165 साल बाद का नाम ऐसा संयोग, पितृपक्ष और नवरात्र के बीच इतने दिन का अंतर

इस बार कोरोना संक्रमण (Corona infection) के कारण देश में गणेश उत्सव बिना जुलूस, रैली और धूमधाम के मनाया जा रहा है। वहीं अब श्रद्धालुओं को नवरात्र का इंतजार है, जो हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से शुरू हो जाते हैं। इसी के साथ पूरे नौ दिनों तक नवरात्र की पूजा
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165 साल बाद का नाम ऐसा संयोग, पितृपक्ष और नवरात्र के बीच इतने दिन का अंतर

इस बार कोरोना संक्रमण (Corona infection) के कारण देश में गणेश उत्सव बिना जुलूस, रैली और धूमधाम के मनाया जा रहा है। वहीं अब श्रद्धालुओं को नवरात्र का इंतजार है, जो हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से शुरू हो जाते हैं। इसी के सा​थ पूरे नौ दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। लेकिन इस साल ऐसा नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा, ऐसे में नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। यह स्थिति 165 साल बाद होने जा रही है।
165 साल बाद का नाम ऐसा संयोग, पितृपक्ष और नवरात्र के बीच इतने दिन का अंतर
अश्विन अधिमास होने के कारण इस बार शारदीय नवरात्र एक महीने देर से 16 अक्तूबर को शुरू होंगे। इसके साथ अश्विन मास में दो कृष्ण पक्ष और दो ही शुक्ल पक्ष होंगे। ज्योतिषार्यों के अनुसार प्रथम कृष्ण पक्ष को शुद्ध अश्विन कृष्ण पक्ष यानी श्राद्ध पक्ष कहा जाएगा जो तीन सितंबर से शुरू होकर 17 सितंबर तक रहेगा। 18 सितंबर से अधिमास शुक्ल पक्ष होगा जो एक अक्तूबर तक रहेगा।

अधिवास नाम क्यों दिया गया
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चंद्रमा मास 27 दिन और सूर्य मास तीस दिन का होता है। एक सूर्य वर्ष 365 दिन और छह घंटे और चंद्रमा का एक वर्ष 354 दिन का होता है। दोनों के बीच 11 दिनों का यह अंतर हर तीन साल में लगभग एक महीने के बराबर होता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्रमास अतिरिक्त आता है। इसी कारण इसे अधिमास का नाम दिया गया है। इसे मलमास भी कहते हैं जिसमें शुभ कार्य वर्जित होते हैं।
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