अयोध्या – जानिए अयोध्या विवाद का संपूर्ण घटनाक्रम

अयोध्या विवाद – देश की सबसे बड़ी अदालत का फैसला आज आ गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित जमीन रामलला की है। कोर्ट ने इस मामले में निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि तीन पक्ष में जमीन बांटने का हाई कोर्ट फैसला तार्किक नहीं था।
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अयोध्या – जानिए अयोध्या विवाद का संपूर्ण घटनाक्रम

अयोध्या विवाद – देश की सबसे बड़ी अदालत का फैसला आज आ गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित जमीन रामलला की है। कोर्ट ने इस मामले में निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि तीन पक्ष में जमीन बांटने का हाई कोर्ट फैसला तार्किक नहीं था। कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन दी जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी वैकल्पिक जमीन देना जरूरी है।अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट में 16 अक्टूबर 2019 को अयोध्या विवाद मामले पर सुनवाई पूरी हुई थी। 6 अगस्त से लगातार 40 दिनों तक इसपर सुनवाई हुई थी।

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संपूर्ण घटनाक्रम

1813 : पहली बार हिन्दू संगठनों ने दावा किया कि 1528 में बाबर के सेनापति मीर बांकी ने मंदिर तोडक़र अयोध्या में मस्जिद बनाई।
1853 : विवाद की शुरुआत 1853 में हुई जब इस स्थान के आसपास पहली बार सांप्रदायिक दंगे हुए।

1859 : अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी और मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की अनुमति दी गई।
1885: फरवरी 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर कर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली।

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1949 : असली विवाद तब शुरू हुआ जब 23 दिसंबर 1949 को भगवान राम और लक्ष्मण की मूर्तियां विवादित स्थल पर पाई गईं। उस समय हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों का आरोप था कि रात में चुपचाप किसी ने मूर्तियां रख दीं। उस समय सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया।
1950 : 16 जनवरी 1950 को गोपालसिंह विशारद नामक व्यक्ति ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने याचिका दाखिल कर पूजा की इजाजत मांगी, जो कि उन्हें मिल गई, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की।
1984 : मंदिर बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया।
1986 : फैजाबाद के जज ने 1 फरवरी 1986 को जन्मस्थान का ताला खुलवाने और हिन्दुओं को पूजा करने का अधिकार देने का आदेश दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे।
1990 : भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए एक रथयात्रा शुरू की, लेकिन उन्हें बिहार में ही गिरफ्तार कर लिया गया।

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1992 : यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विवादित स्थान की सुरक्षा का हलफनामा दिया, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को कथित रूप से भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने ढांचे को गिरा दिया। देशभर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भडक़ गए, जिनमें करीब 2000 लोग मारे गए।

1993 : विवादित स्थल में जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्र ने ‘अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून पारित किया। अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई रिट याचिकाएं दायर की गईं। इनमें इस्माइल फारूकी की याचिका भी शामिल। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 139ए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रिट याचिकाओं को स्थानांतरित कर दिया जो उच्च न्यायालय में लंबित थीं।
1994 : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ी हुई नहीं है।

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2002 : उच्च न्यायालय में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू।

2003 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2003 में झगड़े वाली जगह पर खुदाई करवाने के निर्देश दिए ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था।

2010 : 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश पारित कर अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित भूमि को 3 हिस्सों में बांट दिया। एक हिस्सा रामलला के पक्षकारों को मिला। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को, जबकि तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मिला।

2011 : उच्चतम न्यायालय ने 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाए जाने की मांग की।

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21 मार्च 2017 : सीजेआई जे एस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया।

7 अगस्त 2017 : उच्चतम न्यायालय ने तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जो 1994 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
8 अगस्त 2017 : उत्तरप्रदेश शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि विवादित स्थल से उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है।
11 सितम्बर 2017 : उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि दस दिनों के अंदर दो अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करें जो विवादिस्त स्थल की यथास्थिति की निगरानी करे।

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20 नवम्बर 2017 : यूपी शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मंदिर का निर्माण अयोध्या में किया जा सकता है और मस्जिद का लखनऊ में।
01 दिसम्बर 2017 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती देते हुए 32 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर की।
08 फरवरी 2018 : सिविल याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई शुरू की।
14 मार्च 2018 : उच्चतम न्यायालय ने स्वामी की याचिका सहित सभी अंतरिम याचिकाओं को खारिज किया।
06 अप्रैल 2018 : राजीव धवन ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर 1994 के फैसले की टिप्पणियों पर पुनर्विचार के मुद्दे को बड़े पीठ के पास भेजने का आग्रह किया।

06 जुलाई 2018 : यूपी सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि कुछ मुस्लिम समूह 1994 के फैसले की टिप्पणियों पर पुनर्विचार की मांग कर सुनवाई में विलंब करना चाहते हैं।

20 जुलाई 2018 : उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।

27 सितम्बर 2018 : उच्चतम न्यायालय ने मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इंकार किया। मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर को तीन सदस्यीय नयी पीठ द्वारा किए जाने की बात कही।

29 अक्टूबर 2018 :उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में तय की जो सुनवाई के समय पर निर्णय करेगी।

12 नवम्बर 2018 :अखिल भारत हिंदू महासभा की याचिकाओं पर जल्द सुनवाई से उच्चतम न्यायालय का इंकार।

04 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मालिकाना हक मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ दस जनवरी को फैसला सुनाएगी।

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08 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई करेंगे और इसमें न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना, न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ शामिल होंगे।

10 जनवरी 2019 : न्यायमूर्ति यू यू ललित ने मामले से खुद को अलग किया जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नयी पीठ के समक्ष तय की।

25 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नयी पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर शामिल थे।

26 फरवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए पांच मार्च की तारीख तय की जिसमें मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं इस पर फैसला लिया जाएगा।

08 मार्च 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला बनाए गए।
09 अप्रैल 2019 : निर्मोही अखाड़े ने अयोध्या स्थल के आसपास की अधिग्रहीत जमीन को मालिकों को लौटाने की केन्द्र की याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध किया।
10 मई 2019 : मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने 15 अगस्त तक समय बढ़ाई।
11 जुलाई 2019 : उच्चतम न्यायालय ने “मध्यस्थता की प्रगति” पर रिपोर्ट मांगी।
18 जुलाई 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देते हुए एक अगस्त तक परिणाम रिपोर्ट देने के लिये कहा।

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01 अगस्त 2019 : मध्यस्थता की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को दी गई।
02 अगस्त 2019 : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता नाकाम होने पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई का फैसला किया।
06 अगस्त 2019 : उच्चतम न्यायालय ने रोजाना के आधार पर भूमि विवाद पर सुनवाई शुरू की।
04अक्टूबर 2019 : अदालत ने कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवंबर तक फैसला सुनाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिये कहा।
16 अक्टूबर 2019 : उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा।

9 नवंबर 2019 :  सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर बड़ा फैसला देते हुए विवादित जमीन रामलला को देने के निर्देश दिए , साथ ही अदालत ने मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ भूमि अलग से उपलब्ध करवाने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि मुस्लिम पक्ष कब्जा साबित करने में नाकाम रहा। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो गया।

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