देहरादून- पढ़े महावीर च्रक विजेता जसवंत सिंह की पूरी कहानी, इसलिए पड़ोसी मुल्क ने भी माना था लोहा

राइफल मैन और महावीर च्रक विजेता जसवंत सिंह रावत गढ़वाल राइफल्स में सेवारत एक भारतीय सेना के जवान थे। वह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले थे। जसवंत सिंह का जन्म 19 अगस्त, 1941 को हुआ था। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश के तवांग के नूरारंग की लड़ाई में अहम
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देहरादून- पढ़े महावीर च्रक विजेता जसवंत सिंह की पूरी कहानी, इसलिए पड़ोसी मुल्क ने भी माना था लोहा

राइफल मैन और महावीर च्रक विजेता जसवंत सिंह रावत गढ़वाल राइफल्स में सेवारत एक भारतीय सेना के जवान थे। वह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले थे। जसवंत सिंह का जन्म 19 अगस्त, 1941 को हुआ था। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश के तवांग के नूरारंग की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। जसंबत सिंह रावत को 72 घंटो तक चिनी सेना से लड़ने और अकेले 300 चीनी जवानों को मार गिराने के लिए जाना जाता है।

देहरादून- पढ़े महावीर च्रक विजेता जसवंत सिंह की पूरी कहानी, इसलिए पड़ोसी मुल्क ने भी माना था लोहा

 

चीनी सैनिकों ने भेंट की पीतल की प्रतिमा

जंग के बाद खुद चीनी सैनिक ने भी इस भारतीय जवान का लोहा माना और जसवंत सिह की पीतल से बनी प्रतिमा भारतीय सेना को भेंट की। अरुणाचल प्रदेश स्थित भारत-चीन सीमा युद्ध के दौरान वह वीरगति को प्राप्त हो गए थे। लेकिन उसके बाद भी उनके नाम के आगे शहिद नहीं लगाया जाता है। कहा जाता है कि राइफल मैन जसंवत सिंह आज भी अपनी चौकी की रखवाली करते है।

बॉलीवुड ने बनाई फिल्म

इतना ही नहीं बार्डर पर तैनात जवानों का मार्गदर्शन करते है, और इस काम के लिए उन्हें सेना से छुट्टी भी मिलती है और उनका प्रमोशन भी किया जाता है। उनके कमरे के बाहर 5 जवान हर रात तैनात किये जाते है, जो उनके खाने और वर्दी का ख्याल रखते है। देश के जांबाज सैनिक जसवंत सिंह रावत के जीवन पर अधारित बॉलीवुड में एक फिल्म भी बनाई गई है। जिसका नाम 72 आर्स मार्टियार हू नेवर डाइड है।