सुप्रीम कोर्ट ने जोशीमठ संकट मामले में हस्तक्षेप से किया इनकार
एक वकील ने कहा कि लोग मर रहे हैं और पुनर्वास की सख्त जरूरत है। इस पर प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, कृपया ध्वनि बाइट के लिए कार्यवाही का सोशल मीडिया के लिए उपयोग न करें।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने याचिकाकर्ता स्वामी अविमुक्ते श्वरानंद सरस्वती से अपनी याचिका उत्तराखंड हाईकोर्ट में ले जाने को कहा।
पीठ ने वकील से कहा कि इसके अलावा, अगर उन्हें कुछ और कहना है तो उन्हें हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता है। पीठ ने कहा, एक बार जब हम इस पर सुनवाई शुरू कर देंगे, तो हम हाईकोर्ट को इस मामले की सुनवाई के अवसर से वंचित कर देंगे।
याचिका में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के कारण धंसाव हुआ है और प्रभावित लोगों को तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवजे की मांग की गई है।
इस बात पर जोर देते हुए कि वह हाईकोर्ट को मामले की सुनवाई से वंचित नहीं कर सकता, शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता से या तो एक नई याचिका दायर करने या वहां की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के लिए कहा।
उत्तराखंड सरकार ने दलील दी कि इसके अलावा एक और याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई है और इस बारे में केंद्र व राज्य सरकार ने उनकी सभी प्रार्थनाओं पर अमल किया है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट के समक्ष लंबित कार्यवाही में हस्तक्षेप कर सकता है या एक नई याचिका दायर कर सकता है। पीठ ने कहा, हम हाईकोर्ट से अनुरोध करते हैं कि वह उचित डिस्पैच के साथ दायर याचिका पर विचार करे।
याचिका में तर्क दिया गया है कि मानव जीवन और उनके पारिस्थितिकी तंत्र की कीमत पर किसी भी विकास की जरूरत नहीं है और यदि ऐसा कुछ भी होता है, तो यह राज्य सरकार और केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह इसे तुरंत रोके।
याचिका में जोशीमठ के निवासियों को सक्रिय रूप से समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निर्देश देने की भी मांग की गई है।
--आईएएनएस
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