केरल हाईकोर्ट ने कहा, एससी/एसटी एक्ट के तहत निर्दोष लोग हो रहे झूठे मामलों के शिकार

कोच्चि, 15 दिसंबर (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने निचली अदालतों से आग्रह किया है कि वे अग्रिम जमानत याचिकाओं पर विचार करते समय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामलों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करें, ताकि झूठे आरोप लगाने की संभावना को खत्म किया जा सके।
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केरल हाईकोर्ट ने कहा, एससी/एसटी एक्ट के तहत निर्दोष लोग हो रहे झूठे मामलों के शिकार कोच्चि, 15 दिसंबर (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने निचली अदालतों से आग्रह किया है कि वे अग्रिम जमानत याचिकाओं पर विचार करते समय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामलों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करें, ताकि झूठे आरोप लगाने की संभावना को खत्म किया जा सके।

न्यायमूर्ति ए. बधुरुद्दीन की पीठ ने कहा कि यह चौंकाने वाला तथ्य है कि कई निर्दोष व्यक्ति झूठे आरोप के शिकार हैं। इसलिए, जब एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामलों की बात आती है तो अदालतों को विवरण पर बहुत ध्यान देना चाहिए।

अदालत ने कहा, यह चौंकाने वाला, बल्कि दिमाग उड़ाने वाला तथ्य है कि कई निर्दोष व्यक्ति एससी/एसटी (पीओए) अधिनियम के तहत झूठे मुकदमे के शिकार हैं। इसलिए, अदालतों के लिए भूसे से अनाज को अलग करना समय की मांग है। मामले की उत्पत्ति का विश्लेषण, अपराध के पंजीकरण से पहले शिकायतकर्ता और अभियुक्तों के बीच दुश्मनी के संदर्भ में पूरे ब्योरे पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ पिछले विवादों/मामलों/शिकायतों आदि पर विचार किया जाना चाहिए।

यह देखते हुए कि यह विवादित नहीं हो सकता कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार के खतरे को रोकने के लिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के कड़े प्रावधानों को इसमें शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि यह अग्रिम अनुदान के मामले में कड़े प्रावधानों के कारण है। अदालत को अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करने में उद्देश्य छिपे होने की संभावना से इनकार नहीं करना चाहिए।

अदालत ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (पीओए) अधिनियम के तहत एक विशेष न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक महिला द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए ये टिप्पणियां कीं। आदेश में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3 (1) के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाते हुए उसे अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।

अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप यह था कि जब शिकायतकर्ता उस बैंक में गई, जहां वह एक कर्मचारी थी, तो अपीलकर्ता ने सार्वजनिक रूप से उसे उसकी जाति के नाम से पुकारा।

अपीलकर्ता किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित नहीं है।

अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष कहा कि शिकायतकर्ता की पत्नी उस व्यक्ति के साथ काम करती थी, जिसके खिलाफ उसने बार-बार यौन उत्पीड़न की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई थी।

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि मौजूदा अपराध का पंजीकरण केवल उन कई प्रयासों में से एक था, जो उसे यौन उत्पीड़न की अपनी शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर करने के लिए किए गए थे।

अदालत ने कहा कि वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा पेश किया गया मामला प्रथम दृष्टया संदिग्ध था और इसलिए उसे अग्रिम जमानत दी गई।

हालांकि, इसने अपीलकर्ता को जांच में सहयोग करने और जांच अधिकारी द्वारा निर्देश दिए जाने पर खुद को पूछताछ के लिए उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।

हाईकोर्ट ने संयोग से बुधवार को एक ऐसे मामले में हस्तक्षेप किया, जिसमें माकपा के एक विधायक ने प्रमुख उद्योगपति साबू एम. जैकब के खिलाफ अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। अदालत ने जैकब की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।

गुरुवार को सत्तापक्ष के विधायक थॉमस के. थॉमस और उनकी पत्नी उस वक्त दबाव में आ गए, जब पार्टी की एक महिला नेता ने मामला दर्ज कराया।

--आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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