देहरादून- प्रदेश के पंचायत प्रतिनिधियों ने सीएम त्रिवेन्द्र के सामने रखी ये मांग, इन कठिनाईयों का कर रहे सामना

पंचायतीराज अधिनियम में निहित लोक सेवक संबंधी प्रविधान और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के दायरे में आने के कारण त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधि ठेकेदारी समेत अन्य व्यवसाय नहीं कर पा रहे हैं। विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात कर उनके समक्ष पंचायत प्रतिनिधियों की यह पीड़ा रखी। उन्होंने पंचायत प्रतिनिधियों को
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देहरादून- प्रदेश के पंचायत प्रतिनिधियों ने सीएम त्रिवेन्द्र के सामने रखी ये मांग, इन कठिनाईयों का कर रहे सामना

पंचायतीराज अधिनियम में निहित लोक सेवक संबंधी प्रविधान और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के दायरे में आने के कारण त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधि ठेकेदारी समेत अन्य व्यवसाय नहीं कर पा रहे हैं। विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात कर उनके समक्ष पंचायत प्रतिनिधियों की यह पीड़ा रखी। उन्होंने पंचायत प्रतिनिधियों को राहत देने के लिए पंचायतीराज अधिनियम में संशोधन की मांग उठाई है।

मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को इस मामले का परीक्षण कराने के निर्देश भी दिए है। साथ ही कहा कि जरूरत पड़ने पर सरकार पंचायतीराज अधिनियम में संशोधन करेगी। इसके लिए विधानसभा के मानसून सत्र में संशोधन विधेयक लाया जाएगा। मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे विधायको ने बताया कि पंचायतीराज अधिनियम-2016 में त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों को लोक सेवक की श्रेणी में रखा गया है। यह पंचायतों को कमजोर करने की साजिश है।

सीएम को सौंपा ज्ञापन

उन्होंने कहा कि अधिनियम में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की विभिन्न धाराएं भी जोड़ी गई हैं। इनमें सरकार के साथ की गई संविदा समेत अन्य कार्यों के लिए पंचायत में निर्वाचन को अयोग्य माना गया है। सांसदों और विधायकों के मामले में तो यह उपबंध न्यायोचित है, लेकिन त्रिस्तरीय पंचायतों में इसे लागू किया जाना अनुचित है। उन्होंने कहा कि पंचायत प्रतिनिधि ठेकेदारी, निर्माण कार्य, व्यवसाय आदि के जरिये अपने भरण-पोषण के साथ ही पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं।

लेकिन इन प्रविधानों के कारण उनके सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। नतीजतन, उन्हें कार्य करने में कठिनाइयां पेश आ रही हैं। विधायकों की ओर से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा गया, जिसमें मांग की गई कि पंचायत प्रतिनिधियों को केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र में ही लोक सेवक समझा जाए। साथ ही पंचायतीराज अधिनियम में जोड़ी गई लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धाराएं हटाने का आग्रह भी किया गया है।