बिहार ने झारखंड से फिर मांगे पेंशन के 843 करोड़, झारखंड का इनकार, नहीं थम रहा 23 साल पुराना झगड़ा

रांची, 13 जून (आईएएनएस)। झारखंड और बिहार के बीच पेंशन देनदारियों का झगड़ा थम नहीं रहा है। बिहार सरकार ने एक बार फिर झारखंड को पत्र लिखकर 843 करोड़ रुपए का भुगतान करने की मांग की है, वहीं झारखंड सरकार ने दोनों राज्यों में महालेखाकार ऑडिट पूरा होने और दावे का सत्यापन होने तक किसी भी तरह के भुगतान से इनकार कर दिया है।
 | 
रांची, 13 जून (आईएएनएस)। झारखंड और बिहार के बीच पेंशन देनदारियों का झगड़ा थम नहीं रहा है। बिहार सरकार ने एक बार फिर झारखंड को पत्र लिखकर 843 करोड़ रुपए का भुगतान करने की मांग की है, वहीं झारखंड सरकार ने दोनों राज्यों में महालेखाकार ऑडिट पूरा होने और दावे का सत्यापन होने तक किसी भी तरह के भुगतान से इनकार कर दिया है।

दरअसल, दोनों राज्यों के बीच पेंशन की देनदारी का झगड़ा 23 साल पुराना है। बिहार की सरकार पेंशन मद में झारखंड को चार हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्जदार बता रही है, जबकि झारखंड का कहना है कि बिहार उसपर अनुचित और अता*++++++++++++++++++++++++++++र्*क तरीके से बोझ लाद रहा है। इसे लेकर झारखंड की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर कर रखा है।

15 नवंबर 2000 को बिहार के बंटवारे के बाद जब झारखंड अलग राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया था, उस वक्त दोनों राज्यों के बीच दायित्वों-देनदारियों के बंटवारे का भी फामूर्ला तय हुआ था। संसद से पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम में जो फामूर्ला तय हुआ था, उसके अनुसार जो कर्मचारी जहां से रिटायर करेगा वहां की सरकार पेंशन में अपनी हिस्सेदारी देगी। जो पहले सेवानिवृत्त हो चुके थे, उनके लिए यह तय किया गया कि दोनों राज्य कर्मियों की संख्या के हिसाब से अपनी-अपनी हिस्सेदारी देंगे।

झारखंड के साथ ही वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से कटकर उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश से कटकर छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ था। इन राज्यों के बीच पेंशन की देनदारियों का बंटवारा उनकी आबादी के अनुपात में किया गया था, जबकि झारखंड-बिहार के बीच इस बंटवारे के लिए कर्मचारियों की संख्या को पैमाना बनाया गया। झारखंड सरकार की मांग है कि उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ की तरह झारखंड के लिए भी पेंशन देनदारी का निर्धारण जनसंख्या के हिसाब से हो। कर्मचारियों की संख्या के हिसाब से पेंशन की देनदारी तय कर दिए जाने की वजह से झारखंड पर भारी वित्तीय बोझ पड़ रहा है। झारखंड का यह भी कहना है कि उसे पेंशन की देनदारी का भुगतान वर्ष 2020 तक के लिए करना था। इसके आगे भी उसपर देनदारी का बोझ डालना अनुचित है। झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में भी इन तर्कों को आधार बनाया है।

इस मुद्दे पर बीते जनवरी में केंद्र की मध्यस्थता में झारखंड और बिहार के अधिकारियों की बैठक हुई थी। इसमें यह तय हुआ था कि दोनों राज्यों के महालेखाकार (एजी) अपने लेखा का मिलान करें और बताएं कि 15 नवंबर 2000 से अब तक कितनी राशि का भुगतान किया। राज्य बनने से पहले की कितनी राशि का भुगतान किस राज्य ने किया। इधी आधार पर पता चलेगा कि किसकी दावेदारी सही है।

बहरहाल, पिछले कुछ अरसे से झारखंड सरकार ने बिहार को पेंशन देनदारी के मद में भुगतान बंद कर रखा है। झारखंड के महालेखाकार की रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2016-17 में झारखंड से दी जाने वाली पेंशन राशि 15 नवंबर 2000 से पहले सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों से अधिक थी। यानी झारखंड सरकार ने पेंशन देनदारी के मद में अतिरिक्त भुगतान किया। झारखंड का दावा है कि बिहार को किया गया अतिरिक्त भुगतान वापस करना चाहिए।

--आईएएनएस

एसएनसी/एएनएम

WhatsApp Group Join Now