राज्य आंदोलनकारी का हत्यारोपी धस्माना के खिलाफ उबलने लगा लोगों में ज्वर, देखिये क्यों हुआ ऐसा

इस प्रदेश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि देवभूमि की धरती पर उसी के जवान बेटे की हत्या कर खून बहाने वाले जिस हत्यारे को जेल की कोठरी में होना चाहिए था वो आज उसी देवभूमि का नेता बना हुआ है। धिक्कार है ऐसी कांग्रेस पार्टी पर जिसने उत्तराखंड के बेटे को
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राज्य आंदोलनकारी का हत्यारोपी धस्माना के खिलाफ उबलने लगा लोगों में ज्वर, देखिये क्यों हुआ ऐसा

इस प्रदेश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि देवभूमि की धरती पर उसी के जवान बेटे की हत्या कर खून बहाने वाले जिस हत्यारे को जेल की कोठरी में होना चाहिए था वो आज उसी देवभूमि का नेता बना हुआ है। धिक्कार है ऐसी कांग्रेस पार्टी पर जिसने उत्तराखंड के बेटे को अपनी गोलियों से छलनी करने वाले हत्यारे को अपना पदाधिकारी बनाया है। इस प्रदेश की जनता क्या इतनी अंधी और बहरी है जो निर्दोष उत्तराखंड आंदोलनकारियों की हत्या और उत्तराखंड की बहू-बेटियों की इज्जत को तार-तार करने वाले मुलायम सिंह के गुंडो को अपने सर पर बिठाएगी। क़ानून की धज्जियाँ उड़ाने वाले और गवाहों को डरा धमकाकर के पैसों से ख़रीदने वाले ऐसे गुंडे क्या सारे उत्तराखंडियों का ज़मीर भी खरीद लेंगे? लानत है ऐसी जिंदगी पर जो अपने ही बेटे, अपने ही भाई, अपनी ही बहू-बेटी के हत्यारों के सामने गूँगी हो जाए।
याद करिए 1994 का वो मनहूस दिन जब राज्य आंदोलन के लिए सडकों पर उतर रहे आंदोलनकारी देहरादून के करनपुर क्षेत्र में मुलायम सिंह यादव की पार्टी में रहने वाले सूर्यकांत धस्माना के आवास की ओर जा रहे थे। भीड को तितर-बितर करने के लिए सूर्यकांत धस्माना की छत से आंदोलनकारियों पर दनादन गोलियां चलाये जाने का आरोप था और इस गोलीकांड में एक युवा आंदोलनकारी राजेश रावत की मौत हो गई थी

जबकि एक अन्य आंदोलनकारी मोहन रावत इस गोलीकांड में घायल हो गया था। जानकारों का मानना है कि यह गोली धस्माना द्वारा चलाई गयी थी, इस बात की पुष्टि घायल मोहन रावत ने भी की थी। सूर्यकांत धस्माना पर छत से गोली चलाये जाने का मुकदमा कई सालों से कोर्ट में चल रहा है। इस मामले की जब सुनवाई तेज हुई तो कोर्ट में भी गवाहों ने धस्माना पर गोली चलाने की बात कही थी। जिसके बाद उस समय सूर्यकांत धस्माना एनसीपी छोडकर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गया था। गवाहों ने जिस समय कोर्ट में धस्माना को गोली चलाने की बात कही थी तो उस समय कांग्रेस ने प्रदेश मीडिया प्रभारी के पद से धस्माना की छुट्टी कर दी थी। अब करनपुर गोलीकांड की सीबीआई जांच कर रही है लेकिन धस्माना ने राजनीतिक प्रभाव और पैसों के बल पर गवाही देने वाले लोगों को ही खरीद लिया गया ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं,जिससे सीबीआई के विशेष न्यायाधीश की अदालत में पुलिस के विवेचना अधिकारियों सहित 6 लोग गवाही के लिए पेश नहीं हो सके।

इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार प्रताप सिंह परवाना का भी साफ कहना है कि राज्य आंदोलन के लिए सडकों पर प्रदर्शन कर रही भीड़ पर सूर्यकांत धस्माना ने अपनी छत से कथित रुप से गोली चलायी थी और उस घटनाक्रम के कई फोटो भी उनके पास है। उन्होंने कहा कि यदि इस मामले में धस्माना को कोर्ट से राहत मिलती है तो पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट तक जाएँगे ताकि उन्हें न्याय मिल सके। उन्होंने कहा कि करनपुर गोलीकांड के कई ऐसे सबूत भी उनके पास मौजूद हैं जिन्हें यदि सार्वजनिक किया गया तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा। इस मुद्दे पर भाजपा का एक गुट भी अब धस्माना के खिलाफ मोर्चा बाँधने के लिए तैयार है. उनका साफ कहना है कि करनपुर गोलीकांड में आंदोलनकारी मृतक राजेश रावत को तभी न्याय मिलेगा जब उनके हत्यारे को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी।


सूर्यकांत धस्माना का पूर्व विधायक लाखी राम के समर्थन में आकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के विरोध जताना पार्टी पॉलिटिक्स नहीं बल्कि वो गहरी टीस है जो पिछले तीन-चार सालों से उसे निरंतर कचोट रही है। यूपी के समय मुलायम राज में जो धस्माना पर अकूत संपत्ति जोड़ने के आरोप भी लगे थे और कांग्रेसी राज में बहुगुणा सरकार में हजारों करोड़ का शराब से लेकर खनन तक का अवैध कारोबार को फैलाने के आरोप लगे हैं।

वह त्रिवेंद्र रावत की जीरों टॉलरेंस वाली सरकार में ज़्यादा नहीं फैल पाया। उत्तराखंड की सियासत में धस्माना इस सरकार में अपनी दुकान नहीं चला पाये।मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा सारे दलालों की नाक में नकेल डालने से दलालों के बीच में हलचल मची हुई है और वो गाहे बग़ाहे त्रिवेंद्र विरोधियों से मिलकर लगातार षड्यंत्र रचते आ रहे है। इन सबने अपना एक ही मकसद बना रखा है कि जैसे तैसे सरकार को अस्थिर कर त्रिवेंद्र रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना है। उत्तराखंड के दलाल लुटेरे, इस देवभूमि के जवान बेटों की लाशों और यहाँ की बहू-बेटियों की इज्जत को तार-तार करने वाले अपने बुरे मकसद में कितना कामयाब होंगे यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन इतना तय है कि जिस दिन यहाँ के उत्तराखंडियों का स्वाभिमान जाग गया उस दिन इनको कोई नहीं बचा पाएगा।