देहरादून- उत्तराखंड के हर्ष देव औली को अंग्रेजों ने इसलिए दिया था ये नाम, नैनीताल में ली अंतिम सांस

हर्ष देव औली एक राजनेता, पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सैनानी थे। उन्हें काली कुमाऊं के शेर के नाम से भी जाना जाता था। हर्ष देव का जन्म उत्तराखंड के चंपावत जिले में 4 मार्च 1890 को हुआ। 1919 में उन्हें पंडित मोती लाल नेहरू के इंडिपेंडेंट अखबार का उपसंपादक नियुक्त किया गया। जिसके एक साल
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देहरादून- उत्तराखंड के हर्ष देव औली को अंग्रेजों ने इसलिए दिया था ये नाम, नैनीताल में ली अंतिम सांस

हर्ष देव औली एक राजनेता, पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सैनानी थे। उन्हें काली कुमाऊं के शेर के नाम से भी जाना जाता था। हर्ष देव का जन्म उत्तराखंड के चंपावत जिले में 4 मार्च 1890 को हुआ। 1919 में उन्हें पंडित मोती लाल नेहरू के इंडिपेंडेंट अखबार का उपसंपादक नियुक्त किया गया। जिसके एक साल बाद ही ये संपादक बने। हर्ष देव औली ने लीडर, हिंदुस्तान टाइम्स जैसे समाचार पत्रों में भी कार्य किया।

आजादी के लिए अंग्रेजों से जमकर लिया लोहा

आजादी के प्रति उनके जूनून और विचारों को देखते हुए 1923 में नाभा एस्टेट के राजा रिपुदमन सिंह ने उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया। 1924 में ये फारेस्ट ग्रीवेंस कमेटी के उपाध्यक्ष भी बने। सन् 1930 में औली ने जंगलात कानून के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। उन्होंने 1929 में लाहौर में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में

कुमाऊं क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। उनके कारनामों के कारण गोरे शासक उन्हें मुसोलिनी कहते थे। मुसोलिनी उन दिनों इटली का एक राजनेता था, जिसे फासीवाद का जनक माना जाता है। उसके विचार और हर्ष देव के विचार में तालमेल होने के कारण उन्हें ये नाम दिया गया। 5 जून 1940 को नैनीताल में हर्ष देव औली की मृत्यु हो गई।