केसीआर ने बदला रुख, भाजपा के बजाय अब कांग्रेस पर साधा निशाना
केसीआर ने इस सप्ताह निर्मल और नागरकुरनूल जिलों में जनसभाओं में आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस पार्टी पर हमला किया, और भाजपा की आलोचना करने से परहेज किया।
उनके भाषणों का लहजा और तेवर 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले रणनीति में बड़े बदलाव का संकेत दे रहे हैं।
दोनों जनसभाओं में, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) प्रमुख ने कांग्रेस पार्टी की आलोचना की और लोगों से पार्टी को बंगाल की खाड़ी में फेंकने का आह्वान किया। कुछ समय पहले तक केसीआर भाजपा के लिए इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे।
कांग्रेस नेताओं के वादे के बाद कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो वह धरनी पोर्टल को खत्म कर देगी, केसीआर कांग्रेस पर पलटवार कर रहे हैं। नागरकुरनूल में 6 जून को जनसभा में उन्होंने कहा, धरनी पोर्टल को बंगाल की खाड़ी में फेंकने की बात करने वालों को ही बंगाल की खाड़ी में फेंक देना चाहिए।
राजस्व प्रणाली में बड़े पैमाने पर सुधार के तहत बीआरएस सरकार 2020 में सभी भूमि रिकॉर्ड के लिए वन-स्टॉप सॉल्यूशन के रूप में धरनी पोर्टल लाई थी। हालांकि, कांग्रेस पार्टी का दावा है कि धरनी ने भूमि मालिकों, विशेषकर किसानों की समस्याओं को बढ़ाया है।
नागरकुर्नूल में अपनी जनसभा में केसीआर ने कांग्रेस पर चौतरफा हमला करते हुए कहा कि धरणी को निरस्त कर कांग्रेस राजस्व प्रशासन में बिचौलियों और भ्रष्टाचार के शासन को वापस लाना चाहती है।
बीआरएस प्रमुख, हालांकि, भाजपा पर चुप रहे, जबकि भाजपा भी धरणी की आलोचना कर रही है। केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी ने पिछले महीने कहा था कि केसीआर परिवार और बीआरएस धरणी पोर्टल का इस्तेमाल कर लोगों को लूट रहे हैं।
पिछले दो वर्षों में अपनी अधिकांश जनसभाओं में, केसीआर ने नफरत की राजनीति से लेकर तेलंगाना के खिलाफ भेदभाव के मुद्दों पर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया था।
हालांकि यह साफ नहीं है कि बीआरएस प्रमुख रणनीति में क्यों बदलाव कर रहे हैं। लेकिन यह बदलाव कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने के कुछ दिनों बाद आया है।
केसीआर के बेटे और बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव ने कहा है कि कर्नाटक चुनाव का तेलंगाना पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कर्नाटक में बीजेपी की चुनावी हार के मद्देनजर बदले हुए राजनीतिक समीकरणों के कारण केसीआर ने अपना रुख बदला है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीआरएस छोड़ने वाले या हाल के दिनों में पार्टी से निष्कासित नेता अब राज्य में बदलते राजनीतिक माहौल में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को तरजीह दे सकते हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव तक केसीआर भाजपा को राज्य में एक गैर-मौजूद ताकत के रूप में खारिज करते थे। हालांकि, राज्य की 17 में से चार लोकसभा सीटें जीतकर बीजेपी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी और दो विधानसभा उपचुनावों में जीत ने इसे और मजबूत कर दिया।
यह भी कहा जा सकता है कि केसीआर के रुख में बदलाव बीजेपी को नजरअंदाज करने की रणनीति हो सकती है और यह एक नैरेटिव हो सकता है कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस टीआरएस के लिए मुख्य प्रतिद्वंद्वी होगी।
पिछले हफ्ते केटीआर ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान टिप्पणी की थी कि भाजपा की समाज में कोई उपस्थिति नहीं है और यह केवल सोशल मीडिया पर मौजूद है।
--आईएएनएस
एसकेपी