देहरादून- उत्तराखंड के इस लाल ने ब्रिटिश हुकुमत को ऐसे दी थी चुनौती, प्रदेश के लिए किये ये बड़े काम

थान सिंह रावत एक लोकप्रीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सेवक थे। जिनको उनके शिक्षा और विकास के क्षेत्र में किये गए कार्यों के लिए जाना जाता है। थान सिंह का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में 13 अप्रैस 1903 को हुआ। अपनी शिक्षा उन्होंने गढ़वाल के श्रीनगर से 1918 में पूरी की, जिसके बाद 1934
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देहरादून- उत्तराखंड के इस लाल ने ब्रिटिश हुकुमत को ऐसे दी थी चुनौती, प्रदेश के लिए किये ये बड़े काम

थान सिंह रावत एक लोकप्रीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सेवक थे। जिनको उनके शिक्षा और विकास के क्षेत्र में किये गए कार्यों के लिए जाना जाता है। थान सिंह का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में 13 अप्रैस 1903 को हुआ। अपनी शिक्षा उन्होंने गढ़वाल के श्रीनगर से 1918 में पूरी की, जिसके बाद 1934 तक उन्होंने ब्रिटिश सरकार के लिए बतौर सर्वे इंस्पेक्टर कार्य किया। 28 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी की प्रेरणा से वह सरकारी नौकरी छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद गए।

देहरादून- उत्तराखंड के इस लाल ने ब्रिटिश हुकुमत को ऐसे दी थी चुनौती, प्रदेश के लिए किये ये बड़े काम

ब्रिटिश हुकुमत ने उन्हें एक साल तक जेल में भी रखा। बाहर आकर उन्होंने दोबारा अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो अभियान में हिस्सा लिया, उनकी सक्रियता को देखते हुए अंग्रेजों ने उनके खिलाफ लाईव और डेत वारंट भी जारी किया… इस दौरान उनके घर को सील कर दिया गया। लाख अत्याचार के बाद भी हार नहीं मानते हुए देवभूमि के इस लाल ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिये।

देहरादून- उत्तराखंड के इस लाल ने ब्रिटिश हुकुमत को ऐसे दी थी चुनौती, प्रदेश के लिए किये ये बड़े काम

शिक्षा के क्षेत्र में किया महत्वपूर्म योगदान

अपने अंतिम दिनों में उन्होंने उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। थान सिंह ने 1958 में रामनगर नैनीताल में सीमित गढ़वाल मोटर का उपयोग किया, जिससे लोगों की सुविधा के लिए इस मार्ग पर बस सेवा उपलब्ध हो सके। बाद में यह प्रदेश का पहला सहकारी आधार परिवहन संगठन बना। अपने रहते उन्होंने कई बढ़े कॉलेज भी शुरू करवायें। थान सिंह कहते थे कि ज्ञान वो सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे आप पूरी दुनिया बदल सकते हैं। 1 दिसंबर 1986 को श्रीनगर में उन्होंने अंतिम सांस ली।