अल्मोड़ा- ईड़ा बाराखाम के ग्रामीणों की अनोखी पहल, ऐसे उत्तराखंड की संस्कृति को बड़ दिन कौतिक से जोड़ा

Almrora News-प्रदेश में लगातार पलायन हो रहा हैं। ऐसे में पहाड़ के लोगों को पहाड़ पर रोकना एक बड़ी चुनौती है। पहाड़ में सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। रोजगार की तलाश में सैकड़ों युवा रह दिन शहरों का रूख कर रहे हैं। कभी-कभी कई मौके ऐसे आते है, जब ये सभी युवा एकजुट होते
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अल्मोड़ा- ईड़ा बाराखाम के ग्रामीणों की अनोखी पहल, ऐसे उत्तराखंड की संस्कृति को बड़ दिन कौतिक से जोड़ा

Almrora News-प्रदेश में लगातार पलायन हो रहा हैं। ऐसे में पहाड़ के लोगों को पहाड़ पर रोकना एक बड़ी चुनौती है। पहाड़ में सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। रोजगार की तलाश में सैकड़ों युवा रह दिन शहरों का रूख कर रहे हैं। कभी-कभी कई मौके ऐसे आते है, जब ये सभी युवा एकजुट होते हंै, जो पहाड़ को आगे बढ़ाने के लिए कई तरह के कार्यक्रमों में भाग लेकर पहाड़ में रह रहे लोगों का मनोबल बढ़ाते है। हर साल 25 दिसम्बर को ईड़ा बाराखाम ग्राम सभा द्वारा बड़ दिन कौतिक महोत्सव का आयोजन किया जाता हैं, जिसमें क्षेत्रीय युवाओं को प्रतिभाग करने का मौका मिलता है। है।

अल्मोड़ा- ईड़ा बाराखाम के ग्रामीणों की अनोखी पहल, ऐसे उत्तराखंड की संस्कृति को बड़ दिन कौतिक से जोड़ा

 

ऐसे खास हुआ बड़ दिन कौतिक

इन दिनों बड़ दिन कौतिक की चर्चाएं सोशल मीडिया से अखबारों तक की सुर्खियां बनी है। यहां के ग्रामीणों ने मिलकर उत्तराखंड की संस्कृति को संवारने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरूआत की। इसका मुख्य कारण यहां के युवाओं का आगे आना है, जो दिल्ली से पहाड़ लौटकर हर साल बड़ दिन कौतिक में बड़े जोश और उत्साह के साथ प्रतिभाग करते है। क्षेत्र के लोगों को भी उनके आने का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस क्षेत्र के कई युवा उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने के लिए आगे आये है। उत्तराखंडी लोकगायकी में यहां के युवाओं ने बढ़-चढक़र हिस्सा लिया हैं। समय-समय अपनी गायकी और हास्य रचनाओं से लोगों को जागरूक करने का काम किया है।

अल्मोड़ा- ईड़ा बाराखाम के ग्रामीणों की अनोखी पहल, ऐसे उत्तराखंड की संस्कृति को बड़ दिन कौतिक से जोड़ा

दिल्ली से क्षेत्रीय युवा गायकों को बुलाया पहाड़

बड़ दिन कौतिक महोत्सव का आयोजन 25 दिसम्बर को दीपा माता मंदिर ईड़ा बाराखाम में किया जा रहा है। इस महोत्सव में लोगों को थिरकाने के लिए उत्तराखंड के सुपरस्टार लोकगायक रमेश बाबू गोस्वामी के अलावा प्रकाश काहला जिन्होंने लोकगायकी में अपनी अलग पहचान बनाई। वहीं मतदान को लेकर लोगों को जागरूक करने वाले लोकगायक सुनील कुमार सोनू, लोकगायक राजेन्द्र बिष्ट, दीवान सिंह और हाल ही में अपने गीत रूकजा दादा, रूकजा भुली मेरो पहाड़ से लोगों को पहाड़ रहने की सलाह देने वाले नवीन रावत अपनी गायकी से लोगों को जागरूक करने का काम करेंगे। कुमाऊंनी हास्य कवि शिबू रावत ने अपने क्षेत्र के लोगों को गुदगुदाने का ठेका लिया है।

संस्कृति संवारने में जुटा ईड़ा बाराखाम

इन सभी गायकों ने उत्तराखंड की गायकी में अपने क्षेत्र का नाम रोशन किया हैं। जिस तरह से एक क्षेत्र के गायक एक ही स्टेज पर शो कर रहे है। यह उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है। अल्मोड़ा जिले में यह एक अनोखा कार्यक्रम होगा, जिसमें एक ही क्षेत्र के गायक और हास्य कलाकर एक साथ मंच पर दिखेंगे। इसके अलावा बड़ दिन कौतिक को खास बनाने के लिए आयोजकों ने कई अन्य कार्यक्रमों की रूप रेखा तय की है। ईड़ा बाराखाम के ग्रामीण कई वर्षों से बड़ दिन कौतिक महोत्सव मनाते आ रहे है। पहले यहां भजन-कीर्तन होते थे, बाद में ग्रामीणों की पहल पर भजन-कीर्तन के साथ-साथ उत्तराखंड की संस्कृति को संवारने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाने लगा, जिसमें प्रतिभाग करने वाले अधिकांश गायक द्वाराहाट और चौखुटियां क्षेत्र से जुड़े हैं। जो देवभूमि उत्तराखंड के लिए एक अच्छा संदेश है।