नैनीताल - घर से दूर था शौचालय उम्मीदवार का नामांकन कर डाला रद्द, अब राज्य निर्वाचन आयोग को कोर्ट ने लगाई फटकार 

 

नैनीताल - उत्तराखंड हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक महरा (Alok Mahra) की खंडपीठ ने ग्राम पंचायत चुनाव से जुड़े एक मामले में स्पष्ट किया है कि यदि उम्मीदवार के घर के परिसर से कुछ दूरी पर शौचालय बना है तो उसे “घर में शौचालय न होना” मानकर नामांकन निरस्त नहीं किया जा सकता। अदालत ने इसे नामांकन खारिज करने का वैध आधार मानने से इंकार किया और संबंधित रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) के रवैये पर कड़ी टिप्पणी की। 


मामला क्या है?
टिहरी गढ़वाल ज़िले के उदवाखंड गांव से ग्राम प्रधान पद की उम्मीदवार कुसुम कोठियाल का नामांकन इस आधार पर निरस्त कर दिया गया था कि उनके घर में शौचालय नहीं है। याची के अनुसार आरओ ने 9 जुलाई को नामांकन रद्द किया, जबकि जांच में सामने आया कि शौचालय उनके निवास से लगभग 150 मीटर दूरी पर बना है। अदालत में रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और स्थानीय निरीक्षण रिपोर्ट ने भी शौचालय की मौजूदगी की पुष्टि की। 


याची की दलीलें और प्रक्रिया पर सवाल -
कुसुम कोठियाल ने कहा कि उनके खिलाफ की गई शिकायत की प्रति उन्हें नहीं दी गई और न ही सफाई का अवसर दिया गया; सीधे स्थानीय जांच बैठा दी गई। गांव पंचायत विकास अधिकारी की रिपोर्ट में शौचालय दर्ज होने के बावजूद नामांकन निरस्त कर दिया गया। अदालत ने नोट किया कि तथ्यात्मक पुष्टि किए बिना और प्रत्याशी को सुनवाई का मौका दिए बगैर नामांकन रद्द करना प्रक्रिया के विरुद्ध है। 


कोर्ट की कड़ी टिप्पणियाँ -
खंडपीठ ने कहा कि “शौचालय का होना” और “उसका घर से दूर होना” दो अलग बातें हैं। ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता व गंध जैसी व्यावहारिक वजहों से शौचालय अक्सर मुख्य मकान से दूरी पर बने होते हैं—यह ज्ञात एवं प्रचलित व्यवहार है। अदालत ने आरओ की कार्रवाई को prima facie “malfeasance” (दुर्भावनापूर्ण/अनुचित आचरण) बताते हुए कहा कि उसने अपने अधिकारों का मनमाना प्रयोग किया और विधि-व्याख्या में जाकर सीमा लांघी। 

अदालत के आदेश -
हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) को निर्देश दिया कि कुसुम कोठियाल को चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाए, उनका नाम मतपत्र में शामिल किया जाए और उन्हें चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने दिया जाए। साथ ही, राज्य निर्वाचन आयुक्त को मामले की जांच कर 11 अगस्त तक रिपोर्ट अदालत में दाखिल करने को कहा गया। 


कानूनी पृष्ठभूमि: क्या कहता है अधिनियम?
उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 की धारा 8(3)(b) में प्रावधान है कि “यदि संबंधित पंचायत क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति के घर में शौचालय स्थापित नहीं है तो वह पंचायत चुनाव के लिए अयोग्य होगा।” हाईकोर्ट ने संकेत दिया कि इस प्रावधान की व्याख्या करते समय वास्तविक ग्रामीण परिप्रेक्ष्य और तथ्यात्मक स्थिति देखना आवश्यक है; मात्र दूरी पर बने शौचालय को “घर में शौचालय नहीं” नहीं माना जा सकता, खासकर जब स्वामित्व और उपयोग का प्रमाण हो।