दिल्ली हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस, फिल्म फराज के निर्माताओं से मांगा जवाब

नई दिल्ली, 24 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को फिल्म फराज के निर्देशक और निमार्ताओं को नोटिस जारी किया और दो पीड़ितों की माताओं की याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, जिन्होंने 2016 के ढाका आतंकवादी हमलों पर आधारित फिल्म की रिलीज को चुनौती देने वाली याचिका दायर की थी।
 | 
नई दिल्ली, 24 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को फिल्म फराज के निर्देशक और निमार्ताओं को नोटिस जारी किया और दो पीड़ितों की माताओं की याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, जिन्होंने 2016 के ढाका आतंकवादी हमलों पर आधारित फिल्म की रिलीज को चुनौती देने वाली याचिका दायर की थी।

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और तलवंत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि पांच दिन में जवाब दाखिल किया जाए।

हंसल मेहता द्वारा निर्देशित यह फिल्म 3 फरवरी को रिलीज होने वाली है।

माताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने अदालत को सूचित किया कि फिल्म निर्माता मेहता और निमार्ताओं ने उन्हें रिलीज से पहले फिल्म देखने से मना कर दिया है।

सिब्बल ने तर्क दिया कि उन्होंने फिल्म निमार्ताओं से फिल्म का नाम बदलने के लिए कहा था लेकिन वे नहीं माने।

उन्होंने कहा, हमें नहीं पता कि फिल्म में किन नामों का इस्तेमाल किया गया है। 2021 में उन्होंने हमें सुनिश्चित किया था कि पीड़ित दो लड़कियों का नाम नहीं लिया जाएगा।

इस पर कोर्ट ने पूछा कि इसका फिल्म के नाम से क्या संबंध है?

सिब्बल ने कहा कि यह एक ऐसे व्यक्ति का नाम है, जो दो लड़कियों के साथ हमले का शिकार हुआ था।

इससे पहले, खंडपीठ ने कहा था कि फिल्म निर्माता को पहले विश्लेषण करना चाहिए कि उर्दू कवि अहमद फराज ने क्या रुख अपनाया, अगर उन्होंने फिल्म का नाम फराज रखने और इस मुद्दे को हल करने का फैसला किया है।

अदालत ने कहा था, अगर आप फिल्म का नाम फराज रख रहे हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि अहमद फराज किसके लिए खड़ा था। अगर आप एक मां की भावनाओं के प्रति संवेदनशील हैं, तो उनसे बात करें।

हालांकि, मेहता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील शील त्रेहान ने तर्क दिया कि वे रिलीज से पहले फिल्मों को देखने की इजाजत देने का उदाहरण सेट नहीं करना चाहते हैं।

सिब्बल ने तर्क दिया कि अगर फिल्म काल्पनिक है, तो इसमें इस तरह के नामों का उपयोग करने की क्या आवश्यकता थी। और कहा कि वे इसे डब कर सकते हैं और नाम बदल सकते हैं।

मेहता के वकील ने कहा, सारी जानकारी पहले से ही पब्लिक डोमेन में है।

सिब्बल ने तर्क दिया, पब्लिक डोमेन डोमेन और पब्लिक रिकॉर्ड दो अलग-अलग चीजें हैं।

सिब्बल ने त्रेहान का विरोध किया और कहा: क्या बात है? माताओं को आघात के साथ फिर से जीना होगा।

अदालत ने नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई एक फरवरी के लिए सूचीबद्ध कर दी।

अदालत ने 17 जनवरी को निर्देशक और निमार्ताओं से दोनों पीड़िताओं की माताओं के साथ चर्चा कर विवादों को सुलझाने के लिए कहा था। यह तर्क देते हुए कि निमार्ता इस मुद्दे के प्रति असंवेदनशील हैं।

सिब्बल ने कहा था कि मृतक और उनके परिवार के सदस्यों की गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए क्योंकि यह मुख्य पहलुओं में से एक है।

उन्होंने तर्क दिया था: वे परिवार के पास भी नहीं आए। यही उनका ²ष्टिकोण रहा है। एकल न्यायाधीश का मानना है कि चूंकि लड़कियों की मृत्यु हो चुकी है, इसलिए उनके जीवन के संबंध में निजता का कोई अधिकार नहीं हो सकता है। यह ²ष्टिकोण नहीं हो सकता। सवाल यह है कि क्या माता-पिता को अपनी बेटियों के जीवन के संबंध में निजता का अधिकार होगा।

जवाब में, पीठ ने कहा कि वह फिल्म की रिलीज पर रोक नहीं लगाएगा क्योंकि विवरण पहले ही सार्वजनिक हो चुका है।

सिब्बल ने तर्क दिया था कि जनता के लिए खुले मामलों को अलग तरीके से निपटाया जाना चाहिए।

त्रेहान ने अदालत से कहा कि वे माताओं के साथ विवाद सुलझाने के अदालत के सुझाव को मानने को तैयार हैं।

इससे पहले, एकल-न्यायाधीश की पीठ ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की माताओं की याचिका को खारिज कर दिया था, इसके बजाय उन्हें अपील दायर करने के लिए कहा था।

--आईएएनएस

पीके/एएनएम