देहरादून-कोर्ट में खुल जायेगा सूर्यकांत धस्माना का पुराना चिट्ठा, कहीं दलालों ने तो नहीं किया है मौत का सौदा?

उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान तीन अक्टूबर 1994 को दंगा होने पर देहरादून में कर्फ्यू लगा दिया गया था। गुस्साई भीड़ ने तत्कालीन सपा नेता सूर्यकांत धस्माना के करनपुर (डालनवाला) स्थित आवास पर हमला बोल दिया। आरोप था कि घर पर छत से धस्माना व उनके अंगरक्षकों ने आंदोलनकारियों पर फायरिंग कर दी। एक आंदोलनकारी
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देहरादून-कोर्ट में खुल जायेगा सूर्यकांत धस्माना का पुराना चिट्ठा,  कहीं दलालों ने तो नहीं किया है मौत का सौदा?


उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान तीन अक्टूबर 1994 को दंगा होने पर देहरादून में क‌र्फ्यू लगा दिया गया था। गुस्साई भीड़ ने तत्कालीन सपा नेता सूर्यकांत धस्माना के करनपुर (डालनवाला) स्थित आवास पर हमला बोल दिया। आरोप था कि घर पर छत से धस्माना व उनके अंगरक्षकों ने आंदोलनकारियों पर फायरिंग कर दी। एक आंदोलनकारी राजेश रावत की मौत हो गई जबकि तीन रविंद्र रावत, राजीव मोहन और अजीत रावत जख्मी हो गए। दोनों तरफ से मुकदमे हुए। पहले सिविल पुलिस ने मामले की जांच की। बाद में राज्य सरकार ने सीबीआइ जांच की संस्तुति कर दी। वर्ष 1995 में सीबीआइ ने धस्माना और उनके चार अंगरक्षकों यशवीर सिंह, जितेंद्र सिंह, मदन सिंह और जयपाल सिंह के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया। मामला तभी से सीबीआइ अदालत में विचाराधीन था।


 पुलिसकर्मियों को गैर इरादतन हत्या (आइपीसी धारा-304), गैर-इरादतन हत्या का प्रयास (धारा-308) और साक्ष्य छुपाने (धारा-201) के अंतर्गत दोषी करार दिया। धारा-304 में सात-सात साल सश्रम कैद व दस-दस हजार रुपये जुर्माना, धारा-308 में पांच-पांच साल कारावास व पांच-पांच हजार रुपये जुर्माना व धारा-201 में दो-दो साल कैद व दो-दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई।
हाईकोर्ट ने उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों पर गोली चलाने के आरोपी तत्कालीन सपा नेता और वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना को स्पेशल जज सीबीआई के समक्ष पेश होने को कहा
उसी दिन उनकी जमानत अर्जी पर भी सुनवाई के निर्देश दिए हैं। साथ ही कोर्ट ने सीबीआई की अपील को स्वीकार करते हुए निचली अदालत का रिकार्ड कोर्ट में तलब किया था


न्यायमूर्ति आलोक सिंह एवं न्यायमूर्ति सर्वेश कुमार गुप्ता की संयुक्त खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार 2 अक्तूबर 1994 को उत्तराखंड आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहा कांड के बाद तीन अक्तूबर को राज्य आंदोलनकारी तत्कालीन सपा नेता सूर्यकांत धस्माना के देहरादून स्थित नन्ही दुनिया आवास पर जमा हुए थे ।

देहरादून-कोर्ट में खुल जायेगा सूर्यकांत धस्माना का पुराना चिट्ठा,  कहीं दलालों ने तो नहीं किया है मौत का सौदा?


देहरादून। १९९४ के करनपुर गोली कंाड में मारे गये निर्दोष राजेश रावत के हत्यारे कौन हैं यह अभी भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। जबकि यह मामला पिछले कई सालों से अदालत में विचाराधीन है। करनपुर के गोली कांड में उस वक्त राज्य आंदोलन के लिए सडकों पर उतर रहे आंदोलनकारियों पर उस समय गोलियां बरसायी गई थी जब वह आंदोलन के लिए करनपुर क्षेत्र में मुलायम सिंह यादव की पार्टी में रहने वाले सूर्यकांत धस्माना के आवास की ओर जा रहे थे। भीड को तितर-बितर करने के लिए सूर्यकांत धस्माना की छत से आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई गई थी और इस गोलीकांड में आंदोलनकारी राजेश रावत की मौत हो गई थी जबकि एक अन्य मोहन रावत इस गोलीकांड में घायल हो गया था। जिसके बाद घायल मोहन रावत ने सूर्यकांत धस्माना पर छत से गोली चलाये जाने की बात कही थी और इस गोलीकांड का मुख्य आरोपी सूर्यकांत धस्माना को बताया गया था।

कई सालों से कोर्ट में चल रहे इस मामले की जब सुनवाई तेज हुई तो कोर्ट में भी गवाहों ने धस्माना पर गोली चलाने की बात कही थी। जिसके बाद उस समय सूर्यकांत धस्माना एनसीपी छोडकर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये थे और गवाहों ने जिस समय कोर्ट मेंधस्माना को गोली चलाने की बात कही थी तो उस समय कांग्रेस ने प्रदेश मीडिया प्रभारी के पद से धस्माना की छुट्टी कर दी थी और धस्माना को कई कांग्रेसी नेताओं ने भी करनपुर गोलीकांड का दोषी करार दिया था। अब करनपुर गोलीकांड की सीबीआई जांच कर रही है और सीबीआई के विशेष न्यायधीश की अदालत में पुलिस के विवेचना अधिकारियों सहित ६ लोग गवाही के लिए पेश नहीं हो सके उस पर भी उंगलियां उठनी शुरू हो गयी हैं। ३ अक्टूबर को हुए करनपुर गोलीकांड में तीन चश्मदीद गवाहों अजीत रावत, धनंजय खंडूरी और रविन्द्र रावत ने अदालत में गवाही के दौरान धस्माना के हाथ में कोई हथियार न होने की जो बात कही है वह उनके पूर्व के दिये गये बयानों में विरोधाभाष पैदा कर रही है। जबकि मोहन रावतं गोली चलाए जाने की बात कह रहे हैं। अब गवाहों के अचानक अपने बयान बदल लेने के पीछे भी राजनैतिक ड्रामा सामने आ गया है। बताया जा रहा है कि गवाहों को बदलने की एवज में कथित रूप् से लाखों रूपये का सौदा किया जा चुका है और गवाहों को कथित रुप से तीन-तीन बिघा जमीन दिये जाने की भी चर्चाएं हो रही हैं इसके साथ ही धस्माना की छत से गोली चलाए जाने की बात पुलिस एवं अन्य गवाहों द्वारा भी की गई है। तो आखिर किस आधार पर कोर्ट में गवाही देने वाले गवाहों ने छत से गोली न चलाए जाने की बात कह डाली है।

इस खेल के पीछे मोटी रकम का सौदा होना बताया जा रहा है। हालांकि देर शाम तक बाकी के बचे गवाहों की भी गवाही पूरी हो जाएगी लेकिन कोर्ट अपना फैसला कब सुनाएगी इसका इंतजार मृतक के परिजनों के साथ-साथ उत्तराखंड के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारियों को भी है। हालांकि सीबीआई के पास इस मामले में धस्माना के खिलापफ महत्वपूर्ण साक्ष्य मौजूद हैं जिसके आधार पर चर्चा थी कि धस्माना को सजा मिलनी तय है। वहीं देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार प्रताप सिंह परवाना भी कथित रुप से धस्माना के गोली चलाए जाने की बात सुनने में आई है। कहा जा रहा है कि उनका साफ कहना है कि राज्य आंदोलन के लिए सडकों पर प्रदर्शन कर रही भीड पर सूर्यकांत धस्माना ने अपनी छत से कथित रुप से गोली चलायी थी और उस घटनाक्रम के कई फोटो भी उनके पास है उन्होंने कहा कि यदि इस मामले में धस्माना को कोर्ट से राहत मिलती है तो पीडत पक्ष को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना की बात वह कह रहे हैं, जिससे उन्हें न्याय मिल सके। उन्होंने कहा कि करनपुर गलीकांड के कई ऐसे सबूत भी मौजूद हैं जिन्हें यदि सार्वजनिक किया गया तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जायेगा। कुल मिलाकर इस पूरे मामले में अब भाजपा का एक गुट भी धस्माना के खिलाफ मोर्चा बांध्ेा हुए है। और उन नेताओंे का साफ कहना है कि करनपुर गोलीकांड में आंदोलनकारी मृतक रावत को तभी न्याय मिलेगा जब उनके हत्यारे को कडी सजा मिल जायेगी। इस पूरे मामले में कई नेताओं द्वारा राजनैतिक रोटियां सेकने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और न्याय की आस पाने के लिए मृतक के परिजनों की आंखें तरस गई हैं और अब उन्हें पूरा भरोसा है कि इन्साफ के मंदिर में उन्हें सच्चा न्याय मिलेगा। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह से गवाहों ने अपने बयान बदलकर एक आंदोलनकारी के शहीद होने की बात का छिपाने का प्रयास किया गया है उससे पूरा आंदोलनकारी मंच भी शर्मसार हुआ है। अब ऐसे में किस तरह एक स्वस्थ न्याय की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है
ये सब वो था जो आपको आज बताना जरूरी था पर सच्चाई तो सच्चाई रहेगी कि भग्गु भाई के शासन में जिसने ये सब सेटिंग गेटिंग की और आज दल बदलने के बाद नई जुबान बोल रहा है उसका क्या भरोसा कि कल कहां चला जाए  । क्यूंकि दलालों का कोई ईमान नहीं होता है । और आज क्यूंकि त्रिवेंद्र रावत ने सब दलालों की नाक में नकेल डाल दी है तो सब में हलचल है क्यूंकि दलाली के पैसे खाए बैठे है और जिन्होंने पैसे दिए है वो इन्हे जेल भेजने को तेयार है इसलिए दुश्मनों से मिलकर नित नए खेल व बयान देकर राज्य में अस्थिरता फैलाने वालों ने इनका नाम भी शामिल है