देहरादून-ईगास बग्वाल अपने पैतृक गांव में मनायेंगे सांसद बलूनी, लोगों से की ये अपील

देहरादून-राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने कहा कि वे इस बार की ईगास बग्वाल अपने पैतृक गांव में मनायेंगे। ईगास बग्वाल या इकाशी बग्वाल उत्तराखंड के सभी अंचलों का प्रमुख लोकपर्व है, जो दीपावली के 11 दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह 8 नवंबर अर्थात कार्तिक माह
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देहरादून-ईगास बग्वाल अपने पैतृक गांव में मनायेंगे सांसद बलूनी, लोगों से की ये अपील

देहरादून-राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने कहा कि वे इस बार की ईगास बग्वाल अपने पैतृक गांव में मनायेंगे। ईगास बग्वाल या इकाशी बग्वाल उत्तराखंड के सभी अंचलों का प्रमुख लोकपर्व है, जो दीपावली के 11 दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह 8 नवंबर अर्थात कार्तिक माह की 22 गते को मनाया जायेगा। सांसद बलूनी ने कहा कि उत्तराखंड के महत्वपूर्ण और वरिष्ठ पदों पर आसीन महानुभावों से भी ईगास बग्वाल अपने गांव में मनाने की अपील कर रहे हैं। उन्होंने इस संबंध में देशभर में उत्तराखंड की प्रवासी संस्थाओं, विदेशों में रहने वाले उत्तराखंडी बंधुओं से भी इस संबंध में अनुरोध किया है।

देहरादून-ईगास बग्वाल अपने पैतृक गांव में मनायेंगे सांसद बलूनी, लोगों से की ये अपील

अपना वोट-अपने गांव अभियान की चर्चा

अपना वोट-अपने गांव अभियान के तहत बलूनी लंबे समय से पलायन के खिलाफ अभियान चला रहे हैं, जिसके लिए वह अभी तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, सेना प्रमुख विपिन रावत, गीतकार और लेखक प्रसून जोशी, अंडमान निकोबार के लेफ्टिनेंट गवर्नर और पूर्व नौसेना प्रमुख डीके जोशी सहित अनेक प्रमुख उत्तराखंडियों से भेंट कर चुके हैं। सभी महानुभावों ने इस अभियान की प्रशंसा की है और वर्तमान परिस्थितियों में उत्तराखंड के लिए बहुत आवश्यक बताया है।

पलायन ने बनाया गांव को घोस्ट विलेज

बलूनी ने कहा कि प्रमुखत: शिक्षा, रोजगार के लिये उत्तराखंड से पलायन हुआ है। तेजी से उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की आबादी घटी है जिस कारण वहां विधानसभा सीटों की संख्या घटी है और अगले परिसीमन में और घट जाएंगी। पलायन के कारण अनेक गांव निर्जन (घोस्ट विलेज) घोषित हो चुके हैं, यह भयावह स्थिति है। उन्होंने कहा कि यह राज्य जनता ने बड़े त्याग और बलिदान के बाद प्राप्त किया है। शहीदों के सपनों का राज्य बनाने के लिए हमें निजी तौर पर भी इन अभियानों से जुडऩा होगा, ताकि हम अपनी जड़ों, संस्कृति और पूर्वजों की विरासत को सहेज कर रख सकें।