499 वर्ष के बाद दीपावली पर होगा यह दुर्लभ संयोग, ग्रहों के होंगे दुर्लभ योग, जानिए कब, कैसे क्या हैं कारण, देखें यह खबर…

बरेली,न्यूज टुडे नेटवर्क। इस बार दीपावली पर दुर्लभ संयोग उत्पन्न हो रहा है। लगभग ४९९ वर्षों के बाद यह दुर्लभ संयोग बन रहा है। इन संयोगों में दीपावली पूजन इस बार बेहद खास होने वाला है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस योग में पूर्ण विधि विधान से पूजन अर्चन करने वालों को विशेष लाभ भी
 | 
499 वर्ष के बाद दीपावली पर होगा यह दुर्लभ संयोग, ग्रहों के होंगे दुर्लभ योग, जानिए कब, कैसे क्या हैं कारण, देखें यह खबर…

बरेली,न्‍यूज टुडे नेटवर्क। इस बार दीपावली पर दुर्लभ संयोग उत्‍पन्‍न हो रहा है। लगभग ४९९ वर्षों के बाद यह दुर्लभ संयोग बन रहा है। इन संयोगों में दीपावली पूजन इस बार बेहद खास होने वाला है। ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार इस योग में पूर्ण विधि विधान से पूजन अर्चन करने वालों को विशेष लाभ भी प्राप्‍त होंगे।

ज्योतिषाचार्य राजेश कुमार शर्मा के अनुसार इस वर्ष श्री शुभ सम्वत् 2077 शाके 1942 कार्तिक कृष्ण अमावस्या 30 ( प्रदोष-कालीन ) अंग्रेजी तारीखानुसार 14 नवम्बर 2020 शनिवार को है। चतुर्दशी तिथि सूर्योदय से लेकर दोपहर 2:19 तक रहेगी, तत्पश्चात् अमावस्या तिथि प्रारम्भ हो जाएगी। दीपावली के पूजन हेतु धर्मशास्त्रीय मान्यतानुसार प्रदोष काल मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त इस दिन स्वाती नक्षत्र सूर्योदय काल से लेकर रात्रि 8:09  तक व्याप्त रहेगा। सूर्योदय काल से लेकर प्रातः 7: 31 तक आयुष्मान योग रहेगा, तत्पश्चात् सौभाग्य योग लग जाएगा।

धर्मशास्त्रानुसार ‘दीपावली’ प्रदोष काल एवं महानिशीथ काल व्यापिनी अमावस्या में विहित है, जिसमें प्रदोष काल का महत्व गृहस्थों एवं व्यापारियों के लिये, तथा महानिशीथ काल का उपयोग आगमशास्त्र (तांत्रिक) विधि से पूजन हेतु उपयुक्त है। प्रदोष काल से तात्पर्य है दिन-रात्रि का संयोग काल। दिन विष्णुरुप और रात्रि लक्ष्मीस्वरुपा है, इन दोनों का संयोग काल ही प्रदोष काल है। धर्म सिन्धु  में कहा है-

तुलासंस्थे सहस्त्राशौं प्रदोषे भूतदर्शयोः। उल्काहस्ता नरा कुर्युः पितृणां मार्गदर्शनम्।। दण्डैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि। तदा विहाय पूर्वेद्युः परेऽहि सुखरात्रिके।।
अर्धरात्रे भ्रमत्येव लक्ष्मीराश्रयितुं गृहान्। अतः स्वलंकृता लिप्ता दीपैर्जाग्रज्जनोत्सवा।।
सुधा धवलिता कार्याः पुष्पमालोपशोभिताः। अपर्रा प्रकर्तव्यं श्राद्धं पितृपरायणैः।।
प्रदोषसमये राजन् कर्तव्या दीपमालिका।

उपरोक्त वचनानुसार प्रदोष समय लक्ष्मी पूजन काल है। प्रदोषार्धरात्रिव्यापिनी अमावस्या में दीपावली विहित है। दीपावली के दिन धर्मशास्त्रोक्त प्रदोष काल सायं काल 5:10  से लेकर सायं काल 7:48  तक रहेगा। इसमें स्थिर लग्न वृष का समावेश सायं काल 5:12 से लेकर शाम को 7:08  तक रहेगा। इस लग्न के अनुसार चतुर्थेश सूर्य, तृतीयेश चन्द्र और द्वितीयेश पंचमेश बुध षष्ठ भाव में तुला राशि पर विद्यमान हैं।

नवमेश-दशमेश शनि नवम भाव में योगकारक होकर स्वराशि मकर पर स्थित है। राहु वृष का लग्न में शुभ है। लग्नेश व षष्ठेश शुक्र पंचम भाव में, अष्टमेश व एकादशेश गुरू अष्टम भाव में हैं, ज्योतिष शास्त्र की  मान्यतानुसार शुक्र लग्नेश होने के कारण शुभ होता है। नवमेश-दशमेश शनि केन्द्र-त्रिकोण का स्वामी होकर नवम भाव में है, जो कि प्रबल राजयोग का लक्षण है। छठे भाव में चन्द्र अशुभ है, अतः वृष लग्न में खाता (बसना) पूजन करने के पूर्व चन्द्र और केतु का दान उपाय कर लेना उपयुक्त रहेगा।

इसके पश्चात् दूसरी स्थिर लग्न ‘सिंह’ रात्रि 11:40 से लेकर रात्रि 1:54 तक रहेगी। इस लग्न के अनुसार तृतीय भाव में सूर्य, चन्द्र, बुध एक साथ हैं। यह अति शुभ योग बनता है। योगकारक मंगल चतुर्थेश और नवमेश हो कर अष्टम भाव में शुभकारक योग बनाता है। इसमें खाता (बसना) पूजन हेतु केतु-शनि, का उपाय उत्तम है। महानिशीथ काल में पूजन करने वालों के लिये इस दिन महानिशीथ काल रात्रि 11:14 से 12:06  तक व्याप्त रहेगा। यह अति शुभ और अति कल्याणकारी मुहूर्त है।

चौघड़िया मुहूर्त के विचार से सायं काल 5:10 से लेकर 6:48  तक लाभ की चौघड़िया रहेगी, तथा रात्रि 8:26 से  लेकर रात्रि 1:20  तक शुभ-अमृत-चर की चौघड़िया रहेगी। अतः इस संयुक्त वेला में अपनी कुल परम्परा के अनुसार श्री महागणपति, श्री महालक्ष्मी, श्री कुबेर जी, श्री महाकाली एवं खाता (बसना) पूजनादि ज्योतिषी जी को कुण्डली आदि दिखवाकर अशुभ ग्रहों का दानोपाय करके पूजनादि शुभ-मंगलमय होगा। रविवार 15 नवंबर को गोवर्धन पूजा रहेगी गोवर्धन के रूप में गाय की मान्यता को पूर्वजों के हित को ध्यान में रखकर के ही की गई है।

गोबर जो अस्तित्व हीन है उसके लिए भी पूजा की मान्यता केवल हिंदू धर्म में ही देखने को मिलती है कारण वही है गोबर जब खाद के रूप में अपना बल प्रदर्शित करता है तो जीव को अन्न और वनस्पति के विकास में सहायक माना जाता है। कई बरसों के बाद शनिवार के दिन दीपावली मनाई जाएगी। क्योंकि यह दुर्लभ संयोग बनेगा शनिवार को शनि स्वयं की राशि में होने से लाभकारी होंगे।

जिसके फलस्वरूप धन संबंधी कार्यों में बड़ी उपलब्धि प्राप्त हो सकती है सर्वार्थ सिद्धि योग 17 साल के बाद प्राप्त हो रहा हैI विशेष  करणी  कार्य दीपावली पूजा करने के उपरांत घर में एक चौमुखा दीपक देसी घी का रात्रि भर जलते रहना चाहिए I यह दीपक लक्ष्मी, सौभाग्य ,रिद्धि, सिद्धि, के प्रतीक रूप में माना गया है। यम द्वितीया भैया दूज का पर्व सोमवार 16 नवंबर को सर्वमान्य रहेगा।