अपनी आर्मी के बूते कारगिल जीतना चाहते थे मुशर्रफ, पर बुरी तरह हारे थे
करगिल की लड़ाई में भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल वी.पी. मलिक अपनी किताब फ्रॉम सरप्राइज टू विक्टरी के चैप्टर द डार्क विंटर में ऐसे कई खुलासे करते हैं। भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी कहते हैं कि भारतीय एजेंसी, रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग (रॉ) ने कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के फोन इंटरसेप्ट किए थे। इनमें जनरल परवेज मुशर्रफ और उनके लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अजीज खान की बातचीत भी इंटरसेप्ट की गई थी।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, शुरुआत में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनकी कैबिनेट को युद्ध की योजना की जानकारी नहीं लग सकी। जनरल मुशर्रफ ने करगिल लड़ाई को लेकर तीनों सेनाओं के बीच खाई पैदा करने का प्रयास किया। शुरुआत में पाकिस्तानी वायुसेना और नौसेना को भी मुशर्रफ की जंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आर्मी को मुंहतोड़ जवाब दिया तो पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष मुशर्रफ ने सरकार और सेना के बाकी अंगों को इस बारे में बताया।
रक्षा विशेषज्ञ व सेना के पूर्व अधिकारी बताते हैं कि जनरल मुशर्रफ ने करगिल लड़ाई की प्लानिंग की थी और इससे जुड़ी जानकारी उन्होंने अपनी ही सरकार तक भी नहीं पहुंचने दी। मुशर्रफ को लगता था कि वह पाकिस्तानी आर्मी की मदद से यह लड़ाई जीत लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारतीय सेना ने जबरदस्त वार किया और मुशर्रफ को मुंह की खानी पड़ी थी।
पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष की योजना के मुताबिक, जेहादियों के रूप में पाकिस्तानी सेना को एलओसी पार भेजा गया। सैनिकों को एलओसी पार भेजे जाने तक तक मुशर्रफ ने यह खुफिया प्लान कहीं उजागर नहीं होने दिया। जब पाकिस्तानी सेना, करगिल की चोटियों पर पहुंची, तभी मुशर्रफ ने पीएम नवाज को इस बारे में जानकारी दी। उसमें भी अति महत्वपूर्ण तथ्य छिपा लिए गए। पाकिस्तानी पीएम को बताया गया कि जेहादियों ने करगिल में घुसपैठ की है। करगिल की लड़ाई खत्म होने के कई साल बाद नवाज शरीफ ने सार्वजनिक तौर पर यह बात स्वीकार की थी कि परवेज मुशर्रफ को सेना की कमांड सौंपना, उनकी सबसे बड़ी गलती थी।
जेहादियों का वेश बनाकर पाकिस्तानी सेना ने करगिल में प्रवेश किया। रॉ और मिल्रिटी इंटेलीजेंस को गुमराह करने के मकसद से परवेज मुशर्रफ ने करगिल में एलओसी पर झूठे रेडियो संदेश तक प्रसारित कराए। ये संदेश बाल्टी और पश्तो भाषा में थे। उस वक्त एलओसी पर पाकिस्तान के जितने भी जेहादी सक्रिय थे, वे आपसी बोलचाल के लिए इन्हीं दो भाषाओं का इस्तेमाल कर रहे थे।
--आईएएनएस
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