उत्तराखंड में कीड़ा-जड़ी के व्यवसाय से जुड़े 10 हजार से ज्यादा लोगों पर संकट के बादल मंडराते दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसा इसलिए क्यों इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर यानी आईयूसीएन ने कीड़ा-जड़ी को अपनी रेड लिस्ट में शामिल किया है। वैसे तो आईयूसीएन ने सबसे पहले साल 2014 में कीड़ा-जड़ी पर खतरा बताया था। वही अब 9 जुलाई 2020 को जारी रेड लिस्ट में कीड़ा-जड़ी का नाम भी शामिल किया गया है।
आईयूसीएन ने कीड़ा-जड़ी को विलुप्त होती प्रजातियों में शामिल किया है। क्योंकि प्रदेश में पिछले चार सालों में इसकी पैदावार पचास फीसदी तक कम हुई है। जिससे साफ है कि इसकी पैदावार पर संकट है। वही इस फैसले के बाद सरकार भी कीड़ा-जड़ी के कारोबार पर रोक लगा सकती है।
ज्यादा इस्तेमाल बना खतरनाक
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि इस जड़ी को जरूरत से ज्यादा निकाला जा रहा है। जिसके कारण इसकी ग्रोथ प्रभावित हो रही है और यही अत्यधिक दोहन इसे विलुप्त होने के कगार पर ले जा रहा है। बता दें कि कीड़ा-जड़ी निकालने का काम उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होता है। इस काम से दस हजार से ज्यादा लोगो जुड़े हुए हैं। यह जड़ी दवाओं में पड़ती है। माना जाता है कि चीन इसका इस्तेमाल स्पोर्टस मेडिसिन के लिए करता है।
व्यापार के लिए जरूरी लाईसेंस
कीड़ा-जड़ी का लाइसेंस वन विभाग के डीएफओ की अनुमति से मिलता है। जिसे भी इससे जुड़ा काम करना है वो वन विभाग की अनुमति के बाद ही कर सकता है। जानकारी अनुसार कीड़ा जड़ी का एक्सपोर्ट भारत से चीन को होता है। इसके लिए चीन, भारत को प्रति किलो कीड़ा-जड़ी के 15 से 20 लाख रुपये देता है।