देहरादून – कलम की धार और निखार के बाद राजनीति में नंबर 1 रहे सीएम त्रिवेंद्र रावत

देहरादूनः प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पत्रकारिता की दीक्षा भले ही तीन दशक पूर्व ली हो, और अब वह राजनीति के पगडंडियों से होते हुए एक बड़े फलक की ओर बढ़ गए हों, लेकिन उनकी कलम की धार और निखार किसी पेशेवर साहित्य साधक से कम नहीं है। हाल ही में अखबारों में
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देहरादून – कलम की धार और निखार के बाद राजनीति में नंबर 1 रहे सीएम त्रिवेंद्र रावत

देहरादूनः प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पत्रकारिता की दीक्षा भले ही तीन दशक पूर्व ली हो, और अब वह राजनीति के पगडंडियों से होते हुए एक बड़े फलक की ओर बढ़ गए हों, लेकिन उनकी कलम की धार और निखार किसी पेशेवर साहित्य साधक से कम नहीं है। हाल ही में अखबारों में छपे किसानों के मसले पर उनके लेख की सारगर्भिता और सर्वग्राह्यता ने साफ कर दिया है कि वह जनपक्षधरता की राजनीति के साथ ही कलम के भी बहुत धनी हैं।

आजकल किसान आंदोलन चल रहा है। देशभर के कलमकार अपनी टिप्पणियां इस पर दे रहे हैं। साहित्य से लेकर राजनीति तक हर कोई अपने ही चश्मे से इस आंदोलन को देख रहा है। मामला एक है लेकिन चश्मे अलग अलग। ऐसे में भ्रम की स्थितियां समाज के सामने बनती नजर आ रही हैं। सोशल मीडिया संक्रमण के इस काल में भ्रम के साथ अनाप शनाप बातें फैलाई जा रही हैं। सोशल मीडिया की इन्हीं भ्रमिम करती हवाओं में लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ यानी पत्रकारिता का क्षेत्र भी का भ्रमित होना स्वाभाविक सी बात है। लेकिन हाल में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत किसान आंदोलन पर अपनी जो कलम चलाई है उससे कई चीजें साफ और समझने में आसान हो जाती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए मुख्यमंत्री की जनपक्षीय कलम के मायने बेहतर ढंगे से समझे जा सकेंगे।

अमर उजाला प्रभाव पेज पर ‘किसानों के हित सर्वोपरि’ हैडिंग के साथ सीएम त्रिवेंद्र का यह लेख प्रकाशित हुआ है। लेख सागर्भित है और सर्वग्राही भी। इसमें देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की उस कार्यशैली का जिक्र किया गया है जिसे दुनिया भी न भूतो ना भविष्यति की तरह देख रही है। सीएम का मानना है कि केंद्र में जब से मोदी की सरकार आई है किसानों के हित सर्वोपरि रहे हैं। यहां उन्होंने किसान आंदोलन के पीछे से काम कर रही अराजक ताकतों का भी जिक्र किया है। सीएम ने लाॅकडाउन में चरमराती अर्थव्यवस्था में किसान के पसीने को संजीवनी की तरह बताया है। तो यह भी साफ किया कि सरकार किसानों की पक्षधर है।

तीन कृषि कानून जिन्हें वापस लेने की बात आंदोलन में हो रही है, उन पर भी रोशनी डाली गई है। सीएम ने अपने लेख में एमएसपी, कांटेक्ट फार्मिंग व मंडी कानून का बहुत ही आसान शब्दों में बेहतर ढंग से विश्लेषण किया है। उन्होंने अपने लेख में किसानों के भ्रम को दूर करने का भी बेहतर प्रयास किया है।

लेख में पंजाब की बात है तो हरियाणा उत्तराखंड की भी है। जब से मोदी जी ने देश की सत्ता संभाली यानी बीत छह सालों में किसानों के बजट पर उन्होंने लिखा कि इससे पहले देश में किसानों के लिए 12 हजार करोड़ का बजट था। मोदी जी ने इसे बढ़ाकर 1 लाख 34 हजार कर दिया। बेहद खूबसूरती से उन्होंने उत्तराखंड प्रदेश में हुए किसानों के गन्ना भुगतान का भी जिक्र किया है। जो निश्चित रूप से उनकी किसान हित में बड़ी उपलब्धि भी है। साथ ही किसानों के लिए ब्याज मुक्त ऋण का भी जिक्र उन्होंने अपनी कलम के जरिए किया।
बेहद सटीक अंदाज से चली मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कलम के संदेश का किसानों पर असर तो होगा ही। भाषा, साहित्य और जनपक्षधरता की कलम पर उनकी पकड़ उनके व्यक्तित्व को और भी निखार देती है।

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