देहरादून-त्रिवेन्द्र सरकार की छवि को धूमिल करने का प्रयास, सिर्फ माइंड गेम

देहरादून-एक बार फिर त्रिवेन्द्र सरकार की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है। शिकायत दिल्ली हाइकमान तक पहुंचायी जा रही है। विकास के कार्यों में अनदेखी को लेकर विपक्ष ही नहीं सत्ताधारी दल के विधायक भी उनकी भाषा बोल रहे है। लेकिन साफ झलकता है कि यह सिर्फ पावर गेम मात्र है।
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देहरादून-त्रिवेन्द्र सरकार की छवि को धूमिल करने का प्रयास, सिर्फ माइंड गेम

देहरादून-एक बार फिर त्रिवेन्द्र सरकार की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है। शिकायत दिल्ली हाइकमान तक पहुंचायी जा रही है। विकास के कार्यों में अनदेखी को लेकर विपक्ष ही नहीं सत्ताधारी दल के विधायक भी उनकी भाषा बोल रहे है। लेकिन साफ झलकता है कि यह सिर्फ पावर गेम मात्र है। तीन साल की सरकार में सरकार के विकास कार्यों के गिनाने के बजाय अधिकांश लोग सिर्फ कमियां खोजते रहे। लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के सत्ता संभालने से पहले राज्य के क्या हालात थे, उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। खनन माफियाओं से लेकर शराब के ठेकों की डील हुआ करती थी। सत्ता के गलियारों में एंट्री होती थी सिर्फ माफियाओं की। हर जगह माफियाओं का दखल होता था। मंत्री, विधायक, अधिकारी हर कोई दोनों हाथों से लूट रहे थे। राज्य की जमीनों को कौडिय़ों के भाव बेचा जा रहा था। शांत पहाड़ में शराब की फैक्ट्रियां लगाने। सोलर प्लांटों के आवंटन का घपला हो या खनन के पट्टों और स्टोन क्रेसरों का खेल। उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के घोटाले हों या ऊर्जा में नियुक्तियों और बिजली खरीद का घपला। हर बड़ा घपला-घोटाला पिछली सरकारों के कार्यकाल से जुड़ा है।

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त्रिवेंद्र सरकार का अपेक्षाओं के पैमाने पर खरा उतरना अभी बाकी है, लेकिन सीएम त्रिवेंद्र को इस बात का श्रेय तो दिया जाना ही चाहिए कि आज हालात तीन साल पुराने नहीं हैं। हां सरकार में कमियां हो सकती है लेकिन अराजकता उतनी नहीं है कि हर जगह माफियां हावी हो। आज सत्ता के गलियारों में माफियाओं की नो-एंट्री को चुकी है। कम से कम सचिवालय का फोर्थ फ्लोर तो माफिया मुक्त हो चुका है। नीतियां अभी भले ही राज्य के अनुकूल न बन पा रही हों, नौकरशाहों पर निर्भरता ज्यादा हो, मगर अब नीतियां माफिया के इशारे पर नहीं बनतीं। त्रिवेंद्र सरकार पर सवाल तो उठाए जा सकते हैं। इसके लिए हर एक के पास मुद्दे भी बहुत होंगे लेकिन यह साफ है कि तीन साल में एक भी बड़े घोटाले का आरोप सरकार पर नहीं है। अब पहले जैसे सचिवालय के चतुर्थ तल पर बड़ी डील नहीं होती। आप इसे ईमानदारी का प्रमाण मानो या न मानो लेकिन यह बदलाव का संकेत जरूर है।

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साफ शब्दों में कहे तो लंबे समय से सरकारों में चलने वाले पॉवर ब्रोकरों को त्रिवेन्द्र सरकार में दुकानें चलाने का मौका नहीं मिला। भले ही महसूस न हो रहा है। पहले जिले में डीएम और कप्तानों की पोस्टिंग के लिए बोली लगती थी। सत्ता के गलियारों में मोटी थैली से सेटिंग की जाती है।अहम पदों पर बैठे अधिकारी केवल कलेक्शन एजेंट बने हुए थे। शिक्षा और स्वास्थ्य महकमा हो या फिर पीडब्लूडी जैसे इंजीनियरिंग महकमा हर जगह पोस्टिंग एक उद्योग बन चुका था। लेकिन आज सब इसके उलट है। हो सकता है कही-कही चोरी-छिपे पोस्टिंग को लेकर लेन-देन हो रहा है लेकिन स्वच्छ छवि के अधिकारियों की जिलों में तैनाती की जा रही है। आज लोगों की शिकायतों को सुनने के लिए सीएम हेल्पलाइन तक बनाई गई, जिससे अभी तक कई समस्याओं के समाधान किये है। जनता सरकार चुनती है तो जनता की सरकार से अपेक्षाएं होती हैं और जब सरकारें उन पर खरी नहीं उतरती तो निश्चित तौर नाराजगी भी होती है। त्रिवेंद्र सरकार से भी जनता की कई अपेक्षाएं हैं। ऐसे में आने वाले बाकि के डेढ़ साल सरकार के लिए बड़ी चुनौती भरा होगा। लेकिन सीएम त्रिवेन्द्र के तीन साल के कार्यकाल में कई माफियाओं की दुकानें बंद हो गई। इसलिए कोई उनकी आलोचना कर रहा है तो कई उनके कार्य की तारीफ भी कर रहे है। लेकिन आने वाले समय में सीएम त्रिवेन्द्र के इसी कार्यकाल को सराहा जायेगा।