चमोली- रेक्स्यू ऑपरेशन में ऐसे लोग बन रहे दिक्कत, फंसे लोगो तक पहुंचना बचाव टीमों का लक्ष्य

यकीनन परेशान करने वाली बात है कि चमोली में आई आपदा को आज आठवां दिन हो गया है। 51 शव बरामद हुए हैं। और शेष का कोई पता नहीं। संकट में घिरे लोगों के परिजन निराश होने के बाद भी किसी अच्छी खबर का खामोशी के साथ इतंजार रहे हैं। जो स्वाभाविक भी है। लेकिन
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चमोली- रेक्स्यू ऑपरेशन में ऐसे लोग बन रहे दिक्कत, फंसे लोगो तक पहुंचना बचाव टीमों का लक्ष्य

यकीनन परेशान करने वाली बात है कि चमोली में आई आपदा को आज आठवां दिन हो गया है। 51 शव बरामद हुए हैं। और शेष का कोई पता नहीं। संकट में घिरे लोगों के परिजन निराश होने के बाद भी किसी अच्छी खबर का खामोशी के साथ इतंजार रहे हैं। जो स्वाभाविक भी है। लेकिन हैरत है कि व्याकुल परिजनों की खामोशी में भी कुछ लोग गंदी राजनीति के अवसर तलाश रहे हैं।

कुछ लोगों द्वारा जो वहां किया जा रहा है उसे कतई घटिया ही कहा जायेगा। इस घटिया स्तर की मानसिकता को ना किसी पर आई विपदा से मतलब है और ना ही किसी राहत से। यह गलत है। वहां राजनीति नहीं बल्कि राहत और बचाव में जुटे जवानों के साथ ही पूरे सिस्टम की हौसलाफजाही होनी चाहिए। जिंदगी की ओर कौन नहीं जाना चाहेगा।

फंसे लोगो तक पहुंचना बचाव टीमों का लक्ष्य

आपदा के मलवे ने वहां हालात बहुत खराब किए हैं, जहां जिंदगी की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। बेहिसाब मलवा टनलों के अलावा हर जगह फैला पड़ा है। मलवा हटाने वाले लोडर मशीन चलाने वाले विद्यादत्त कहते हैं कि फंसे हुए लोगों तक पहुंचना यहां जुटे हर बंदे के जीवन का लक्ष्य बना हुआ है। मलवा हटाने के लिए हाथ में गैंती फावड़ा लिए जवानों के हाथ भी उस तेजी से नहीं चल पा रहे रहे हैं, जैसे चलने चाहिए थे। वही हाल जेसीबी मेशीन वालों का है।

हर कोई इस बात से डर रहा है कि हो ना हो उनकी गैंती फावड़े या दांते संकट में फंसी किसी जिंदगी पर भारी ना पड़ जाएं। यहां राहत और बचाव का काम दोधारी तलवार पर चलना जैसा है। यहां हर कोई चाहता है कि वह जैसे-तैसे करके मुकिश्ल में फंसी किसी जिंदगी तक पहुंच जाए। लेकिन मलवे के भीतर क्या स्थिति होगी यह सोचकर मलवे पर गैंती फावड़ा चलाने में दिलों का कांपना अपनी जगह स्वाभाविक है। उन्हें बहुत ही सोच समझकर और हर कदम को फूंक कर रखना पड़ रहा है। हालातों को दूर से निगरानी करने वाले चाहे जो भी कहें लेकिन वास्तव में सच्चाई यह है।

हैरत यह है कि हर आपदाग्रस्त क्षेत्र की तरह यहां भी राजनीति करने वाले वहां राहत कार्य में जुटी टीमों के सिस्टम की कार्यकुशलता और उनकी तकनीकी दक्षता तक पर सवाल उठा रहे हैं। जबकि सीधी बात यह है कि जिन लोगों का लक्ष्य ही संकट में फंसे लोगों की जान बचाना हो वह जानबूझ क्यों देरी करेंगे। कौन अपने लक्ष्य में सफल नहीं होना चाहता। लक्ष्य भी वो, जिसके एक छोर पर जिंदगी हो और दूसरे पर मौत। तो जिंदगी की और कौन नहीं जाना चाहेगा।

बचाव टीमों को दें हिम्मत

प्रभावित क्षेत्र में गुजरे सप्ताह के दौरान से सूचनाएं आई हैं तो वहां ऐसे लोगों की भी बड़ी जमात है जो राहत के नाम पर वहां मौजमस्ती करने पहुंचे हैं। कुछ वो हैं जो अपनी राजनीति चमकाने की मंशा से हैं। उनकी वह कथित भल-मनसाहत राहत की जगह परेशानी ही खड़ी कर रही है। और यह कहना भी गलत नहीं होगा कि राहत और बचाव टीमों की हौसलाफजाही की जगह उनका मनोबल तोड़ने का भी वहां प्रयास हो रहा है।

सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह सब हो रहा है या फिर आपदा पर्यटन का लुत्फ लेने का बदचलन। इनमें से जो भी हो, लेकिन यह गलत है। वहां प्रभावित लोगों के साथ ही राहत और बचाव में लगे जवानों का हौसला बढ़ाने की आवश्यकता है। तो प्लीज ऐसा कुछ ना करें जो संकट में फंसी जिंदगियों को बचाने के प्रयासों में व्यवधान हो।