एलजी यमुना कमेटी के चेयरमैन, दिल्ली सरकार ने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल (एलजी) को यमुना पर बनी उच्च-स्तरीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त करने के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। दिल्ली सरकार ने एनजीटी के आदेश को रद करने का अनुरोध करते हुए कहा है कि यह आदेश दिल्ली में शासन की संवैधानिक व्यवस्था के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 2018 और 2023 के आदेशों का भी उल्लंघन करता है।
 | 
नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल (एलजी) को यमुना पर बनी उच्च-स्तरीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त करने के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। दिल्ली सरकार ने एनजीटी के आदेश को रद करने का अनुरोध करते हुए कहा है कि यह आदेश दिल्ली में शासन की संवैधानिक व्यवस्था के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 2018 और 2023 के आदेशों का भी उल्लंघन करता है।

9 जनवरी 2023 के अपने आदेश के जरिए एनजीटी ने यमुना नदी प्रदूषण के मुद्दे को हल करने के लिए दिल्ली में विभिन्न अथॉरिटीज वाली इस कमेटी का गठन करते हुए एलजी को इसका अध्यक्ष बनाया है। दिल्ली सरकार का कहना है कि ऐसा तब किया गया, जबकि एलजी दिल्ली के मात्र औपचारिक प्रमुख भर हैं।

याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार यमुना के प्रदूषण को दूर करने और उपचारात्मक उपायों को लागू करने के लिए अंतर-विभागीय समन्वय की आवश्यकता को स्वीकार करती है, लेकिन एनजीटी के आदेश के जरिए एलजी को दी गई कार्यकारी शक्तियों पर कड़ी आपत्ति जताती है। एलजी को दी गईं शक्तियां विशेष रूप से दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकार क्षेत्रों पर अतिक्रमण करती हैं।

दिल्ली सरकार ने तर्क दिया कि दिल्ली में प्रशासनिक ढांचे और संविधान के अनुच्छेद 239एए के प्रावधानों के अनुसार भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस से संबंधित मामलों को छोड़कर एलजी नाममात्र के प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं और वे संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हैं। दिल्ली सरकार ने एक समन्वित दृष्टिकोण के महत्व देते हुए इस बात पर जोर दिया है कि एनजीटी के आदेश में इस्तेमाल की गई भाषा निर्वाचित सरकार को दरकिनार करती है। दलील दी गई है कि एक ऐसे प्राधिकरण को कार्यकारी शक्तियां प्रदान की गई हैं, जिनके पास उन शक्तियों को रखने का संवैधानिक अधिकार का अभाव है और यह चुनी हुई सरकार के अधिकार क्षेत्र को भी कमजोर करता है।

याचिका में यह दलील दी गई है कि एक ऐसा प्रशासनिक व्यक्ति, जिसके पास संवैधानिक जनादेश नहीं है, उसे कार्यकारी शक्तियां देना, असल में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के अधिकार क्षेत्र को कमजोर करता है।

--आईएएनएस

जीसीबी/एसजीके