हल्द्वानी-गरीबी में पले शंकर ने पाया संगीत में मुकाम, ऐसे बंया किया मां और पहाड़ से बिछडऩे का दर्द

हल्द्वानी-(जीवन राज)-गरीबी इंसान को मेहनत करना सिखाती है, जब वही मेहनत रंग लाती है तो मंजिल मिल जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ लोकगायक शंकर कुमार के साथ। जिनका गीत इन दिनों लॉकडाउन में लौट रहे प्रवासियों पर सटीक बैठता है। लोकगायक शंकर कुमार ने छुटी ग्यो पहाड़ गीत में पहाड़ का दर्द और मां
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हल्द्वानी-गरीबी में पले शंकर ने पाया संगीत में मुकाम, ऐसे बंया किया मां और पहाड़  से बिछडऩे का दर्द

हल्द्वानी-(जीवन राज)-गरीबी इंसान को मेहनत करना सिखाती है, जब वही मेहनत रंग लाती है तो मंजिल मिल जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ लोकगायक शंकर कुमार के साथ। जिनका गीत इन दिनों लॉकडाउन में लौट रहे प्रवासियों पर सटीक बैठता है। लोकगायक शंकर कुमार ने छुटी ग्यो पहाड़ गीत में पहाड़ का दर्द और मां का प्यार के सुंदर वर्णन किया। आज यह गीत प्रवासियों पर सटीक बैठता है। दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में जो लोग पहाड़ से पलायन कर रहे है। लेकिन कोई पहाड़ नहीं छोडऩा चाहता है। ऐसे में आज जब लोग लॉकडाउन में फंस गये है तो सभी पहाड़ लौटना चाहते है। इस गीत के माध्यम से शंकर कुमार ने पहाड़ का दर्द बयां किया है। उन्होंने अपने गीत के माध्यम से कहा कि सिर्फ दो रोटी के लिए हमें पहाड़ छोडऩा पड़ रहा है।

मूलरूप से सोमेश्वर तहसील के रौल्याणा गांव के रहने वाले शंकर कुमार इन दिनों दिल्ली में है। बचपन से ही लोक संस्कृति के प्रति उनका प्यार उन्हें संगीत की ओर ले गया। लेकिन मंजिल अभी बहुत दूर थी। अभी कई परीक्षाएं पास करनी थी। उन्होंने कई लोगों के माध्यम से स्टूडियों तक पहुंचने का प्रयास किया लेकिन उनका यह प्रयास असफल रहा। संगीत की दुनियां में आने के लिए उन्होंने अपनी मां के जेवर तक बेच डाले। दिल में एक ललक थी उत्तराखंड के संगीत जगत में कदम रखने की। लेकिन मंजिल तक पहुंचाना आसान नहीं था। कंपटीशन बहुत था।

हल्द्वानी-गरीबी में पले शंकर ने पाया संगीत में मुकाम, ऐसे बंया किया मां और पहाड़  से बिछडऩे का दर्द
धीरे-धीरे उन्होंने अपनी मंजिल की ओर बढऩे के लिए कदम बढ़ाये। उनका पहला गीत मार्केट में आया तो लोगों ने उन्हें प्यार दिया। फिर चल पड़ी शंकर की गाड़ी। आज उनका गीत सुपरहिट हो गया। आज हर कोई उनकी सुरीली आवाज का दीवाना है। उनका गीत छुटी ग्यो पहाड़ ने लोगों का दर्द बयां किया है। आज हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है। यह गीत उन्होंने अपनी मां को समर्पित किया। पहाड़ से पलायन का दर्द और मां से बिछडऩे का दुख इस गीत में सुनने को मिलता है। यह गीत यूके गु्रप कौसानी यू-ट्यूब चैनल से रिलीज हुआ है। शंकर खुद ही अपने लिए गीत लिखते है फिर अपनी सुरीली आवाज से उसे लोगों तक पहुंचाते है। इसके अलावा उन्होंने कई लोकगायकों के लिए गीत लिखे जो काफी हिट भी हुए।

फकीरा चिन्याल को सुनकर सीखा संगीत

उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक फकीरा चन्द्र चिन्याल ने 90 के दशक में अपनी गायकी से देवभूमि पर कब्जा किया। उन्हीं के गीतों को सुनकर शंकर ने संगीत में रूचि दिखाई। आज शंकर एक उभरते हुए लोकगायक के तौर पर खड़े है। उन्होंने कहा कि वह उत्तराखंड की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए सदैव अग्रसर है। लोगों के प्यार ने उन्हें आज इस मुकाम पर पहुंचाया है। लोकगायक शंकर कुमार ने बताया कि आगामी 20 मई को उनका गीत सीमा बसीगे दिल मा रिलीज होगा जो यूके ग्रुप कौसानी यू-ट्यूब चैनल से आयेगा। उन्होंने उम्मीद जताई की जिस तरह लोगों ने उन्हें छुटी ग्यो पहाड़ गीत में प्यार दिया, ऐसा ही प्यार इस गीत में मिलेगा।