देहरादून- अब घरों से निकलने वाले कूड़ें से रौशन होंगे आपके घर, जाने क्या है सरकार का “वेस्ट-टू-एनर्जी” प्लान

उत्तराखंड सरकार ने अब नगर निगम और पालिका क्षेत्र में निकल रहे कूड़े से बिजली बनाने का फैसला लिया है। जल्द ही इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बैठक होगी। प्रदेश में कचरे की लगातार बढ़ रही समस्या से पार पाने के लिए प्रदेश सरकार इस कदम को उठाने जा रही है। शहरी
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देहरादून- अब घरों से निकलने वाले कूड़ें से रौशन होंगे आपके घर, जाने क्या है सरकार का “वेस्ट-टू-एनर्जी” प्लान

उत्तराखंड सरकार ने अब नगर निगम और पालिका क्षेत्र में निकल रहे कूड़े से बिजली बनाने का फैसला लिया है। जल्द ही इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बैठक होगी। प्रदेश में कचरे की लगातार बढ़ रही समस्या से पार पाने के लिए प्रदेश सरकार इस कदम को उठाने जा रही है। शहरी विकास विभाग के मुताबिक वेस्ट टू एनर्जी में करीब 80 प्रतिशत निकाय भी शामिल किए जा रहे हैं। रुड़की में एक निजी प्लांट का प्रयोग प्रदेश सरकार के सामने हैं। इस प्लांट को देखते हुए सरकार बिजली उत्पादन संबंधित नीति भी बना चुकी है।

देहरादून- अब घरों से निकलने वाले कूड़ें से रौशन होंगे आपके घर, जाने क्या है सरकार का “वेस्ट-टू-एनर्जी” प्लान

सरकार का अनुमान है कि वेस्ट टू एनर्जी से निकायों को भी आय होगी और लैंडफिल की समस्या का भी बहुत हद तक समाधान होगा। कारण यह भी है कि ठोस कचरे को एक जगह पर जमा करने में अधिकतर निगम और पालिकाओं को जमीन की कमी की समस्या का सामना भी करना पड़ रहा है। बिजली बनने की प्रक्रिया में इस ठोस कचरे की मात्रा बहुत कम हो जाती है और इस वजह से लैंडफिल की समस्या से पार पाया जा सकता है। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक की माने तो प्रदेशभर में कितना कचरा है और कितनी बिजली बनाई जा सकती है, इसके लिए निकायों से ब्योरा मांगा गया है।

कैसे बनती है बिजली

वेस्ट टू एनर्जी प्रतिक्रिया में इन्सीनरेटर के जरिये कूड़ा जलाया जाता है और उससे पैदा होने वाली गर्मी से टरबाइन चलाकर बिजली पैदा की जाती है। एक लैंडफिल से मीथेन गैस को लाकर उसे जलाकर भी बिजली पैदा की जा सकती है। जानकारी मुताबिक एक टन कचरे से 600 किलोवाट तक बिजली पैदा हो सकती है। इसके लिए सरकार को कचरे को एकत्र कर, उसे छांटने और इस कचरे को प्लांट तक लाने की व्यवस्था करनी होगी। मैदानी इलाकों में यह व्यवस्था करना आसान है, और यही वजह है कि सरकार पहले इस काम को मैदानी जिलों से शुरू करने की तरकीब बना रही है।