हल्द्वानी- दिल्ली में दिखी पहाड़ की सबसे पुरानी रस्म, इस नये जोड़े ने दिया युवाओं को बड़ा संदेश

Haldwani News- (जीवन राज)-उत्तराखंड आज पलायन का दंश झेल रहा है। ऐसे में हर दिन युवा पहाड़ से पलायन कर बड़े-बड़े महानगरों का रूख कर रहा है। पलायन के चलते अपनी रीति-रिवाज और तीज-त्यौहारों को युवा पीछे छोड़ता जा रहा है। लेकिन दिल्ली में रहने वाले उत्तराखंडियों ने अपने रीति-रिवाजों को आज भी जिंदा रखा
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हल्द्वानी- दिल्ली में दिखी पहाड़ की सबसे पुरानी रस्म, इस नये जोड़े ने दिया युवाओं को बड़ा संदेश

Haldwani News- (जीवन राज)-उत्तराखंड आज पलायन का दंश झेल रहा है। ऐसे में हर दिन युवा पहाड़ से पलायन कर बड़े-बड़े महानगरों का रूख कर रहा है। पलायन के चलते अपनी रीति-रिवाज और तीज-त्यौहारों को युवा पीछे छोड़ता जा रहा है। लेकिन दिल्ली में रहने वाले उत्तराखंडियों ने अपने रीति-रिवाजों को आज भी जिंदा रखा हैं, जो पलायन कर चुके अन्य प्रवासियों को भी बड़ा संदेश दे रहा है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के उभरते हुए लोकगायक सुनील कुमार की। जिन्होंने अपने सुरों से उत्तराखंड की संस्कृति को आगे बढ़ाने के साथ पहाड़ के रीति-रिवाजों को भी जिंदा रखा।

हल्द्वानी- दिल्ली में दिखी पहाड़ की सबसे पुरानी रस्म, इस नये जोड़े ने दिया युवाओं को बड़ा संदेश

दिल्ली में हुई पिठयां रस्म

विगत 29 अक्टूबर को सुनील कुमार की शादी दिल्ली में रहने वाली नेहा आर्या से तय हुई। सुनील कुमार मूलरूप से खलना द्वाराहाट जिला अल्मोड़ा के मूल निवासी है जबकि वर्तमान में उनका परिवार दिल्ली के पालम द्वारका में रहता है। वही नेहा आर्या मूलरूप से अल्मोड़ा जिले के स्यालीधार के रहने वाली है। वर्तमान में वह संतनगर दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती है। कई वर्षों से दिल्ली में बसे इन दोनों परिवारों ने अपने बच्चों की पीठयां रस्म (रोका) पहाड़ी रीति-रिवाज के साथ किया। इस मौके पर होने वाली नई वधु नेहा को नाक से पिठयां से लेकर मांथे तक पिठयां लगाया गया। वहीं वर सुनील को भी नाक से लेकर माथे तक पीठयां लगाया गया।

हल्द्वानी- दिल्ली में दिखी पहाड़ की सबसे पुरानी रस्म, इस नये जोड़े ने दिया युवाओं को बड़ा संदेश

पुरानी रस्मों को लेकर चर्चा जोरों पर

ऐसे रस्म देख वहां मौजूद अन्य लोग आश्चर्यचकित रह गये। पूरी रस्म पहाड़ी रीति-रिवाज में की गई। जिसने भी सुना वह सुनील और नेहा को एकटक देख रह गया। दोनों के परिजनों ने बताया कि दिल्ली उनकी कर्मभूमि है जबकि उत्तराखंड उनकी जन्मभूमि है। वह अपने रीति-रिवाज और परम्पराएं कभी नहीं भूल सकते। दिल्ली में रहने वाले उत्तराखंडियों ने भी उनके इस कदम की खूब सराहना की। पिता स्व. हरीश कुमार के निधन के बाद से ही सुनील अपनी माता हंसी देवी के साथ दिल्ली में रहते है। दिल्ली से बीकॉम की पढ़ाई कर सुनील एक कंपनी में स्टोर मैनेजर के पद पर कार्यरत है। जबकि नेहा एक कंपनी में कार्य करने के साथ ही एमबीए का कोर्स कर रही है। नेहा की पिता चंदन राम एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत है जबकि माता राजेश्वरी देवी गृहणी है। पुरानी रस्मों को लेकर इस रिश्ते के चर्चाए दिल्ली से लेकर सोशल मीडिया पर खूब छाये है।

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सुनील ने लोकगायकी में कमाया नाम

सुनील कुमार दिल्ली में रहने के बावजूद उत्तराखंड से बेहद प्यार करते है। यह उनके गीतों और हाल ही में संपन्न हुई उनकी शादी की रस्मों में साफ झलकता है। अभी तक सुनील कुमार कई कुमाऊंनी गीत गा चुके है। हाल ही में उनका एक गीत सौ रुपये की बोतल उत्तराखंड पंचायत चुनाव के दौरान खूब चर्चाओं में रहा। जिसने वोटरों को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाई। इससे पहले उनके गीत गोविंदी को दो लाख से ऊपर व्यूज मिले। साथ ही लाल बुरांश, रटन, देख ले म्यर आंखों मा, पहाड़ ऐ आजो, तेरी रंग-बिरंगी साड़ी, को छे तू घस्यारा, तेरे मेरो प्यार और हाल में रिलीज हुए उनके मुनस्यारी की बाना गीत को लोगों ने खूब पसंद किया। उन्होंने बताया कि वह उत्तराखंड की संस्कृति और रीति-रिवाजों को लेकर लोगों को प्रेरित करते रहेंगे।