मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य और सनातन धर्म के प्रचार प्रसार का केंद्र है तरेत पाली मठ

पटना, 21 मई (आईएएनएस)। बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नौबतपुर के तरेत पाली मठ में हनुमंत कथा सुनाने के बाद यह मठ देश में एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। लेकिन हकीकत है कि यह मठ प्राचीन काल से स्थानीय लोगों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। यह मठ आज भी मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य और सनातन धर्म के प्रचार प्रसार का केंद्र है।
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पटना, 21 मई (आईएएनएस)। बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नौबतपुर के तरेत पाली मठ में हनुमंत कथा सुनाने के बाद यह मठ देश में एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। लेकिन हकीकत है कि यह मठ प्राचीन काल से स्थानीय लोगों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। यह मठ आज भी मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य और सनातन धर्म के प्रचार प्रसार का केंद्र है।

करीब 400 साल पुराने इस तरेत पाली मठ का इतिहास काफी गौरवशाली है। तरेत पाली दक्षिण के संत परमहंस स्वामी राजेंद्राचार्य महाराज सूरी की तपोभूमि है। मठ के स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज बताते हैं कि परमहंस स्वामी राजेंद्राचार्य जी ने पूरे भारत की 13 बार परिक्रमा की थी। भ्रमण करते हुए वह पटना के तरेत पाली पहुंचे थे। इसके बाद उन्होंने ही यहां मठ की नींव रखी।

पटना से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित कई एकड़ भूमि में फैले इस तरेत पाली मठ में भगवान राम, सीता लक्ष्मण और बजरंगबली की सुंदर प्रतिमाएं हैं। 145 फीट उंचे इस मंदिर में प्रतिदिन बडी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई मन्नत जरूर पूरी होती है।

स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज बताते हैं कि यह मठ सदैव धर्मिक कार्यों में लगा रहता है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना इस संस्था और मठ का उद्देश्य है, जिसे विभिन्न माध्यमों से पूरा किया जाता है। सनातन संस्कृति में आचार, विचार और व्यवहार का सर्वोच्च स्थान है। राजधानी से सटे नौबतपुर का तरेत पाली मठ इसी संस्कृति को आगे बढ़ा रहा है।

कहा जाता है कि पूर्व में यह वनों से घिरा हुआ क्षेत्र था। यह इलाका पहले परेत पाली यानी प्रेत पाली के नाम से जाना जाता था। कलांतर में इसका नाम तरेत पाली हो गया।

यहां जरूरतमंदों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है। गुरुकुल परंपरा से दी जाने वाली शिक्षा ग्रहण करने वालों में हर आयु वर्ग के विद्यार्थी यहां हैं। यह सारी शिक्षा संस्कृत में होती है। यहां शिक्षा ग्रहण करने वाला छोटे से छोटा बच्चा भी धाराप्रवाह संस्कृत बोलता है। साथ ही स्कूल, कॉलेज भी मठ का ही है, जहां नि:शुल्क पढ़ाई होती है।

सुदर्शनाचार्य महाराज बताते हैं कि देश के कोने-कोने में इससे जुड़े मठ हैं। जिसमे नासिक, कांचीपुरम, हुलासगंज में स्थापित मठ प्रमुख हैं। इस वैष्णव मठ में आज भी छात्रों को वैदिक रीति रिवाजों की पढ़ाई के साथ-साथ वेद, व्याकरण, ज्योतिष शिक्षा सहित आधुनिक शिक्षा दी जाती है।

बताया जाता है कि फिलहाल करीब 60 से 70 छात्र तरेत मठ में रहकर पढ़ाई करने के साथ-साथ आसपास के गांवों में जाकर पूजा पाठ भी कराते हैं। दावा किया जाता है कि इस मठ से एक दो नहीं अपितु सैकड़ो छात्र संस्कृत से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत आचार्य किया और उच्च पदों पर आसीन हुए।

आचार्य बताते हैं कि यहां से आगे उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों को भी मठ द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।

इसके आलावा 60 से भी ज्यादा गायों की भी यहां सेवा की जाती है, इसके लिए गौशाला है। बच्चों के छात्रावास, तालाब, यज्ञशाला समेत कई खासियतों से यह मठ अपनी मौजूदगी दर्ज करवाता रहा है। तालाब में बत्तख, हंस और मछलियां भी नजर आएंगी।

इस मठ की विशेषता है कि कोई भी पशु, पक्षी या मछलियों की मृत्यु हो जाती है तो उसका भी अंतिम संस्कार वैदिक रीति रिवाज से किया जाता है।

इस मठ में आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज की भी व्यवस्था है। प्रतिदिन यहां लोग मुफ्त चिकित्सा सुविधा लेने आते हैं। इलाज के लिए हर रोज लोग आते हैं, उसमें अगर कोई दूर से आता है, तो उसके रहने की भी व्यवस्था मठ की तरफ से की जाती है।

बहरहाल, हाल के दिनों में इस मठ की चर्चा और नई पहचान बाबा बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के कार्यक्रम से मिली हो, लेकिन तरेत पाली मठ क्षेत्र के लिए प्राचीन काल से आस्था का केंद्र रहा है।

--आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी