हल्द्वानी-एवरेस्ट पर चढऩे वाली दस टॉप-10 भारतीय महिलाएं, इनकी कहानियां आपके हौंसलों में भी लगा देगी पंख
हल्द्वानी-न्यूज टुडे नेटवर्क-आज बेटियां हर क्षेत्र में बेटों से आगे हैं। समय-समय बेटियों ने विश्वभर में अपना कीर्तिमान स्थापित किया है। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने में कामयाबी हासिल की। देशभर की कई बेटियों ने भारत का नाम रोशन किया है। इस श्रेणी में उत्तराखंड का नाम भी शामिल है। जहां से एक नहीं बल्कि
चार-चार पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट की चढ़ाई की। बहुत कम लोगों को पता नहीं है कि उत्तराखंड की ये बेटियां कौन है। जिस तरह से आज बेटियां हर क्षेत्र में अपना डंका बजा रही उससे साफ होता है कि आने वाला समय बेटियों का ही होगा। आठये जानते है कौन है ये बेटियां जो विश्वभर में नाम कमा चुकी है।
शीतल
उत्तराखंड की शीतल ने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने में कामयाबी हासिल की। शीतल ने माउंट एवरेस्ट पर पहली बार अपने कदम रखे। करीब 15 मिनट तक माउंट एवरेस्ट पर रहने के बाद शीतल नीचे उतरीं। एवरेस्ट फतह करने के मामले में पिथौरागढ़ के ही लवराज धर्मशक्तू के नाम सबसे अधिक छह बार का रिकॉर्ड दर्ज है। शीतल मूल रूप से पिथौरागढ़ के सल्मोड़ा की निवासी हैं। दुनिया की तीसरे सबसे ऊंचे पर्वत कंचनजंघा में फतह करने वाली दुनिया की सबसे युवा पर्वतारोही के रूप में भी शीतल का नाम गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। शीतल ने 22 वर्ष 10 महीने 23 दिन की उम्र में ओएनजीसी के मिशन कंचनजंघा एक्सपीडिशन 2018 के तहत कंचनजंघा पर तिरंगा फहराया था।
अंशु जमसेंपा
अरुणाचल प्रदेश की 32 वर्षीय अंशु जमसेंपा, जो दो बच्चों की माँ हैं, पांच दिनों में माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढऩे वाली एकमात्र महिला हैं। इससे पहले एवरेस्ट पर चढऩे का उसका पहला प्रयास वर्ष 2011 में था। अंशु जमसेंपा एक भारतीय पर्वतारोही और दुनिया की पहली महिला है, जिन्होंने सीजऩ में माउंट एवरेस्ट के शिखर पर दो बार ;केवल 5 दिन के अंदर चढ़ाई की हैं। यह एक औरत द्वारा सबसे ऊंची शिखर की सबसे तेज डबल चढ़ाई भी है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर कोई महिला इतनी जल्दी दोबारा नहीं पहुंची है। किसी महिला माउंट एवरेस्ट पर दोबारा पहुंचने का मौजूदा गिनीज बुक ऑफ़ वल्र्ड रिकॉर्ड सात दिनों का है।
बछेंद्री पाल
सन वर्ष 1984 में एवरेस्ट तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला थीं। वह गिन्नीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉड्र्स में लिस्टेड हैं और भारत सरकार द्वारा भारत के चौथे उच्चतम नागरिक पुरस्कारए पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित हैं। बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया। जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। 1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। बछेन्द्री पाल उत्तराखंड की रहने वाली है।
अरुणिमा सिन्हा
भारतीय महिला माउंटेनीयर्स की सूची में 2013 में एवेरेस्ट की चोटी तक पहुंचने वाली दुनिया में पहली अपंग महिला हैं। उन्होंने बचेंद्री पाल से माउंटेनीयर की फॅर्मल ट्रेनिंग ली थी। एक कृत्रिम पैर के साथ इस चोटी पर चढक़र उन्होंने दुनिया को दिखाया कि कुछ भी करना असंभव नहीं है। 2015 में उन्हें इसके लिए पद्म श्री प्राप्त हुआ। उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर जिले के भारत भारती संस्था ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली इस विकलांग महिला को सुल्तानपुर रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किये जाने की घोषणा की। सन 2016 में अरुणिमा सिन्हा को अम्बेडकरनगर रत्न पुरस्कार से अम्बेडकरनगर महोत्सव समिति की तरफ से नवाजा गया।
मालावथ पूर्णा
13 वर्षीय ने 2014 में माउंट एवरेस्ट के शिखर तक पहुंचकर चमत्कार कर दिखाया था। 25 मई 2014 को पूर्णा 13 वर्ष और 11 माह की उम्र में सबसे ऊंची चोटी पर पहुंची थी और वर्तमान में वह सबसे कम उम्र की लडक़ी है जिसने एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचकर अपना नाम रोशन किया। पूर्णा का पूरा नाम मालावथ पूर्णा है। माउंट एवरेस्ट की सबसे ऊंची चोटी को सबसे कम उम्र में छूने वाली दुनिया की दूसरी और भारत की पहली व्यक्ति हैं और दुनिया की पहली लडक़ी हैं। पूर्णा ने जब एवरेस्ट की चढ़ाई की तब वो 13 साल 11 महीने की थीं, जबकि जॉर्डन रोमेरो ने 13 साल 10 महीने की उम्र में यह कारनामा किया था।
ताशी और नुंग्शी मलिक
वर्ष 2013 में ताशी और नुंग्शी मलिक 21 वर्ष की उम्र में एवरेस्ट के शिखर पर चढऩे वाली पहली जुड़वां बहनें हैं। इसके साथ ही दोनों ने नार्थ पोल और साउथ पोल तक पहुंचने का वल्र्ड रिकॉर्ड भी बनाया है। वे दुनिया की सभी सात शिखर पर चढऩे वाली पहली भारतीय महिलाएं हैं। ये दोनों बहने उत्तराखंड के देहरादून की रहने वाली है। ताशी व नुंग्शी मलिक ने एवरेस्ट पर कदम रखकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया है। यह पहला मौका है जब दो जुड़वा बहनों ने एक साथ यह उपलब्धि हासिल की। ताशी-नुंग्शी ने अपने पर्वतारोहण की शुरुआत 2009 से उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग में पर्वतारोहण के कोर्स से की थी।
संतोष यादव
एक और महत्वपूर्ण माउंटेनियर जिन्होंने 1992 में माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़ाई करके 20 वर्ष की आयु में वल्र्ड रिकॉर्ड बनाया। संतोष यादव भारत की एक पर्वतारोही हैं। वह माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढऩे वाली विश्व की प्रथम महिला हैं। इसके अलावा वे कांगसुंग की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढऩे वाली विश्व की पहली महिला भी हैं। उन्होने पहले मई 1992 में और तत्पश्चात मई सन् 1993 में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त की।
डिकी डोल्मा
डिकी डोल्मा 1993 में एवरेस्ट पहुंचीं और तब वे एवेरेस्ट पर पहुंचने वाली सबसे कम उम्र की महिला थी। वे एक महान स्पोट्र्सवुमन हैं और उनके पास स्कीइंग और बेसिक माउंटेनीयरिंग कोर्स में फॉर्मल ट्रेनिंग भी है। बछेद्री पाल की अगुवाई में डिकी डोल्मा ने यह सफर पूरा किया।
प्रेमलता अग्रवाल
प्रेमलता अग्रवाल ने 50 वर्ष की उम्र में 2011 में माउंट एवरेस्ट चढकर पहली सबसे बुज़ार्ग भारतीय महिला होने का रिकॉर्ड कायम किया। वह दुनिया की सात सबसे ऊंची चोटियों पर चढऩे वाली पहली महिला भी हैं। ये भारत की पहली महिला हैं, जिनके नाम 50 साल की उम्र में विश्व के सात सर्वोच्च शिखरों को फतह कर उन पर तिरंगा फहराने का रिकॉर्ड है। साथ ही ये भारत की सबसे उम्रदराज महिला पर्वतारोही भी रही हैं।
कृष्णा पाटिल
कृष्णा पाटिल एक और भारतीय महिला हैं, जो 2009 में यूरोप और अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटियों की चढ़ाई के साथ एवरेस्ट पर चढ़ी थी। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर विजय पताका फहराने में इस शहर की डक़ी कृष्णा पाटिल भी सफल रही। छह विदेशी पर्वतारोहियों के साथ 12 अप्रैल से अभियान पर निकली कृष्णा ने माउंट एवरेस्ट पर चढऩे में कामयाबी हासिल की। कृष्णा इस अभियान दल में शामिल एकमात्र भारतीय पर्वतारोही हैं। कृष्णा की मां रंजना पाटिल ने बताया कि उनकी बेटी माउंट एवरेस्ट पर विजय हासिल करने वाली दुनिया की दूसरी सबसे युवा पर्वतारोही है। उन्होंने बताया कि कृष्णा ने दस साल की उम्र से ही पर्वतारोहण में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी थी।