हल्द्वानी- पढिय़ें पवलगढ़ के प्रकृति प्रहरी मनोहर की कहानी, कैसे ईको-पर्यटन को दे रहे हैं बढ़ावा

Haldwani News- वनों के संरक्षण के लिए हमेशा से आगे रहा है। उत्तराखंड एक बार फिर मनोहर सिंह मनराल को लेकर सुर्खियों में है। पवलगढ़ कन्जरवेशन रिजर्व के आसपास रहने वाले ग्रामीणों ने राज्य स्थापना के बाद मानने लगे कि वनों अस्तित्व से उन्हें लाभ मिलेगा। इसका बीड़ा उठाया प्रकृति प्रेमी मनोहर सिंह मनराल ने
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हल्द्वानी- पढिय़ें पवलगढ़ के प्रकृति प्रहरी मनोहर की कहानी, कैसे ईको-पर्यटन को दे रहे हैं बढ़ावा

Haldwani News- वनों के संरक्षण के लिए हमेशा से आगे रहा है। उत्तराखंड एक बार फिर मनोहर सिंह मनराल को लेकर सुर्खियों में है। पवलगढ़ कन्जरवेशन रिजर्व के आसपास रहने वाले ग्रामीणों ने राज्य स्थापना के बाद मानने लगे कि वनों अस्तित्व से उन्हें लाभ मिलेगा। इसका बीड़ा उठाया प्रकृति प्रेमी मनोहर सिंह मनराल ने जो प्रकृति की देररेख में हमेश सजग रहते है। पर्यावरण से बगैर छेड़छाड़ किये उन्होंने ईको-पर्यटन को आजीविका के रूप में अपनाने का प्रयास किया। लोगों ने भी उनका साथ दिया। उनकी इस सोच में सफलता मिली। वर्ष 2015 में 4 से 8 फरवीर पवलगढ़ में स्प्रिंग बर्ड फेस्टिवल का आयोजन किया गया।

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इस कार्यक्रम ने उन्हें एक नई ऊर्जा मिली। यह फेस्टिवल इतना छाया कि पवलगढ़ को देश-विदेश में नई पहचान मिल गई। इस कार्यक्रम का आयोजन राजीव भर्तरी निदेशक ईको-टूरिज्म, डीएफओ कहकशं नसीम रामनगर वन प्रभाग, संजय सोंढ़ी, अंचल सोंढ़ी और तितली ट्रस्ट के प्रसायों से हुआ। इससे लोगों का सपना पूरा करने में अहम योगदान दिया। इसके बाद वर्ष 2015 में ही पवलगढ़ प्रकृति प्रहरी नाम से संस्था गठन किया गया।

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इसके प्रतीक चिन्ह का डिजायन पर्यावरण हितैषी मनोहर सिंह मनराल ने किया। जिससे तितल ट्रस्ट द्वारा अंतिम रून दिया गया। इसके बाद हर 15 दिनों में प्रकृति प्रहरी पर्यावरण संबंधी कार्यशालाओं का आयोजन करने लगे।

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पवलगढ़ के प्रकृति प्रहरी सदस्य स्थानीय क्रिया-कलापों में हिस्सा लेने लगे। प्रकृति प्रहरी के नियम व कार्य सदस्यों की संख्या को बढ़ाना था। इस संस्था के अधिकांश सदस्य होम स्टे पर्यटन सफारी, नेचर गाइड जैसे काम करते है। उनकी योग्यता के हिसाब से उन्हें काम मिल जाता है। उनका उत्साहवर्धन डब्लूडब्लूएफ, कार्बेट फाउडेशन जैसे कई एनजीओ ने किया। उनका मानना है कि संरक्षित क्षेत्रों में पवलगढ़ कजरवेशन रिजर्व पहले मॉडल के रूप में स्थापित होगा। यह मानव-वन्यजीव के आपसी संघर्ष को कम करने में सहायक सिद्ध होगा