देहरादून- उत्तराखंड लोकगायिका बंसती बिष्ट का ऐसा रहा सफलता का सफर, भारत सरकार ने दिया खास सम्मान

बसंती बिष्ट भारत की एक लोकगायिका हैं जो उत्तराखण्ड राज्य के घर-घर में गाए जाने वाले मां भगवती नंदा के जागरों के गायन के लिये प्रसिद्ध हैं। बंसती बिष्ट का जन्म 1953 को उत्तराखंड के चमोली जिले में हुआ। भारत सरकार ने 26 जनवरी 2017 को उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान
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देहरादून- उत्तराखंड लोकगायिका बंसती बिष्ट का ऐसा रहा सफलता का सफर, भारत सरकार ने दिया खास सम्मान

बसंती बिष्ट भारत की एक लोकगायिका हैं जो उत्तराखण्ड राज्य के घर-घर में गाए जाने वाले मां भगवती नंदा के जागरों के गायन के लिये प्रसिद्ध हैं। बंसती बिष्ट का जन्म 1953 को उत्तराखंड के चमोली जिले में हुआ। भारत सरकार ने 26 जनवरी 2017 को उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान मुजफ्फरनगर, खटीमा और मसूरी गोलीकांड की पीड़ा को बसंती बिष्ट ने गीत में पिरोया और राज्य आंदोलन में कूद पड़ी। अपने लिखे गीतों के जरिये वह लोगों से राज्य आंदोलन को सशक्त करने का आह्वान करती। राज्य आंदोलन के तमाम मंचों पर वह लोगों के साथ गीत गाती।

देहरादून- उत्तराखंड लोकगायिका बंसती बिष्ट का ऐसा रहा सफलता का सफर, भारत सरकार ने दिया खास सम्मान

‘नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा’

इससे उन्हें मंच पर खड़े होने का हौसला मिला। 40 वर्ष की आयु में पहली बार वह गढ़वाल सभा के मंच देहरादून के परेड ग्राउंड में पर जागरों की एकल प्रस्तुति के लिए पहुंची। अपनी मखमली आवाज में जैसे ही उन्होंने मां नंदा का आह्वान किया पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। दर्शकों की तालियों ने उन्हें जो ऊर्जा और उत्साह दिया, वह आज भी कायम है। उन्हें खुशी है कि उत्तराखंड के लोक संगीत को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। बसंती बिष्ट ने मां नंदा के जागर को स्वरचित पुस्तक ‘नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा’ में संजोया है।