बरेली- (पंडित राधेश्याम कथावाचक समारोह) लेखक हरिशंकर शर्मा की लिखी पुस्तक “राधेश्याम डायरी” का हुआ विमोचन, जीवन्त कहानी

“राधेश्याम डायरी” का विमोचन – जहां एक ओर पूरा देश महाराष्ट्र में सत्ता के लिये किसी भी हद तक गिरने की होड़ देख रहा था, वहीं बरेली का संजय कम्युनिटी हॉल गवाह बना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के त्याग का, मौका था दशरथ कैकई संवाद का जिसमे भगवान श्रीराम को जब पता चलता है कि माता
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बरेली- (पंडित राधेश्याम कथावाचक  समारोह) लेखक हरिशंकर शर्मा की लिखी पुस्तक “राधेश्याम डायरी” का हुआ विमोचन, जीवन्त कहानी

“राधेश्याम डायरी” का  विमोचन – जहां एक ओर पूरा देश महाराष्ट्र में सत्ता के लिये किसी भी हद तक गिरने की होड़ देख रहा था, वहीं बरेली का संजय कम्युनिटी हॉल गवाह बना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के त्याग का, मौका था दशरथ कैकई संवाद का जिसमे भगवान श्रीराम को जब पता चलता है कि माता कैकयी चाहती हैं कि मैं भरत को राजपाट सौंप कर चौदह वर्ष के वनवास के लिये चला जाऊं तो उन्होंने एक छण भी नहीं लगाया वन के लिये प्रस्थान करने में। पंडित राधेश्याम कथावाचक की कालजयी रचना की पंकितयों के मंचन ने हाल में उपस्थित भारी संख्या में उपस्थित साहित्य प्रेमी जनता के हृदय में भगवान श्रीराम के त्याग को तो जीवंत किया ही, भारतीय सविंधान दिवस पर राजनीतिक शुचिता की उम्दा तस्वीर भी दिखाई दी। दूसरे दिन कार्यक्रम का शुभारंभ जयपुर के प्रसिद्ध लेखक हरिशंकर शर्मा ने किया ।

बरेली- (पंडित राधेश्याम कथावाचक  समारोह) लेखक हरिशंकर शर्मा की लिखी पुस्तक “राधेश्याम डायरी” का हुआ विमोचन, जीवन्त कहानी

इस अवसर पर उनकी लिखित राधेश्याम डायरी का व्याकरण नामक पुस्तक का विमोचन भी किया गया। नाटक में कैकयी कोपभवन में है जो अपने रौद्र रूप में है महाराजा दशरथ उन्हें मनाने का प्रयास करते हैं लेकिन कैकयी नही मानती है अंत में दशरथ को कैकयी के वरदान देने ही पड़ते हैं अंत में दुखी होकर दशरथ राम को वनवास और भरत को राज तिलक देने का वचन देते हैं कैकयी सुमन्त के द्वारा राम को बुलाती हैं राम सहर्ष वनवास स्वीकार कर लेते हैं और कौशल्या से मिलकर सीता और लक्षमण सहित वन को चले जाते हैं.. इसी दिन दूसरे नाटक भरत मिलाप का मंचन हुआ जो मानव सेवा योग संस्थान द्वारा प्रस्तुत किया गया।

भरत मिलाप

भरत जी कैकयीपुर से लौट कर आते हैं, अयोध्या में निराशा के बादल छाए देखकर अपनी माता के पास जाते हैं। माता से उदासीनता का कारण पूछते हैं माता कैकयी पुत्र भरत को समझाने का प्रयास करती हैं कि वीधि के विधान को कोई टाल नही सकता जो हुआ है ईश्वर की मर्जी से हुआ है भरत को अवगत होता है कि उनकी माता के द्वारा मांगे गये दो वरदान जिसमें भरत को अयोध्या का राजा और दूसरे वर में भ्राता राम को चौदह वर्ष का वनवास सुनाते ही व्याकुल हो जाते हैं भरत माता कैकयी को क्रोध आग में भला बुरा कहते हैं वे अयोध्या का राजा बनने के लिए तैयार नही होते हैं अपने भाई राम को वनवास से वापस लेने जाते हैं वहां से राम के आदेश से वापस आते समय अपने भ्राता राम की चरण पादुकायें लेकर आते हैं अयोद में रह कर भी वह वनवासी की तरह रहते हैं और राज सिंहासन स्वीकार नही करते हैं, इस मोके पर आयोजन समिति के अध्यक्ष एडवोकेट घनश्याम शर्मा, सचिव कुलभूषण शर्मा, गिरधर गोपाल खंडेलवाल, राजेश गुप्ता, समयून खान दिनेश्वर दयाल सक्सेना , गौरव वर्मा, मोहित, आशीष गुप्ता, एवं मीडिया प्रभारी दानिश जमाल उपस्थित रहे। डी एन शर्मा द्वारा कुशल संचालन किया गया एवं सभी का आभार व्यक्त किया गया।