बरेली-13 को निकलेंगी भगवान बाल्मीकि की शोभायात्रा, जानिये क्या होगा खास

बरेली-गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी शरद पूर्णिमा को भगवान वाल्मीकि प्रकटोत्सव शोभायात्रा बड़े धूमधाम हर्षोल्लास से निकाली जायेगी। इसके लिए सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है। आगामी 13 अक्टूबर को दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक शोभायात्रा निकाली जायेगी। कार्यक्रम में मुक्ति माला, दीप प्रज्वलित , भगवान वाल्मीकि जी की
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बरेली-13 को निकलेंगी भगवान बाल्मीकि की शोभायात्रा, जानिये क्या होगा खास

बरेली-गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी शरद पूर्णिमा को भगवान वाल्मीकि प्रकटोत्सव शोभायात्रा बड़े धूमधाम हर्षोल्लास से निकाली जायेगी। इसके लिए सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है। आगामी 13 अक्टूबर को दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक शोभायात्रा निकाली जायेगी। कार्यक्रम में मुक्ति माला, दीप प्रज्वलित , भगवान वाल्मीकि जी की आरती, विशेष अतिथियों का सम्मान एवं परिचय, शोभायात्रा को झंडी देना, झाँकियों की वापसी पर पुरस्कार वितरण किया जायेगा।

बरेली-13 को निकलेंगी भगवान बाल्मीकि की शोभायात्रा, जानिये क्या होगा खास
अध्यक्ष मनोज भारती ने बताया कि शोभायात्रा के दौरान किसी प्रकार का असलहा, हथियार लाना प्रतिबंधित है। उन्होंने शोभायात्रा में पुलिस प्रशासन को सहयोग करने की अपील की।

वाल्मीकि ने ऐसे की थी रामायण की रचना

महर्षि वाल्मीकि को आदि भारत का प्रमुख ऋषि माना जाता है। उनको संस्कृत भाषा के आदि कवि होने का गौरव भी प्राप्त है। वहीं आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के तौर पर भी जाने जाते हैं। उनके द्वारा रचित रामायण को सबसे ज्यादा सही माना गया है। हालांकि इसकी कई बातें तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण से अलग हैं।

रामायण ग्रंथ

महर्षि वाल्मीकि को श्री राम के जीवन की हर घटना का ज्ञान था। इसी आधार पर उन्होंने “रामायण” ग्रंथ की रचना की। इसमें कुल 24000 श्लोक है और 7 अध्याय है जो कांड के नाम से जाने जाते है। इस ग्रंथ से त्रेता युग की सभ्यता, रहन-सहन, सस्कृति की पूरी जानकारी मिलती है।

लव कुश का जन्म कथा

ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्होने “रामायण” जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की। वाल्मीकि राम के समकालीन थे। जब श्रीराम से सीता का त्याग कर दिया था तब महाऋषि वाल्मीकि ने ही इनको आश्रय दिया था। उनके आश्रम में ही माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया। जब श्रीराम से अश्वमेध यज्ञ किया तो लव कुश ने वाल्मीकि के आश्रम में यज्ञ के घोड़े को बांध लिया। बाद में उन्होंने लक्ष्मण की सेना को पराजित कर अपना शौर्य दिखाया।

बरेली-13 को निकलेंगी भगवान बाल्मीकि की शोभायात्रा, जानिये क्या होगा खास

महर्षि वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर बताया जाता है। कहा जाता है कि इनका पालन पोषण भील समुदाय में हुआ था। हालांकि एक और कथा के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण से हुआ था। इनकी माता का नाम चर्षणी था और भृगु को इनका भ्राता बताया गया है। उपनिषद में मौजूद विवरण के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि को अपने भाई भृगु की तरह ही परम ज्ञान प्राप्त हुआ था।

महर्षि वाल्मीकि – डाकू रत्नाकर

महर्षि वाल्मीकि अपने जीवन के आरम्भिक काल में वो “रत्नाकर” नाम के डाकू थे जो लोगो को मारने के बाद उनको लूट लिया करते थे। वे अपने परिवार का भरण पोषण के लिए ऐसा काम करते थे। एक बार इन्होने नारद मुनि को बंदी बना लिया। नारद ने पूछा कि ऐसा पाप कर्म क्यों करते हो ? रत्नाकर बोले “अपने परिवार के लिए?” नारद पूछने लगे कि क्या तुम्हारा परिवार भी तुम्हारे पाप का भागीदार बनेगा। “हाँ, बिलकुल बनेगा” रत्नाकर बोले।

“अपने परिवार से पूछकर आओ क्या वो तुम्हारे पाप कर्म के भागीदार बनेगे। अगर वो हां बोलेंगे तो मैं तुमको अपना सारा धन दे दूंगा” नारद मुनि कहने लगे। लेकिन जब रत्नाकर घर जाकर वही सवाल करने लगे तो किसी ने हां नही की। उनको गहरा धक्का लगा। उन्होंने चोरी, लूटपाट, हत्या का रास्ता छोड़ दिया और तपस्या करने लगे। नारद मुनि ने इनका हृदय परिवर्तन किया था और श्री राम का भक्त बना दिया था। सालों तक तपस्या करने के बाद आकाशवाणी ने उनका नया नाम “वाल्मीकि” बताया था। इन्होने इतनी गहरी तपस्या की थी कि इनके शरीर में दीमक लग गयी थी। ब्रह्मदेव ने इनको ज्ञान दिया और रामायण लिखने की प्रेरणा दी।

कब और कैसे मनाई जाती है महर्षि वाल्मीकि जयंती

वाल्मीकि जयंती हर साल अश्विन महीने की पूर्णिमा को देश भर में धूम धाम से मनाई जाती है। “महर्षि वाल्मीकि” की प्रतिमा पर माल्यार्पण और सजावट करके जगह-जगह जुलूस, झांकियां और शोभायात्रा निकाली जाती है। लोगो को बहुत उत्साह रहता है। भक्तगण गीतों पर नाचते, झूमते रहते हैं। इस अवसर पर श्री राम के भजन गाये जाते हैं। यह दिन एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोग सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, वाट्सअप पर बधाई संदेश एक दूसरे को देते हैं।

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