छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में होती है कुत्तों की पूजा, जानिए क्या है वजह

कुत्तों की पूजा – आपको सुनकर हैरानी होगी की भारत में एक मंदिर ऐसा भी हैं जहां देवता की नहीं एक कुत्ते की पूजा की जाती हैं और बहुत से भक्त पूजा करके अपने संकटो को दूर करते हैं। जी हां छत्तीसगढ़ में दुर्ग जिले के खापरी गाँव में स्थित कुकुरदेव का प्राचीन मंदिर है।
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छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में होती है कुत्तों की पूजा, जानिए क्या है वजह

कुत्तों की पूजा – आपको सुनकर हैरानी होगी की भारत में एक मंदिर ऐसा भी हैं जहां देवता की नहीं एक कुत्ते की पूजा की जाती हैं और बहुत से भक्त पूजा करके अपने संकटो को दूर करते हैं। जी हां छत्तीसगढ़ में दुर्ग जिले के खापरी गाँव में स्थित कुकुरदेव का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की सबसे अजीब बात यह है कि इस मंदिर में कुत्तों की पूजा की जाती है। वैसे इस मंदिर में शिवलिंग और अन्य प्रतिमायें हैं, पर विशेष रूप से ये एक कुत्ते का ही मंदिर कहा जाता है।

छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में होती है कुत्तों की पूजा, जानिए क्या है वजह

मंदिर की मान्यता

स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि इस मंदिर में दर्शन करने से कुकुर खांसी व कुत्ते के काटने जैसी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। मंदिर के पास ही मालीधोरी गांव है जिसका नामकरण मालीधोरी बंजारा के नाम पर हुआ है, जिसके कुत्ते के नाम पर ये मंदिर बना है। इस मंदिर में हालांकि किसी का इलाज तो नहीं होता, लेकिन ऐसा विश्वास है कि यहां आने से लोग ठीक हो जाते है। कई लोग तो ‘कुकुरदेव मंदिर’ का बोर्ड देखकर उत्सुकता से भी यहां आ जाते हैं। पास में ही मालीधोरी नाम का एक गाँव है, जिसका नाम मालीधोरी नाम के एक बंजारे के नाम पर रखा गया है। उन्ही के कुत्ते के नाम पर यह मंदिर बनाया गया है। यहाँ पर किसी का इलाज नहीं होता है लेकिन लोगों के अनुसार यहाँ आने वाले लोगों की समस्या खत्म हो जाती है।

मंदिर का निर्माण

इसका निर्माण फणी नागवंशी शासकों द्वारा 14-15 वीं शताब्दी में करवाया गया था। मंदिर के गर्भगृह में एक कुत्ते की प्रतिमा स्थापित की गयी है और बगल में ही एक शिवलिंग भी स्थापित किया गया है। मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ कुत्ते की प्रतिमा लगायी गयी है। लोग शिवलिंग के साथ ही कुकुरदेव की भी पूजा करते हैं। मंदिर के गुम्बद पर चारो दिशाओं में नाग के चित्र बने हुए हैं।

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क्या है मंदिर की कहानी

इस इलाके में फैली कहानियों की माने तो कभी यहां बंजारों की बस्ती थी। जिसमें मालीघोरी बंजारा अपने पालतू कुत्ते के साथ रहता था। एक बार अकाल पडऩे के कारण उसको अपने कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। साहूकार के घर चोरी होती है और कुत्ता चोरों को समीप के तालाब में समान छुपाते देख लेता है। अगले दिन कुत्ते के कारण साहूकार को चोरी का सामान मिल जाता है। इस से प्रसन्न हो कर साहुकार सारी बात एक कागज में लिखकर कुत्ते के गले में बांध कर असली मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर देता है। अपने कुत्ते को लौटकर आया देखकर बंजारा डंडे से पीट-पीटकर उसे मार डालता है। बाद में उसके गले में बंधे पत्र को पढक़र उसे अपनी गलती का एहसास होता है और वह अपने प्रिय स्वामी भक्त कुत्ते की याद में मंदिर प्रांगण में ही उसकी समाधि बनवा देता है। बाद में किसी ने कुत्ते की मूर्ति भी स्थापित कर दी। यही स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है।