देहरादून- उत्तराखंड की इस महिला को लोग इसलिए कहते थे चिपको वुमन, किया था ये बड़ा काम

गौरा देवी का जन्म 1925 में उत्तराखंड के चमोली जिले के लाता गांव में हुआ था। इन्हें चिपको आन्दोलन की जननी माना जाता है। उस वक़्त गांव में काफी बड़े-बड़े पेड़-पौधे थे जो कि पूरे क्षेत्र को घेरे हुए थे। इनकी शादी मात्र 12 वर्ष की उम्र में हुई। शादी के 10 वर्ष बाद ही
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देहरादून- उत्तराखंड की इस महिला को लोग इसलिए कहते थे चिपको वुमन, किया था ये बड़ा काम

गौरा देवी का जन्म 1925 में उत्तराखंड के चमोली जिले के लाता गांव में हुआ था। इन्हें चिपको आन्दोलन की जननी माना जाता है। उस वक़्त गांव में काफी बड़े-बड़े पेड़-पौधे थे जो कि पूरे क्षेत्र को घेरे हुए थे। इनकी शादी मात्र 12 वर्ष की उम्र में हुई। शादी के 10 वर्ष बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गई। कुछ समय बाद गौरा महिला मण्डल की अध्यक्ष भी बन गई थी।

चिपको वूमन के नाम से थी प्रसिद्ध

अलाकांडा में 1974 में 2500 देवदार के वृक्षों को काटने के लिए चिन्हित किया गया था जिसका गौरा देवी ने विरोध किया और पेड़ों की रक्षा करने का अभियान चलाया, इसी कारण गौरा देवी चिपको वूमन के नाम से जानी जाती है। दस साल बाद गौरा देवी ने एक साक्षात्कार में कहा था की “भाइयों ये जंगल हमारा माता का घर जैसा है यहां से हमें

देहरादून- उत्तराखंड की इस महिला को लोग इसलिए कहते थे चिपको वुमन, किया था ये बड़ा काम

फल, फूल, सब्जियां मिलती अगर यहां के पेड़-पौधे काटोगे तो निश्चित ही बाढ़ आएगी”। गौरा देवी अपने जीवन काल में कभी विद्यालय नहीं गई। लेकिन उनका जिक्र विद्यालयों में जरूर किया जाता है। चिपको वूमन के नाम से जाने वाली गौरा देवी का निधन 66 वर्ष की उम्र में 4 जुलाई 1991 में हो गया था।