पूर्णा नदी के जल में पालना में बच्चे को लिटाने की परंपरा
कार्तिक पूर्णिमा की पूर्णिमा के मौके पर पूर्णा नदी के तट पर बड़ी संख्या मंे वे दंपत्ति पहुंचते हैं, जिनकी संतान पाने की मनोकामना पूरी हो गई और यहां वे अपनी संतान को पालने में बच्चे को लिटाकर मां पूर्णा के जल में (प्रतीक स्वरूप गोद में) लिटाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि ऐसे करने के बाद ही मन्नत की पूजा अर्चना पूर्ण होती है।
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर यहां विशाल मेला लगता है जिसमें मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र सहित छत्तीसगढ़ से नि:संतान दम्पत्ति मन्नत मांगने और मन्नत पूर्ण होने पर पूजा अर्चना के लिए हर साल आते हैं।
यहां महाराष्ट्र से पहुॅचे एक दंपत्ति नरेष व रानी का कहना है कि उन्होंने पूर्णा मां से बच्चे की कामना की थी, उसके बाद उनके आंगन में खुषहाली आई और वे अब अपनी मनोकामना के पूरे होने पर यहां आए हैं। बच्चे केा नदी के जल में पालना में लिटाने को लेकर किसी तरह का डर लगने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें बच्चे की प्राप्ति पूर्णा माई की कृपा से हुई है, इसलिए उन्हें किसी तरह की मन में आशंका नहीं है।
जिला मुख्यालय बैतूल से करीब 65 किमी. दूर भैसदेही के पास माँ पूर्णा नदी है। चंद्र पुत्री यानि चंद्रमा की कन्या कहलाने वाली यह नदी बैतूल के भैंसदेही कस्बे के पास से निकलती है। कार्तिक मास की पूर्णिमा से यहां पूरे एक पखवाड़े तक निसंतान दंपतियों और सुख समृद्धि की आस लेकर लोग मेले में आते हैं। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश से यहां श्रद्धालु आते हैं।
चंद्रपुत्री कहलाने वाली इस नदी की उत्पति के पीछे कई पौराणिक किवदंतियां हैं। कोई इसे सप्तऋषियों की आराधना का फल बताता है तो कई मानते हैं कि इलाके मे फैले अकाल के बाद एक राजा की तपस्या के बाद भगवान शिव ने पूर्णा को यहां अवतरित कराया था। कहा जाता है कि कभी यह दूध की धारा के रूप में बहा करती थी।
--आईएएनएस
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