2005 से खुद को जिंदा साबित करने की लड़ाई लड़ रहे भोला की आखिरकार हुई जीत, तहसीलदार ने दिया जीवित होने का प्रमाणपत्र

न्यूज टुडे नेटवर्क। मिर्जापुर जिले में सरकारी रिकार्ड में खुद को जिंदा साबित करने के लिए मृतक भोला को करीब 15 साल का समय लग गया। भोला अधिकारियों के साथ-साथ न्यायालय के चक्कर लगाता रहा। जिलाधिकारी कार्यालय पर गत माह धरना देने के पश्चात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले का संज्ञान लिया तब कही जाकर
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2005 से खुद को जिंदा साबित करने की लड़ाई लड़ रहे भोला की आखिरकार हुई जीत, तहसीलदार ने दिया जीवित होने का प्रमाणपत्र

न्‍यूज टुडे नेटवर्क। मिर्जापुर जिले में सरकारी रिकार्ड में खुद को जिंदा साबित करने के लिए मृतक भोला को करीब 15 साल का समय लग गया। भोला  अधिकारियों के साथ-साथ न्यायालय के चक्‍कर लगाता रहा। जिलाधिकारी कार्यालय पर गत माह धरना देने के पश्‍चात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले का संज्ञान लिया तब कही जाकर जांच में तेजी आई और भोला जिंदा साबित हो गया।

15 साल की मेहनत के बाद आखिरकार खुद को जिंदा साबित करने की लड़ाई में भोला की जीत हुई। दरअसल भोला मिर्जापुर सदर तहसील क्षेत्र के अमोई गांव की पुस्तैनी जमीन पर भोला के सगे भाई की नीयत बदल जाने से लेखपाल के साथ मिलकर सरकारी कागजों पर जिंदा इंसान को मृत दर्ज कर दिया था।

वर्ष 1999 तक भोला का नाम खतौनी में दर्ज था। जिसे मृत दिखाकर भोला के भाई ने अपना नाम दर्ज करा लिया लिया था। इसकी जानकारी भोला को 2005 में हुई तो वह खुद को जिंदा साबित करने में लग गया। खुद को जिंदा साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे भोला की आखिरकार जीत हुई और उनका नाम तहसीलदार के आदेश पर सरकारी दस्तावेजों पर दर्ज किया गया।

तहसीलदार सुनील कुमार ने भोला का नाम दर्ज कराने के साथ ही उसे खतौनी भी दी। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में सदर तहसील क्षेत्र के अमोई गांव के निवासी भोला ने 2005 में अपने भाई राज नारायण पर, लेखपाल और कानूनगो की मदद से जमीन के कागज (खतौनी) पर उन्हें मृतक दर्ज कराए जाने का आरोप लगाया था। 2016 में इन तीनों लोगों को आरोपी बनाकर मुकदमा भी दर्ज किया गया।

जिसके बाद वह अधिकारियों की चौखट पर भी गुहार लगाता रहा। अंततः सत्य की जीत हुई और झूठ हार गया और तहसीलदार ने भोला को जीवित होने का प्रमाणपत्र दिया।