देहरादून- उत्तराखंड के इस गायक के जन्मदिन पर मनाया जाता है ‘जागर संरक्षण दिवस’, इसलिए मिला पद्मश्री पुरूस्कार

प्रीतम भरतवाण उत्तराखण्ड के विख्यात लोक गायक हैं। भारत सरकार ने उन्हें 2019 में पद्मश्री पुरूस्कार से समानित किया। वे उत्तराखण्ड में बजने वाले ढोल के ज्ञाता हैं। उन्होंने राज्य की विलुप्त हो रही संस्कृति को बचाने में अमूल्य योगदान दिया है। प्रीतम एक अच्छे जागर गायक और ढोल वादक के साथ ही अच्छे लेखक
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देहरादून- उत्तराखंड के इस गायक के जन्मदिन पर मनाया जाता है ‘जागर संरक्षण दिवस’, इसलिए मिला पद्मश्री पुरूस्कार

प्रीतम भरतवाण उत्तराखण्ड के विख्यात लोक गायक हैं। भारत सरकार ने उन्हें 2019 में पद्मश्री पुरूस्कार से समानित किया। वे उत्तराखण्ड में बजने वाले ढोल के ज्ञाता हैं। उन्होंने राज्य की विलुप्त हो रही संस्कृति को बचाने में अमूल्य योगदान दिया है। प्रीतम एक अच्छे जागर गायक और ढोल वादक के साथ ही अच्छे लेखक भी हैं। उन्हें दमाऊ, हुड़का और डौंर थकुली बजाने में भी महारत हासिल है। जागरों के साथ ही उन्होंने लोकगीत, घुयांल और पारंपरिक पवाणों को भी नया जीवन देने का काम किया है।

उत्तराखण्ड संस्कृति का विदेशों में किया प्रचार-प्रसार

प्रीतम का जन्म उत्तराखंण्ड के देहरादून जिले में हुआ। वहीं से उन्होने संगीत की शिक्षा भी ली। मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने लोगों के सामने जागर गाना शुरू कर दिया था। 1988 में प्रीतम भरतवाण ने सबसे पहले आकाशवाणी के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाई। उन्हे सबसे अधिक लोकप्रियता उनके गीत ‘सरूली मेरू जिया लगीगे’ गीत से मिली।

यह गीत आज भी सबसे लोकप्रिय गढ़वाली गीतों में शामिल है। प्रीतम भरतवाण ने उत्तराखण्ड की संस्कृति का विदेशों में भी खूब प्रचार-प्रसार किया है। अमेरिका, इंग्लैंड जैसे कई देशों में उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रदर्शन किया है। प्रीतम भरतवाण का जन्मदिन अब उत्तराखंड में ‘जागर संरक्षण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।