हल्द्वानी-78 वर्ष की उम्र में फिर सुनाई दी इस लोकगायक की मखमली आवाज, पीके चैनल से रिलीज हुआ ये खूबसूरत गीत

हल्द्वानी-न्यूज टुडे नेटवर्क-(जीवन राज)-कई वर्र्षाें बाद आज उत्तराखंड के सिरमौर लोक गायक नैननाथ रावल का स्वर सुनने को मिला। फूलदेही पर्व के अवसर पर पीके इंटरनेटमेंट चैनल से रिलीज हुए इस गाने ने फिर पुरानी यादों को ताजा कर दिया। 78 वर्ष की उम्र में एक नौजवान गायक जैसा जोश उनके अंदर देखने को मिलता
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हल्द्वानी-78 वर्ष की उम्र में फिर सुनाई दी इस लोकगायक की मखमली आवाज, पीके चैनल से रिलीज हुआ ये खूबसूरत गीत

हल्द्वानी-न्यूज टुडे नेटवर्क-(जीवन राज)-कई वर्र्षाें बाद आज उत्तराखंड के सिरमौर लोक गायक नैननाथ रावल का स्वर सुनने को मिला। फूलदेही पर्व के अवसर पर पीके इंटरनेटमेंट चैनल से रिलीज हुए इस गाने ने फिर पुरानी यादों को ताजा कर दिया। 78 वर्ष की उम्र में एक नौजवान गायक जैसा जोश उनके अंदर देखने को मिलता है। आज पीके इंटरनेटमेंट चैनल से उनका गीत नूण को ब्यौपारी सुनना को मिला। एक दौर था जब लोकगायक नैननाथ की गीत, झोड़ा-चांचरी, रमौल ने उत्तराखंड संगीत में अपना कब्जा जमाया। हालांकि उन्होंने कई स्टेज प्रोग्राम किये लेकिन लंबे अर्से बाद उनका एक गाना आज पीके इंटरनेटमेंट चैनल से आया है। जो आपकी पुराने दौर में ले जायेगा। आज भी उनकी आवाज में वो जादू, वो कशिश है जो कभी खत्म नहीं होती। उनके इस गाने को आप एक बार जरूर सुनें।

अमर लोकगायक पप्पू कार्की का सपना हुआ पूरा

जानकारी देते हुए अमर लोकगायक पप्पू कार्की की पत्नी कविता कार्की ने बताया कि अमरलोक गायक पप्पू कार्की का एक सपना था कि वह लोकगायक नैननाथ रावल उनके स्टूडियों से एक गीत रिकॉर्ड कर उनके चैनल के लिए गाये। हमने मिलकर उनका सपना पूरा किया। बता दें कि आज पप्पू कार्की हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका सपना उनकी पत्नी कविता कार्की समेत पूरे पीके टीम ने पूरा कर दिया। नैननाथ रावल के इस गीत में संगीत दिया है नितेश बिष्ट ने, जो उनकी आवाज में चार चांद लगाने का काम कर रहा है। आज उनकी गीत सुनकर फिर बचपन की यादे ताजा हो गई। कई सालों बाद आज फिर गीत के माध्यम से उनका स्वर सुनाई दिया।

हल्द्वानी-78 वर्ष की उम्र में फिर सुनाई दी इस लोकगायक की मखमली आवाज, पीके चैनल से रिलीज हुआ ये खूबसूरत गीत

नानी-नानी परूली धारम

इससे पहले गोविन्दी घास काटछे, गोरख्ये चेली भागुली, गंगनाथ जागर, परूली तेरो लाल बिलौजा, जब जूलौ बैरेली, फूल फटगा जून लागीरे, अल्मोड़ा नैनीताल पिथौरागढ़ की, नाचुला ठुम ठुमा, बरमा वे नैनीताल, नानी-नानी परूली धारूम समेत कई सुपरहिट गीत, झोड़े-चांचरी और भगनौल गाये। आज की गायकी में झोड़े-चांचरी और भगनौल विलुप्त हो चुके है। उनकी गायकी का हर कोई दिवाना था। आज भी लोग उनकी गीतों को रिमिक्स में ला रहे है। नैननाथ रावल ने पहाड़ की संस्कृति को झोड़ा-चांचरी, भगनौल को जिंदा रखा। उन्होंने लंबे समय तक उत्तराखंड के संगीत में अपना कब्जा जमाया।