाड़ के दर्द पर आधारित है, जो वह अपनी ड्यूटी के दौरान समय मिलने पर लिखते है। इन दिनों उनका एक गीत दिन कैसी काटला रिलीज हुआ है जो पहाड़ के बेरोजगारों का दर्द बयां कर रहा है।

आर्मी में भर्ती के बाद निकाली पहली एलबम

लोकगायक फौैजी ईश्वर मेहरा ने फोन पर बातचीत में बताया कि पहाड़ में रहकर पहाड़ी गीतों से लगाव न हो तो वह पहाड़ी कैसा। बचपन से पहाड़ी गीत सुनने का बड़ा शौक था। गाने सुनते-सुनते मन में एक ललक होने लगी कि मैं भी गाऊंगा। लेकिन कैसे क्या होगा पता नहीं था। इन सबके बीच जो खास था वह था रोजगार। जिसकी बदौलत आगे का भविष्य तय होना था। वर्ष 2002 उनकी जिंदगी के लिए एक अहम पड़ाव साबित हुआ। वह रानीखेत से आर्मी में भर्ती हो गये। नौ माह की ट्रेनिंग में घर की बहुत याद सताती थी। वही दर्द उन्होंने अपनी कमल से अपने डायरी के पन्नों में उतार दिया। वर्ष 2004 में उनकी पहली एलबम रिलीज हुआ जिसका नाम था सरहद। पहली बार फौजी भाई को सुनकर पहाड़ के लोगों ने उनकी सराहना की।

गीतों में झलकता है पहाड़ का दर्द

इसके बाद उनके कई गीत मार्केट में आये, जिन्हें लोगों ने खूब पसंद किया। इस बीच उनकी पोस्टिंग लद्दलाख में हो गई तो उनके गाने रिकॉर्ड करने का समय नहीं मिला। जब भी समय मिलता वह अपना दर्द डायरी के पन्नों में लिख देते। काफी अंतरात के बाद वर्ष 2017 में उन्होंने उत्तराखंडी संगीत मेंं दोबारा कदम रखा। इस बीच उनके त्यर मुलुक, रीति-रिवाज, भेंट-घाट, ऐजा परदेशी, राते आये स्वीणा और गैल पातल जैसे कई दर्द भरे गाने मार्केट में आये जिन्हें लोगों ने खूब पसंद किया। उन्होंने नीलम कैसेट, एटीएस और पप्पू कार्की चैनल से अपने गीत रिलीज किये। इसके बाद लोकगायक स्व. पप्पू कार्की की राय पर उन्होंने अपना खुद का ईश्वर मेहरा नाम से एक यू-ट्यूब चैनल बनाया। अब उसी में उनके सारे गीत रिलीज होते है।

हल्द्वानी-सियाचिन में तैनात उत्तराखंड के लाल का गीत वायरल, सुरों में समेटा पहाड़ का दर्द

उत्तराखंड की संस्कृति को संवारने में जुटे-ईश्वर

फौजी ईश्वर मेहरा ने बताया कि इन दिनों वह सियाचिन में तैनात है। छुट्टियों में घर आने में अपने गीतों की रिकॉडिंग करते है। हाल ही में उनका गीत दिल कैसी काटला रिलीज हुआ है। जो बेरोजगारों के दर्द को बयां करता है। उन्होंने पलायन, खाली होते गांव और रीति-रिवाजों को लेकर अपने गीतों में फोकस किया है। जिससे आने वाली पीढ़ी अपने रीति-रिवाजों और रूढिय़ों को याद कर सकें। उन्होंने बताया कि शीघ्र उनके कई और गीत रिलीज होंगे। ड्यूटी में व्यवस्ता के चलते वह अपने गीतों की रिकॉडिंग नहीं कर पाते है लेकिन जब भी उन्हें समय मिलता है तो वह उत्तराखंड के संगीत को आगे बढ़ाने का प्रयास करते है। देश की सुरक्षा करना उनका पहला कर्तव्य है। इसके साथ-साथ उन्हें उत्तराखंड की संस्कृति को आगे बढ़ाने का मौका मिलता है यह उनके लिए गर्व की बात है।