देहरादून- जाने कौन है ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखंड’, इतिहास बचाने को क्यों बेची जमीन और प्रेस

शिवप्रसाद डबराल जिनके ग्रन्थ आज उत्तराखंड का इतिहास जानने के लिये सबसे उपयोगी माने जाते हैं। उनको ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखंड’ भी कहा जाता है। शिवप्रसाद डबराल का जन्म 13 नवम्बर 1912 को पौड़ी जिले में हुआ। उनकी शिक्षा मांडई व गढ़सिर के स्कूल से हुई। उन्होंने मेरठ से बीए और इलाहाबाद से बीएड किया। 25
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देहरादून- जाने कौन है ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखंड’, इतिहास बचाने को क्यों बेची जमीन और प्रेस

शिवप्रसाद डबराल जिनके ग्रन्थ आज उत्तराखंड का इतिहास जानने के लिये सबसे उपयोगी माने जाते हैं। उनको ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखंड’ भी कहा जाता है। शिवप्रसाद डबराल का जन्म 13 नवम्बर 1912 को पौड़ी जिले में हुआ। उनकी शिक्षा मांडई व गढ़सिर के स्कूल से हुई। उन्होंने मेरठ से बीए और इलाहाबाद से बीएड किया।

25 भागों में लिखा उत्तराखंड का इतिहास

1962 में उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की इस दौरान वे डी.ए.बी. कॉलेज दुगड्डा में प्रधानाचार्य के पद पर थे। उनकी लेखन यात्रा 1931 से ही शुरु हुई। उनका पहला काव्य संग्रह जन्माष्टमी प्रकाशित हुआ। उन्होंने हिंदी में अनेक नाटक, काव्य और बालसाहित्य लिखे। उत्तराखंड के इतिहास पर उन्होंने बीस बड़ी-बड़ी पुस्तकें लिखी।

देहरादून- जाने कौन है ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखंड’, इतिहास बचाने को क्यों बेची जमीन और प्रेस

उत्तराखंड के जनजीवन पर पांच पुस्तकें लिखी और प्रकाशित भी की। शिवप्रसाद डबराल ने चालीस बरस तक हिमालय और उसके इतिहास पर शोध किया। उन्होंने उत्तराखंड का इतिहास 25 भागों में लिखा। इसके लिए उन्होंने अपनी प्रेस और जमीन तक बेच डाली। 24 नवम्बर 1999 को इस महान इतिहासकार की मृत्यु हो गयी।